एक अखबार है आर्यावर्त, आजकल उस पर सनिच्‍चर चढ़ा है

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: किसी बड़े अखबार को दो-कौड़ी का बनते देखना हो तो आर्यावर्त बांचियेगा : विचित्र-यंत्र विज्ञापन-पत्र की लाइन में चढ़ता जा रहा है बिहार का यह अखबार : शनिचर देव की उपासना में तो दिन-रात जुटा है य‍ह अखबार, मगर भाषा की देवी सरस्‍वती को रौंद डाला :

कुमार सौवीर

पटना : आप यकीन नहीं मानेंगे, लेकिन सच यही है कि अपनी सारी खूबियों-गुणों को गया में तिरोहित कर चुका एक अखबार अब शनि-देव की ड्योढ़ी पर माथा टेकने लगा है। जब कि पहले तक यह अखबार अपनी ताजा-तरीन खबरों और अपने तेवरों के लिए ही मशहूर था। मगर आज हालत यह है कि खबरों का स्‍तर सम्‍भालने के बजाय अब यह अखबार अपनी सारी प्रतिष्‍ठा को ही डुबाने पर आमादा दिख रहा है। देवी, देवता, भगवान और यहां तक कि शनिश्‍चर भगवान तक की स्‍तुति-आरती गाने-गवाने का धंधा अपनाता दिख रहा है।

जी हां, इस दैनिक समाचार पत्र का नाम है आर्यावर्त। पटना समेत कई प्रमुख शहरों में इसके एडीशन-संस्‍करण निकलते हैं। यह अखबार करीब 35 साल पुराना है। जगन्‍नाथ मिश्र की जागीर माना जाता है य‍ह अखबार। शुरू में तो यह पूरे तामा-झामा के साथ दौड़ा, लेकिन आजकल तो यह बिलकुल दो-कौड़ी का अखबार बनता जा रहा है। गम्‍भीरता चाहे खबर की हो, भाषा की, या फिर प्रस्‍तुतिकरण की, हालत यह कि यह अखबार बिलकुल बकवास और दो-कौड़ी के स्‍तर का ही हो चुका।

बताते हैं कि यह अखबार आजकल आर्थिक संकटों में है। इसके लिए उसने अपना स्‍टॉफ में छंटनी कर खुद को सम्‍भालने की कवायद छेड़ दी थी। नतीजा यह हुआ कि इस अखबार का स्‍तर ही शिखर से तहलटी की ओर सरकने लगा। भाषा, जो किसी भी अखबार या किसी भी समाचार संस्‍थान की अनिवार्य प्राथमिकताओं में से एक मानी जाती है, आर्यावर्त दैनिक में उसका लोप होने लगा। न व्‍याकरण, न भाषा, न वर्तनी। जो कुछ भी है, वह है सिर्फ और सिर्फ धकापेल। न कोई पूछने वाला है, न कोई समझने वाला।

ताजा मामला देखिये मधुबनी से आये और प्रकाशित समाचार को। धड़ल्‍ले को धरल्‍ले और जारी को जाड़ी जैसे शब्‍द इस्‍तेताल किये जा रहे हैं। अधिकांश अखबार में यही धरपेल चल रही है। लेकिन इसके मालिकों और सम्‍पादकों को लगता है कि इस हालत को सम्‍भालने के बजाय सीधे अब सनिच्‍चर भगवान के पांव पखार लिया जाए, तो मामला साधा-सुधारा जा सकता है। सनिच्‍चर जी की कृपा जब होगी, तो अखबार का उद्धार अपने ही आप हो जाएगा।

है कि नहीं ?

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