भारत-अमेरिका: वहां बहादुरों को प्रश्रय, यहां खिल्‍ली

दोलत्ती

: आधा अमेरिका मीडिया को अविश्‍वसनीय मानता है, जबकि भारत की 99 फीसदी पत्रकार बेईमान : जुझारू पत्रकारों का सम्‍मान और समर्थन का माद्दा है अमेरिका में :
दोलत्‍ती संवाददाता
लखनऊ : अमेरिका और भारत में कई साम्‍यता और एकरूपता हैं। अगर मीडिया के बारे में बात की जाए, तो यह साम्‍यता काफी है। लेकिन उनका लहजा और तेवर अलग-अलग हैं, और जाहिर है कि एक-दूसरे के प्रति विपरीत ध्रुवों के स्‍तर तक मौजूद हैं। दोनों ही देश के नागरिक अपने मीडिया पर सवाल उठाते हैं, उसकी विश्‍वसनीयता और उसकी कार्यशैली पर विरोध करते हैं। लेकिन इसके बावजूद इन दोनों का रवैया अलग-अलग प्‍लेटफार्म पर तय होता है।
लखनऊ के स्‍वतंत्र पत्रकार हैं दिलीप कुमार सिन्‍हा। वे पत्रकारिता की उस शाखा से जुड़े हैं जहां सवाल उठाये जाने की परम्‍परा हैं, जहां ऐसे जमीनी सवालों को केवल उकेरा ही नहीं जाता है। बल्कि ऐसे सवालों का जवाब भी खोजने की ईमानदार कोशिशों की ठोस कवायदें भी की जाती हैं। आज अपने फेसबुक पर दिलीप सिन्‍हा ने अमेरिका के लोगों की चिंता जाहिर की है। दिलीप सिन्‍हा का मानना था कि अमेरिका के अंदर ही 50 फीसदी लोग अब मीडिया पर संदेह करते हैं। उनके मुताबिक अमेरिका के 36 प्रतिशत मानते हैं कि मीडिया और पत्रकार खुद गलत खबर दिखाते हैं।
दोलत्‍ती का शोध बताता है कि सच बात तो यही है कि अमेरिकियों का यह लहजा साबित और प्रमाणित ही करता है कि वे समझदार हैं, और यह भी कि वे वाकई समझदार भी हैं।
अमेरिका की जानता इस सत्य को खूब जानती है। वहां की जनता यह भी अच्छी तरह जानती है कि पत्रकारिता का झंडा उठाए पत्रकारों को कैसे सम्मान मिले। और उनके हितों को प्रति अपना दायित्व और संरक्षण कैसे करे। जनता अपने स्तर पर भी ऐसे समर्पित पत्रकारों के लिए ठोस प्रयास की रणनीति बनाती है और उसे लागू भी करती है। वे फर्जी खबरों का खुलासा भी करते हैं।
लेकिन भारत की जनता असली पत्रकारों को प्रश्रय देने के प्रति उपेक्षा-भाव रखती है। यहां दलालों और झूठों की ही वाहवाही होती है। हमारे यहां तो बमुश्किलन एक फीसदी पत्रकार वाकई अविश्वसनीय, दलाल, षड्यंत्रकारी, ब्लैकमेलर और अपराधी हैं। दिल्‍ली में हुए चुनाव में कोई पत्रकार-संपादक न्‍यूज रूम में नाचने लगा, तो कोई नारे लगाने लगा था। लखनऊ के एक बड़े पत्रकार के बारे में तो यह बताया जाता है कि शराब के नशे में वे रोजाना हंगामा खड़ा करते हैं और जिस हफ्ते उनकी पिटाई नहीं होती है, उनका पेट साफ नहीं हो पाता है। अपने इसी दायित्‍व के चलते वे देश के कई जिलों में मार खा चुके हैं। खबरों और तथ्‍यों में तोड़फोड़ और हेराफेरी करने को लेकर दलाली के क्षेत्र में देश के पत्रकारों का नाम खासा मशहूर है।
लेकिन इस सत्‍य को आम भारतीय खूब जानता और समझता है। लेकिन इन पत्रकारों की भीड़ में बमुश्किलन एक फीसदी असली पत्रकारों की हौसलाआफजाई के लिए कोई भी भारतीय या कोई संगठन सामने नहीं आता। जुझारू पत्रकारों की मदद के लिए तो कोई भी खड़ा नहीं होता। बल्कि अगर कभी कोई असली पत्रकार किसी समस्‍या में फंस जाए, तो उससे मुंह चुरा कर लोग भाग निकलते हैं। जबकि अमेरिका में ऐसा नहीं है।
अमेरिका में किसी पत्रकार पर हमला हो जाए, या वह किसी संकट में आ जाए, तो अमेरिकी सामने खड़े हो जाते हैं, जबकि भारत में पत्रकारों को मौत की कगार में खड़ा देखकर आम आदमी उस पत्रकार को धक्‍का मार कर खाई में फेंकने से परहेज नहीं करते।

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