: गिड़गिड़ाते जजों ने लगायी रहम की अर्जी कि माफी मांग लो : गेंद अब प्रशांत भूषण के पाले में : भविष्य में किसी को मुंह लायक नहीं बचेंगे ऐसे जज :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सर्दियों का महीना था। फैजाबाद के एक रंगबाज रात करीब साढ़े नौ बजे चौक में नशे में टल्ली होकर लड़खड़ा रहे थे। पास खड़े एक ऑटोवाले से हड़काते हुए बोले कि चल बे, मियांवागंज चल। निहायत बदतमीजी पर आमादा दिखाते इस रंगबाज की नशेड़ी वाली हालत देख ऑटोवाले ने रुखाई के साथ जवाब दिया कि साहब ऑटो में पेट्रोल नहीं है।
रंगबाज का मूड खराब हो गया। उनका एक मित्र हम-प्याला और हम-निवाला था और चौक कोतवाली में ही हेड मुहर्रिर के पद पर तैनात था। रंगबाज ने सोचा कि हेड मुहर्रिर से मिल कर इस ऑटोवाले को सबक सिखाया जाए। न हुआ तो दो-चार डंडे और गालियां तो इसको दिलवा ही दूंगा। यह सोच कर रंगबाज को हड़काते हुए कहा कि चलो कोतवाली चलो, अभी तुम्हारी सारी हेकड़ी निकालता हूं। तुम्हें जेल में बंद न करवाया तो कुत्ते के पेशाब से अपनी मूंछ मुंड़वा लूंगा।
ऑटोरिक्शावाला भी गजब का हेकड़ीबाज निकला। बगल में खुले देशी ठेके से उसने दारू का पाउच लिया, और खड़े-खड़े सिर उठा कर गटागट उदरस्थ किया। किनकिनाते हुए सिर को चार-छह बार झटका दिया, एक सिगरेट सुलगाई और फिर बोला कि चलो। ले चलो मुझे कोतवाली में, और बंद करा दो मुझे जेल में।
दोनों ही दोनों सीधे कोतवाली पहुंचे। ऑटोवाले को बाहर ही रोका और फिर कोतवाली में घुस कर अपने हेड मुहर्रिर को खोजना शुरू किया। लेकिन वह सीट से नदारत। पता चला कि शाम को ही वे अपने दोस्तों के साथ एक पार्टी में झमाझम करने गये हैं। लेकिन इसी बीच एक पुलिसवाले ने सूंघ लिया कि रंगबाज बहुत ज्यादा नशे में है। उसका मूड खराब हो गया और उसने बहुत बदतमीजी से रंगबाज को हड़काया, गालियां और पीठ पर एक करारा धौल जमा कर धकेल दिया। रंगबाज जमीन पर गिरने से ही बचे। लेकिन उनका नशा आधा से भी कम बचा। उन्होंने अपनी इज्जत बचाने में ही भलाई समझी। इसके पहले कि कई और झांपड़-थप्पड़ पड़ जाते, वे तेजी के साथ कमरे से बाहर निकल गये।
लेकिन अब उस ऑटोवाले को क्या जवाब दें, यह समझ में नहीं आ रहा था। आखिरकार कुछ फैसला सा किया और थाने के बाहर खड़े ऑटोवाले के पास पहुंचे। बोले कि चलो कोई बात नहीं। इस रात को तुम्हें क्या डंडे रसीद करवाऊं। जाडे़ का वक्त है, जिन्दगी भर हड्डियां चिटकने लगेंगी। जाओ, चले जाओ। वरना पुलिसवाले आ कर तुम्हें धुन देंगे। तुम्हारीहड्डी-पसली एक कर देंगे।
लेकिन ऑटोवाला तो दूसरे ही पानी का निकला। बोला कि आप क्या पिटवायेंगे? मैं खुद ही पिट जाने को तैयार हूं। पुलिसवालों को आने में अगर दिक्कत हो रही है या देरी हो रही है तो क्या हुआ? मैं खुद ही थाने में जाकर पुलिसवालों के सामने पिटने को तैयार हूं। चलिए, चलिए। मेरे साथ चलिए।
यह कह कर ऑटोवाले ने रंगबाज का हाथ पकड़ा और सीधे थाने की ओर बाकायदा घसीटने के अंदाज में बढ़ गया।
अब तो सारे होश ही फाख्ता हो गये रंगबाज के। रहा-बचा होश भी धड़ाम से मुंह के बल गिरा। बचाव के लिए उन्होंने कहा कि रुको तो, मैं पेशाब तो कर लूं। यह कहते ही रंगबाज ने हाथ झटका और सड़क के किनारे नाली पर धार बना कर फारिग होने लगे। डगमगाते हुए उन्होंने पैंट की जिप बंद कर मुड़े तो पूरा मूड ही चक्करघिन्नी हो गया। पाया कि ऑटोवाला तो उनके ठीक पीछे खड़ा उनकी प्रतीक्षा में था। ऑटोवाले फिर से उनका हाथ पकड़ने को लपका कि चलो मुझे थाने में पिटवाने के लिए।
अब क्या करे रंगबाज। उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। लेकिन उन्होंने पहले तो उसका अपनी ओर लपकते हाथ को झटका और फिर हल्की दौड़ लेकर उससे दूरी बनायी। फिर यह कहते हुए वे तेजी कदमों से आगे बढ़ने लगे कि:- चलो भक्क। अब मैं तुम्हारा मुंह नहीं लगना चाहता।
अभी कोई पचास कदम ही आगे बढ़े होंगे कि रंगबाज ने पाया कि ऑटो चलाते हुए ऑटोवाला उनके बगल तक आ गया। ऑटो की आवाज उनके हलक तक फांस में धंसने लगी। दिल तेजी से धड़कने लगा कि फिर कोई बवाल न हो जाए। यह सोचते ही उन्होंने अपने कदम तेज कर लिये।
लेकिन इसी बीच ऑटोवाले की आवाज आयी:- अरे परेशान न हो साहब। कड़ाके की सर्दी हैं। आओ, मैं आपको मियांवा छोड़ दूं। मैं भी उसी तरफ जा रहा हूं। यह भी देख चुका हूं कि थाने में सिपाही ने तुमको किस तरह तेज धक्का दिया था। वह तो आपकी बातचीत का लहजा बुरा था, इसलिए मैंने मना कर दिया था कि पेट्रोल खत्म हो गया है। वरना पहले ही छोड़ देता। टंकी फुल है, लेकिन आइंदा किसी के साथ ऐसा मत कीजिएगा।
रंगबाज ऑटो में पस्त होकर बैठा और ऑटो की रॉड पकड़ कर सिर टिका लिया। ऑटोवाले ने ऑटो का हैंडल खींच कर स्टार्ट किया और घुर्र-घुर्र की आवाज में ऑटो रफ्तार पकड़ने लगा। लेकिन इस घुर्र-घुर्र की इस आवाज से रंगबाज को ऐसा लगने लगा कि उन्हें सड़क पर घसीटा जा रहा है।