गगन नहीं, गगन को खोजने लगती है कायनात

मेरा कोना

कायनात के बेमिसाल जी-दारों का शाहंशाह है गगन सेठी
आजतक न्‍यूज चैनल के गगन में है गगन सी विस्‍तारिता

कुमार सौवीर

नई दिल्‍ली : अरे यार, यह तो कायनात के बेमिसाल जी-दारों का शाहंशाह है दोस्‍तों।

नाम है गगन सेठी। धंधा है खबरों का। आजतक न्‍यूज चैनल में वरिष्‍ठ ओहदा है गगन पर। लेकिन उससे भी ज्‍यादा ऊंचे हौसले हैं गगन के पास।

गगन से बातचीत तो पहले भी कई बार होती रही है, लेकिन नोएडा की फिल्‍म-सिटी में आजतक न्‍यूज चैनल का दफ्तर में गगन से आमने-सामने मुलाकात हुई। मौका था मेरा भारत-भ्रमण के पहले चरण का आखिरी दौर।  गगन से रिश्‍ता जोड़ा था दैनिक ट्रिब्‍यून के डॉक्‍टर उपेंद्र पांण्‍डेय ने, लेकिन उसके बाद तो न जाने कितने-कितने रिश्‍ते गगन से जुड़ते ही रहे।

गजब आदमी है यह। आदमी है भी या फिर बिलकुल गगन। विशाल विस्‍तारित आकाश की तरह। बेहिसाब-बेमिसाल।

आप पहली नजर में उसे बच्‍चा समझ सकते हैं, लेकिन गगन के पास जो नजर है वह गगन से भी आगे है। अस्‍सीम। सोच और कर्म में क्‍या-क्‍या बड़ा है और क्‍या छोटा, तय कर पाना मुमकिन नहीं है। हौसले तो ऐसे कि ऐसे जगहों तक पहुंच गये जिसके बारे में सोच पाना तक शायद कई लोगों के लिए नामुमकिन हो।

इस आदमी ने कोशिश की है, देखा है, खोजा है, समझा है और उसकी व्‍याख्‍या भी की है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आम तौर पर कोई भी पत्रकार ऐसा कोई भी चरण चरण-बद्ध तरीके से नहीं कर और पूरा नहीं कर सकते हैं। मसलन, चंडीगढ़ अमर उजाला में नौकरी के दौरान गगन हिमाचल प्रदेश के एक सुदूर गांव का दौरा कर भारत का परचम फहरा दिया, जहां के लोगों को यह तक पता नहीं था कि वे भारत का हिस्‍सा भी हैं या नहीं। उन लोगों को भारतीय झंडा तक कभी तक नहीं देखा था।

सलाम है दोस्‍त गगन। तुम वाकई गगन ही नहीं, बल्कि गगन से भी आगे हो, जिसकी व्‍याख्‍या इससे ज्‍यादा मैं नहीं कर सकता।

दोस्‍त। हम लोग लगातार मिलते रहेंगे। नये वेश, नये परिवेश, नये माहौल, नये दौर, नये वक्‍त और यह भी नहीं हो सका तो शायद नये जन्‍म में भी जरूर।

अरे तुम अगर पहले मिल जाते तो मैं न जाने कहां से कहां पहुंच गया दोस्‍त।

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