क्‍या वाकई हुई थी चकबंदी आयुक्‍त की पिटाई !

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: इंदिरा भवन के चकबंदी दफ्तर में पिटाई हुई थी या फिर आपस में हाथापाई : दफ्तर में बवाल पर अब उगने लगे हैं कई गहरे सवाल : जो गम्‍भीर रूप से बीमार है, वह कैसे कर सकता है किसी की पिटाई : फिलहाल तो राकेश पाण्‍डेय के गुर्दे से खून बह रहा है, तबियत गम्‍भीर : ताकि सांच तक आंच न आ सके (एक)

कुमार सौवीर

लखनऊ : पिछले दिनों इन्दिरा भवन में अचानक बवंडर मचा। पता चला कि यहां बने चकबंदी आयुक्‍त कार्यालय में बवाल हुआ है। फिर खबर आयी कि एक चकबंदी अधिकारी के साथ आये पांच-सात लोगों ने चकबंदी आयुक्‍त डॉ हरीओम को जमकर पीट दिया है। खबर यह भी आयी कि इस हादसे में हरीओम को हमलावरों ने मेज पर पटक दिया था और फिर पेपरवेट से उनके चेहरे पर कूंच दिया। लेकिन पाठकों, यह मामला केवल यहीं तक नहीं सिमट जा पा रहा है। कई ऐसी खबरें और तथ्‍य तथा सवाल उठ रहे हैं जिनसे इस पूरी कहानी पर्त-दर-पर्त उधड़ सकती है।

बहरहाल, उस चकबंदी अधिकारी का नाम है राकेश पाण्‍डेय। उम्र होगी करीब 58 बरस। उस हादसे के बाद राकेश पाण्‍डेय एक अस्‍पताल में भर्ती हो गया। उधर हरीओम भी अस्‍पताल में गये। वहां डॉ हरीओम ने मांग की कि राकेश पाण्‍डेय को अस्‍पताल में भर्ती करने वाले डॉक्‍टरों और उसे भर्ती के कारणों की जांच की जानी चाहिए। यह भी मांग की कि जांच हो कि राकेश को कोई बीमारी है भी या नहीं, कैसा तो नहीं कि वह शातिर हमलावर अपनी जान बचाने के लिए अब अस्‍पताल और डाक्‍टरों के दामन में छिपने का सहारा खोज रहा हो।

अब चूंकि यह मामला एक सचिव स्‍तर के एक अधिकारी का था, इसलिए पूरी आईएएस लॉबी ही राकेश पाण्‍डेय के खिलाफ हो गयी। आनन-फानन डॉक्‍टर हरीओम को विशेष सुरक्षा की व्‍वस्‍था की गयी, ताकि हरीओम पर कोई ऐसा हमला आइंदा न हो सके और यह भी कि हरीओम सुरक्षित रहें।

लेकिन इससे किसी को कोई भी दिक्‍कत-शिकायत नहीं हो सकती है। हर शख्‍स की सुरक्षा की गारंटी तो होनी ही चाहिए। लेकिन यहां मामला बड़ा पेंचीदा है। खासतौर पर दफ्तर के भीतर हुए काण्‍ड को लेकर।

अब तक मेरे तीन घनिष्‍ठ वरिष्‍ठ अधिकारी मित्रों ने मुझसे इस बात पर सख्‍त ऐतराज जताया है कि डॉ हरीओम के मामले में मीडिया ने बहुत अराजक, गैरजिम्‍मेदार और निहायत लापरवाह व स्‍वार्थी नजरिया प्रदर्शित किया है। कहने की जरूरत नहीं कि मैं अपने इस तीनों मित्रों से पूरी तरह सहमत हूं। इतना ही नहीं, जब मैंने इस मामले में प्रशासन और पुलिस के अन्‍य वरिष्‍ठ अधिकारी मित्रों से पूछताछ की तो वे भी ऐसे सवालों पर बेहद संजीदा थे।

आइये, हम आपको इस मामले के भीतर झांकने की कोशिश कराते हैं, जहां आप इस पूरे मामले को पूरी तरह तार्किक तरीके से देख सकेंगे। वजह यह कि तस्‍वीर वह ही नहीं होती है, जो दिखती या फिर दिखायी जाती है। अक्‍सर तस्‍वीर होती है जिसे छिपाया जाता है, पाताल तक। ताकि लोगबाग उस तस्‍वीर को ही देख पायेंगे, जिन्‍हें दिखाया जा रहा हो।

तो हम आपको इस मामले की हर एक परत तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। प्रयास करेंगे कि जो सवाल और तर्क समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों से इस मामले में उठ रहे हैं, उन्‍हें सुलझाया जा सके। इसके लिए यह मामला-रिपार्ट अब हम श्रंखलाबद्ध प्रकाशित करेंगे।

हर रोज एक एपीसोड, ताकि सांच तक आंच न आ सके

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