सपा से बसपा की रिश्‍तेदारी में पेंच, नक्षत्र मंगली भाव में हैं

मेरा कोना

: बसपा और सपा के बीच मौलिक विरोधाभासों का खात्‍मा हो पाना नामुमकिन : ऐसा नहीं कि दोनों पाक-साफ हैं, लेकिन चारित्रिक गुणों मेल कत्‍तई मिलता : अगर गठबंधन की बातें साकार हुईं तो वाकई वह क्रांतिकारी फैसला होगा : गठबंधन के रिश्‍ते को कांग्रेस के प्रति सपा खासा नुकसान कर चुकी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आज सपा और कांग्रेस समेत बाकी गैर-भाजपाई दलों से गठबंधन की सम्‍भावनाओं पर चर्चा तो शुरू कर दी, लेकिन बसपा समेत बाकी ऐसे सभी दलों के साथ उनके भारी जैविक असन्‍तुलन के चलते उसकी सम्‍भावनाएं फिलहाल हल्‍की ही साबित हो सकती हैं। कारण यह कि इन दलों और बसपा के डीएनए में मूल-भूत विरोधाभास हैं, जिनकी बर्फ को पिघला पाना मुमकिन नहीं दिखती है।

सच बात तो यह है कि इन दलों में बाकी दल तो फिलहाल चारों खाने चित्‍त हो ही चुके हैं, बेदम हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में अभी खासा दमखम है। यह दोनों दल और बाकी दल मिल कर अगर चाहें तो तत्‍काल तो कोई खास चमत्‍कार नहीं कर सकते, लेकिन वोटों के समीकरणों के चलते भारतीय जनता पार्टी के नियंताओं को खासी मुश्किल में डालने की क्षमता जरूर उत्‍पन्‍न कर सकते हैं।

बशर्ते यह दोनों दल अपने हठ और आग्रहों से हट जाएं, लेकिन फिलहाल तो उनके तेवर देखते हुए ऐसी किसी भी सम्‍भावना की कोई भी सुगबुगाहट नहीं दिख रही है। खास कर पिछले चुनाव में जिस तरह समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को बाकायदा किसी बेदम और लतिहड़ सहयोगी के तौर पर व्‍यवहार किया था। इस पूरे गठबंधन में सपा पूरी तरह खौखियाती ही रही,  जबकि कांग्रेस की भूमिका केवल लगातार मेमने-बकरी की तरह मियायाने तक ही सीमित रही।

अब आइये जरा उन दोनों दलों के जैविक गुणों यानी डीएनए में क्‍या-क्‍या विसंगति, विरोधाभास और अराजकता का समावेश है, जिसके आधार पर ऐसे किसी संतुलन का प्रयोग खासा मुश्किल भरा हो सकता है। यह विरोधाभास ही तो इन दोनों के चारित्रिक विरोधाभासों पर अड़ंगा लगाएंगे, और इन दोनों ही हालत ज्‍योतिष-ज्ञान के अनुसार मंगली बन कर ही रह जाएगी। यानी एक-दूसरे का सम्‍मेलन ही इन दोनों के अस्तित्‍व पर खतरा बन सकता है। गुण-नक्षत्रों के अनुसार मंगली भाव वाले जातकों का मिलना ही उनके सर्वनाश का कारण बन जाता है।

आइये हम आपको बताते हैं कि किन आधारों पर यह रिश्‍तेदारी मंगली भाव में साबित हो सकती है।

बसपा का ध्‍येय लोक-प्रशासन में अपनी धमक बनाने का है। अफसरों की लगाम थामने में बसपा लाजवाब होती है। पुलिस का नियंत्रण बेमिसाल होता है। आम आदमी को कानून-व्‍यवस्‍था को लेकर कोई अराजकता नहीं झेलनी पड़ती है। चाहे वह शेखर त्रिपाठी जैसे विधायक रहे हों, या फिर पुरूषोत्‍तम द्विवेदी, आरोप लगते ही उनका अगला पड़ाव जेल भेजना ही रहा है। मायावती इस मामले में बेहद सख्‍त प्रशासक साबित हुई हैं।

जबकि सपा में इसके धुर विरोधी गुण है। वहां लोक-प्रशासन की कोई अवधारणा ही नहीं है। अफसर जितने वाचाल और अराजक होते हैं समाजवादी पार्टी की सरकार में, वह अपने आप में कीर्तिमान होता है। पुलिस सहयोगी के बजाय आम आदमी के प्रति प्रताड़ना-कर्मचारी की भूमिका में आ जाती है। बडे-बड़े पुलिस अफसर भी सपा सरकार में सपा के दिग्‍गज नेताओं का सार्वजनिक तौर पर चरण-स्‍पर्श करना शुरू कर देते हैं। बड़े मंत्रियों तक पर भी हत्‍या, बलात्‍कार और वसूली के गम्‍भीर आरोप लगे हैं सपा सरकार में, लेकिन यह सारे के सारे नेता-मंत्री किसी छुट्टा सांड़ की तरह मस्‍त रहे।

बसपा में धन की वसूली केंद्रित तौर पर ही प्रचलित है। जो भी उगाही होती है, वह सीधे बसपा मुखिया के नाम पर ही होती है और उसके ही डीहे तक पहुंचायी जाती है। बीच में बिचौलियों की कोई भी भूमिका की व्‍यवस्‍था बसपा में कभी भी नहीं बनायी गयी। खरी मजूरी, चोखा दाम की शैली में हर काम व्‍यवस्थित तरीके से निपटाती है बसपा।

लेकिन सपा में हर नेता सीधे वसूली और उगाही में लिप्‍त रहता है। एक वरिष्‍ठ पत्रकार का कहना है कि अपने कार्यकर्ताओं तक धन के वितरण की जो शैली सपा ने अपनायी है, वह अन्‍यत्र नहीं। सपाई तो खुलेआम उगाही और वसूली में जुटे रहते हैं।

बसपा सरकार में पार्टी के कार्यकर्ताओं को अनुशासन का कड़ा पाठ पढ़ना होता है। अनुशासन ही बसपा की रीढ़ है।

जबकि सपा सरकार की बैक-बोन का असल आधार केवल अराजकता और उश्रंखलता ही है। जितना आक्रामक, अराजक और गुंडई से भरा कार्यकर्ता सपा में होता है, कहीं और नहीं दीखता है।

बसपा ने तो अब मुस्लिम वोटों को समेटने की कोशिश की है, जबकि सपा का आधार ही मुस्लिम वोट है। सपा का वोट बैंक यादव है, और बसपा के वोट बैंक को सपा के इस यादवी वोट पर सख्‍त नापसंदगी है। ठीक यही हालत बसपा के दलित वोट के प्रति सपा के यादवों की राय होती है।

बसपा की मायावती और सपा के अखिलेश यादव भी एक-दूसरे के प्रति निहायत अक्‍खड़ भाव प्रदर्शित करते रहते हैं।

यह दोनों ही दल फिलहाल परास्‍त भाव में हैं। ऐसी हालत में दोनों का ही रवैया एक-दूसरे के प्रति आशंकाओं से भरा है। ऐसी हालत में परस्‍पर मित्रता के सफलीकरण पर आशंकाओं के बादल हमेशा मंडराते ही रहेंगे।

और सबसे बड़ा खतरा मुस्लिम वोटों को लेकर रहेगा। सपा की रीढ़ होती है मुसलमान वोट, और इस बैंक को बसपा के हाथों तनिक भी सेंध लगाने की इजाजत देने की हिमाकत सपा कत्‍तई नहीं करेगी।

यानी अब क्‍या होगा, यह तो भविष्‍य के गर्भ में ही रहेगा।

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दलित वोटों की महारानी मायावती

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