करतूतें आईएएस की: मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन

बिटिया खबर

: सांगठनिक आपराधिक गिरोह बनी अफसरशाही का नंगा चेहरा है एलडीए के चीफ इंजीनियर का तबादला : सरकारी खजाने को निजी शानोशौकत में लुटा रहे हैं आईएएस अफसर : इंजीनियर ने 82 लाख खर्च करने से रोका, तो आईएएस लामबंद : श्रंखलाबद्ध लेख प्रकाशित होगा बड़ा बाबू :

कुमार सौवीर

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अफसर-ढांचे का मुखिया भले ही आईएएस-अफसरों के समूह का धर्म लोक-सेवा और प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त करना हो लेकिन सच बात यही है यह अफसरशाही अब सफेद हाथी बन चुकी है। इस सफेद हाथी का शगल यूपी को केवल चर जाना ही है, लेकिन इसके इनपुट के नाम पर सिर्फ ठेंगा ही निकलता है। लखनऊ विकास प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर को जिस तरह 23 जून को दूध की मक्खी की तरह इन सफेद हाथियों ने निकाल बाहर फेंक दिया है, उससे साबित हो गया है कि यह अफसर न केवल भ्रष्टाचार को खुली लूट में तब्दील कर हो चुके हैं। यह सफेद हाथी तो अब अफसरशाही को सांगठनिक अपराधियों के समूह के तौर पर तब्दील करने पर आमादा हैं।
तो ताजा खबर यह है कि इन्‍हीं आला अफसरों ने गिरोहबंद होकर एलडीए के चीफ इंजीनियर इंदु शेखर सिंह को लात मार कर भगाया दिया है। कहने को तो यह तबादला यूपी के आवास बंधु के मुख्‍य अभियंता का है, लेकिन इसको पनिश्‍मेंट-पोस्टिंग ही माना जाता है। यह आदेश दिया प्रदेश के आवास विभाग के प्रमुख सचिव नितिन रमेश गोकर्ण ने। इंदु शेखर का अपराध यह है कि उन्‍होंने लखनऊ के मंडलायुक्‍त और एलडीए के पदेन अध्‍यक्ष रंजन कुमार के सरकारी मकान पर साज-सज्‍जा और शानो-शौकत के लिए होने वाले एक प्रस्‍तावित 81.79 लाख रुपयों का एक स्टीमेट मंजूर करने से इंकार कर दिया था। यह प्रस्ताव एलडीए की बाकी इंजीनियर टीम ने अपने स्तर से मंजूर करने के लिए मंजूरी के लिए चीफ इंजीनियर को भेज दिया था। लेकिन इंदु शेखर दें यह टिप्पणी करते हुए इस प्रस्‍तावित व्‍यय को इसलिए खारिज कर दिया कि राज्य संपत्ति विभाग द्वारा बनाये गये इस बंगले की साज-सज्‍जा और शानो-शौकत के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण के खजाने से नहीं खर्च किया जा सकता है। यह मकान बटलर पैलेस कालोनी में है।
इस घटना ने साबित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश पर नौकरशाही पर जिस तरह अराजकता और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने लगे हैं, वह केवल सुनी-कही बातों तक ही सीमित नहीं नहीं हैं। बल्कि इस बात को पुख्ता करते हैं कि पूरी ब्यूरोक्रेसी भ्रष्टाचाा, मनमर्जी और इसके लिए एकजुट होते जा रहे अफसरों का एक बड़ा गिरोह बनती जा रही है। और इसका सबसे बड़ा प्रमाण एलडीए के चीफ इंजीनियर को कुर्सी से घसीट कर बाहर निकाल देने से और क्या हो सकता है। वह जब इंदु शेखर की सेवा-काल 7 दिन बाद खत्म हो रहा था, लेकिन रिटायरमेंट के एक हफ्ते पहले ही एलडीए किसी अफसर को उसकी कुर्सी से धकेल दिया गया। आवास विभाग के प्रमुख सचिव नितिन रमेश गोकर्ण भी इस कवायद में शामिल हो गये। इंदुशेखर सिंह ने भी ऐसी चर्चाओं को महसूस करने हुए बयान भी जारी किया है।
हैरत की बात है कि राज्य संपत्ति विभाग के मकान की मरम्मत का खर्चा राज्य संपत्ति विभाग क्यों कराया गया, जबकि राज्‍यसम्‍पत्ति विभाग के मकान और कालोनियों की देखरेख का जिम्‍मा पीडब्‍ल्‍यूडी करता है ? सवाल यह भी है कि एक दूसरे विभाग की इमारत का खर्चा के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण के खजाने को क्यों लुटाये जाने पर आमादा थे यह आईएएस लोग ? आखिर क्या वजह थी कि एलडीए की अध्यक्ष पर भी बैठने वाले लखनऊ के मंडलायुक्‍त के सरकारी बंगले के साज-सज्‍जा और शानो-शौकत करने वाला प्रस्ताव एलडीए में किसने रखा और किसके कहने पर यह लाख 8179 लाख रुपयों वाला प्रस्‍ताव तैयार किया गया ? जाहिर है कि इस तरह के प्रस्‍ताव की फाइलें एलडीए के उपाध्‍यक्ष अक्षय त्रिपाठी की सहमति के बिना तैयार करने की हैसियत और औकात किसी में भी नहीं होती है। एलडीए के सचिव भी इस तरह के निर्देश दे सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद सचिव को ऐसी फाइलें तैयार कराने के लिए उपाध्‍यक्ष अक्षय त्रिपाठी की अनिवार्य सहमति हासिल करनी होती है। लेकिन जिस तरह इस मामले में आवास विभाग के प्रमुख सचिव रमेश नितिन गोकर्ण द्वारा चीफ इंजीनियर को हटाया गया, वह इन अफसरों की परस्‍पर संलिप्‍तता को साफ जाहिर कर देता है।

यह गंभीर मामला है। दोलत्‍ती डॉट कॉम इस मामले पर हस्तक्षेप करते हुए उत्तर प्रदेश के ऐसे आईएएस अफसरों की करतूतों का पर्दाफाश करने जा रही है। ऐसे अफसरों जिन्होंने ब्यूरोक्रेसी के चेहरे पर खुद ही कालिख पोत डाली है। खुद को ब्यूरोक्रेट के तौर पर और अफसरशाही का सर्वोच्‍च अंग मानने वाले अफसर खुद को तो बहुत जिम्‍मेदार, शालीन, बुद्धिमान, ईमानदार और शैली के मामले में सर्वोच्च मानते हैं लेकिन बाकी अफसरों और छोटे कर्मचारियों को बाबू के तौर पर पुकारते और अपमानित करते रहते हैं। जबकि सच यही है कि ऐसे आईएएस अफसर एक बड़ा बाबू से ज्यादा नहीं होते। लेकिन इनको बड़ा बाबू अगर कहना शुरू कर दीजिए, तो अपनी कमजोर नस दबाने पर उनको दर्द होने लगता है कि वे बुरी तरह छटपटा पड़ते हैं।
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बड़ा बाबू यानी अफसरशाही

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