: एक जुझारू जज ने अपनी सेवा के अधीनस्थ अधिकारियों की सलाह की एक लिस्ट बनायी है : एक जज की आत्मकथा- नौ :
राजेंद्र सिंह
बांदा: (गतांक से आगे) हम लोग रात की ट्रेन से मानिकपुर से लौटे । कॉलोनी के अंदर पहुंचने पर श्री सिन्हा साहेब से आमना सामना हुआ ।बोले यार राजिन्दर तुम लोग कहाँ थे ।मैं बोला सर , आप सभी को पत्र भेजा था । सिन्हा साहेब पान के शौकीन और प्यारी भोजपुरी भाषा में बोलते थे ।इस समय लखनऊ में है । इस घटना के बाद मेरे और विवेक से काफी लोग नाराज़ हुए पर हम लोगों की बात में वज़न था।
जज साहेब चले गए प्रतापगढ़ और वहां पर उनकी कोर्ट का वकीलों ने बहुत समय तक बॉयकॉट किया । नए जज साहब ने कार्य भार ग्रहण किया । मेरे कार्य से मुझे मानने लगे । आप नहीं आप का काम बोलता है ।लोगों ने घुसपैठ करने की कोशिश की । सफल नहीं हुए ।जज साहब के बारे में एक किवदंती मशहूर थी कि वे अवकाश पर थे । उनके एजे संभवतः जज एएन दीक्षित कानपुर जा रहे थे । ये तब फतेहपुर के डीजे थे। एजे की हिदायत थी कि बन्द गले के क्रीम कलर के कोट में लोग मिले ।जज साहब साधारण यूनिफार्म में पहुंचे । एजे साहेब के टोकने पर बोले कि ये आपकी ऑफिशियल विज़िट नहीं है इसलिए कोट नहीं पहना ।
एक दिन हम 4,5 लोग मिलने गए ।जज साहेब ने अपने लॉन से आवाज दी और चपरासी को बुलाकर कहा कि अरे वो पेठा ले आओ जो कल मनपोखि लाल लाये थे । इस तरह पोल खोल देने वाले थे ।छवि ईमानदार वाली थी । इसी बीच रेलवे कोर्ट एसीजेएम स्तर की कर दी गई । बाँदा में मुंसिफ़ की अतिरिक्त कोर्ट न होने से मेरा स्थानांतरण जुलाई में हुआ उन्नाव के मुंसिफ दक्षिणी के पैरेंट कोर्ट में ।मैंने 6 माह तक बाँदा से अप डाउन किया और तबियत काफ़ी बिगड़ने पर एक माह का चिकित्सीय अवकाश लेना पड़ा । अधिकारी मुट्ठीभर मेरे फेयरवेल के विरोधियों को मुँह की खानी पड़ी और मेरा फेयरवेल किया गया । मेरे ट्रांसफर के बाद दो बातें हुई ।
जज साहब को शिकायत की गई कि मैं सरकारी आवास से एक पंखा निकाल ले गया हूँ । जज साहब का घर इलाहाबाद में पापा के घर के पास ही है । वे पापा से मिलने आये और हमें ये बताया ।मैंने कहा, सर आप शिक़ायत पर मुझसे डीजे उन्नाव के माध्यम से आख्या मांग ले । उन्होंने ऐसा किया । मैंने अपने उत्तर के साथ मकान का चार्ज लेते समय वस्तुओं की प्राप्ति की प्रति भी भेज दी और जितने पंखे चार्ज में लिए थे , उतने ही वापस करने की प्राप्ति थी ।उसके बाद तो बाँदा के संबधित नजारत की अच्छी क्लास ली गई ।
गुप्ता जज साहब अपना सामान एक कमरे में बंद कर गए थे । बाद में एक दिन रात में ट्रक कर अपना सामान ले गये और साथ मे बंगले के दो सरकारी कालीन भी ले गए। पूछताछ हुई पर साफ उत्तर न मिलने पर जेबी सिंह जज साहब ने मामला हाई कोर्ट संदर्भित कर दिया । उसके बाद जब हाई कोर्ट से लिखा पढ़ी हुई तो कालीन वापस आ गया इस नोट के साथ कि बाँदा के स्टाफ ने गलती से लाद दिया था और समान खुला नहीं था इसलिए पहले जानकारी नहीं हो पाई । ये बात भी मुझे जज साहब ने बताई थी।
तब इस तरह बाँदा बकुल कथा समाप्त हुई । दो बातें ध्यान में रखनी होती हैं….
जब भी मकान का कब्ज़ा मिले, उसके समान पंखे, टयूब लाइट , वाश बेसिन, सिंक, फर्नीचर की लिस्ट बनाकर बिजली मीटर रीडिंग नोट करो और सेंट्रल नज़ीर के हस्ताक्षर ले कर अपने रिकॉर्ड में संभाल कर रखो ।
स्थानांतरण होने पर इन सबका चार्ज देकर प्राप्ति प्राप्त करो और लास्ट बिजली मीटर रीडिंग नोट करो ।अगर मीटर तुम्हारे नाम से है तो लिखित रूप से विछेदन कराओ । प्रार्थना पत्र के साथ डिस्कनेक्शन चार्ज की फीस जमाकर रसीद संभाल कर रखो ।
Rest. Do whatever u want to do in the framework of Government Servant Conduct Rules.(समाप्त)
राजेंद्र सिंह यूपी के उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ न्यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्हें कई बार वरिष्ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्सा अब आत्मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्मकथा के सभी अंकों को पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्मकथा