फर्रूखाबाद कांड: झूठ है 23 करोड़ की फिरौती वाली कहानी

दोलत्ती

: आका की विदाई में बड़ा तोहफा देना चाहते पुलिसवाले : आखिर कहां लेकर भागता सुभाष बाथम रकम और जमीन लेकर : दोलत्‍ती का मकसद है झूठी कहानी का पर्दाफाश करना :
कुमार सौवीर
लखनऊ : फर्रूखाबाद के मोहम्‍मदाबाद करथिया गांव में ऐसा कुछ ही नहीं हुआ था, जिसके बारे में फर्रूखाबाद के अखबारों और चैनलों में प्रचारित या प्रकाशित कर दिया गया था। लेकिन ऐसी अफवाहों के चलते देश में हंगामा जरूर खड़ा हो गया। सब कुछ बढ़ा-चढ़ा कर या फिर सिर्फ झूठे धरातल पर पकाया जाता रहा। पल-पल के नाम पर नये-नये शिगूफे खड़े किये जाते रहे और उसकी तस्‍दीक करने की जरूरत भी किसी पत्रकार नहीं समझी। जिसने इसकी जरूरत समझी भी, उसके चैनल ने सिर्फ पॉजिटिव खबरें भेजने का आदेश दिया, और कई अखबारों से कहा गया कि खबरें बहुत संतुलित ही रहना। जाहिर है कि सभी पत्रकार समझ गये। और फर्रूखाबाद में दो मौतों पर मिट्टी डाल दी गयी। इसमें से दो-चार बड़े सवाल अनसुलझे पड़े हैं। यह है कि प्रति बच्चा की एवज में कुल 23 करोड़ रूपयों की फिरौती का शिगूफा किसने छोड़ा था, और क्‍या वहां कोई बम जैसा कुछ मौजूद था। सिर्फ झूठी कहानी बुनी पुलिस ने, और इसी के साथ दो जिन्‍दगी को मौत के आगोश में सुला डाला पुलिस ने।
फिर सवाल यह है कि यह अफवाहें कैसे फैलीं। इसका जवाब भी यहां के पत्रकार ही बता रहे हैं। लेकिन शर्त सिर्फ इतना ही है, कि वे अपना नाम या पहचान जाहिर नहीं करना चाहते। पत्रकार इस कहानी को क्‍लोज कर चुके हैं, वे नहीं चाहते कि वे करथिया पर कुछ और छापें। चाहे वह वहां पुलिस की दी गयी खबर हो कि वहां बम दगा कर सभी बच्‍चों को मारने की साजिश थी, या फिर सुभाष बाथम ने कुल 23 करोड़ रूपयों और हाईवे पर जमीन की मांग रखी थी।
दोलत्‍ती का इस घटना की असलियत को खोलने-खोजने की कवायद का मकसद सिर्फ इतना ही है ताकि भविष्‍य में कोई पुलिसवाला ऐसी झूठी कहानियां सुना कर किसी निर्दोष को पुलिस एनकाउंटर में मारने की साजिश न हो कर पाये। इस मामले में फिरौती वाली मांग किसी के भी गले से नीचे नहीं रही है। कहा जा रहा है कि ग्रामीणों से 23 करोड़ की फिरौती मांग रहा था सुभाष। लेकिन न पुलिस के पास इसका जवाब है और न ही किसी पत्रकार ने इस पर कोई सवाल प्रशासन या पुलिस से पूछा कि 23 करोड़ रूपया और हाईवे पर एक बीघा जमीन की फिरौती वसूल कर सुभाष आखिरकार भागता कहां। फिरौती की वसूल करने के बाद क्‍या पुलिस उसको रिहा कर देती। ऐसी हालत में पुलिस के पास तो सबसे बढिया तरीका यही था कि वह सुभाष की मांग मान लेती, और फिर उसे आसानी से गिरफ्तार कर लेती।
लेकिन आईजी मोहित अग्रवाल का एजेंडा उस समस्‍या को सुलझाना नहीं, बल्कि अपने आकाओं को खुश कराना ही था।
सवाल यह है कि आखिर फिरौती की बात किसने, कैसे और क्‍यों फैलायी। खास तौर पर तब जब मौके पर आईजी मोहित अग्रवाल की मौजूदगी लगातार बनी ही थी। फर्रूखाबाद के एक बड़े अखबार के एक प्रभारी ने अपना नाम न बताये जाने की शर्त पर दोलत्‍ती को बताया कि बंधक बनाये गये बच्‍चों से प्रति बच्‍चा की एवज में एक-एक करोड रूपयों की बात पूरे फलक में सुनी ही नहीं गयी। हां, इस मामले में सुभाष से बातचीत में कर रहे उसके एक मित्र ने ही सुभाष से कहा था कि बच्‍चों को छोड़ दो, हम तुम को कुछ पैसा दिलवा देंगे। बस, पुलिस ने यह बात सुनी, पुलिस ने आईजी को बताया, और आईजी ने लखनऊ में मौजूद अपने आका के कानों तक यह खुफिया जानकारी फुसफुसा कर पहुंचा दी। आका का दिल बल्लियां उछलने लगा। उसे लगा कि इससे बढि़या मस्‍त और क्‍या हो सकता है उसकी विदाई के समारोह में। फिर क्‍या था, प्रति बच्‍चा एक करोड़ रूपया की फिरौती की मांग फिजां में तैरा दी गयीं।
लेकिन किसी भी पुलिसवाले की समझ में यह नहीं आया कि सुभाष कोई आतंकवादी नहीं है जो देश छोड भाग जाएगा। ऐसे में उसका स्‍थान केवल जेल ही होगा। फिरौती की रकम अगर उसे मिल भी जाती तो ऑपरेशन के बाद पुलिस उस रकम को खुद ही जब्‍त कर देती। हाईवे पर जमीन की मांग भी ठीक उसी तरह झूठी थी। जमीन की मांग अगर पूरी की जाती तो भी बिना रजिस्‍ट्री के, उसका कोई मूल्‍य ही नहीं होता। और फिरौती की रजिस्‍ट्री तो होती ही नहीं है। ऐसे में अगर पुलिस की यह कहानी सच है तो फिर उसे दिक्‍कत क्‍या थी। पुलिस के लिए यह बहुत आसान था कि वह यह मांग पूरा कर देती, और बच्‍चों को असानी से रिहा कर लेती। लेकिन उसके बाद सुभाष आखिर जाता कहां, भागता कहां। फिर पुलिस सुभाष और उसकी पत्‍नी को भी आसानी से गिरफ्तार कर लेती। फिर न तो फिरौती देनी होती, और न ही रजिस्‍ट्री का झंझट। लेकिन ऐसा कुछ तो करथिया में हुआ ही नहीं था। सिर्फ हंगामा ही खड़ा करना था मकसद। बस, दो लोगों की जिन्‍दगी को मौत के आगोश सुला डाला पुलिस ने।
यानी तिल का ताड़ बना दिया गया। पूरे देश की सांसें थमा देने जैसा नजारा बुन दिया गया। मुल्‍क को महसूस कराया गया कि वहां कोई कोई प्रताडि़त सिरफिरा नहीं, बल्कि कोई देशद्रोही है। फिर इसके प्‍लानिंग के पूरी हो जाने के बाद पुलिस एक्‍शन में आयी। इसी बीच दीपावली के पटाखे की तरह का एक विस्‍फोट भी हो गया। वह भी चुनाई वाली दीवार पर। धूल उड़ी, और हंगामा खडा हो गया। पुलिस ने अपने बयानों में यह तक कह दिया कि सुभाष ने जो गोली चलायी थी, उसका निशाना आईजी मोहित अग्रवाल ही थे। उनके सीने में गोली लगी, लेकिन वे बाल-बाल बच गये। हैरत की बात है किस इस दौरान किसी भी पुलिसवाले को एक खरोच तक नहीं आयी। हां, सुभाष की मौत पुलिस की गोली से हुई और उसकी पत्‍नी रूबी की पिटाई भीड़ ने कर डाली।
फिरौती और आतंक का चरम उबल जाने के 11 घंटे बीत चुके थे। अचानक पुलिस ने भीड़ के सहयोग में सुभाष के घर का दरवाजा तोड़ना शुरू किया। दरवाजा टूटने के बाद सुभाष और उसकी पत्‍नी रूबी सड़क पर दौड़े। लेकिन सुभाष को पुलिस ने फिर उस घर में वापस भेजा और भीड़ ने रूबी को भीड़ के हवाले का इंतजाम कर दिया गया। एक पत्रकार ने बताया कि उस दौरान सुभाष के पास कोई भी बंदूक आदि नहीं था। फिर यह गोलियां चलने की बातें कैसे दुह डाली पुलिस ने, यह सवाल अनसुलझा है।

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