: एक-दूसरे गांव की ओर दलिद्दर को भगाने-ठेलने की परम्परा के चलते आज भी समाज-गांवों में अस्तित्व में है दलिद्दर : लक्ष्मी मिठाई खाने घर के अंदर तक आती हैं। अलक्ष्मी नींबू और मिर्ची खाकर घर के दरवाज़े से ही संतुष्ट लौट जाती हैं :
ध्रुव गुप्त
पटना : बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्र में दिवाली की अगली सुबह घर से दलिदर भगाने की प्राचीन परंपरा है। गांव की स्त्रियां टोली बनाकर ब्रह्म बेला में हाथ में सूप और छड़ी लेकर घरों से निकलती हैं और सूप बजाते हुए दलिदर को दूसरे गांव की सीमा तक खदेड़ आती हैं। दलिदर भगाने की यह लोक परंपरा की जड़ें पुराणों में खोजी जा सकती हैं। पुराणों में समुद्र मंथन में कई रत्नों के साथ सुख और वैभव की देवी लक्ष्मी के पहले समुद्र से लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रता और दुर्भाग्य की देवी अलक्ष्मी के अवतरित होने की कथा है। वृद्धा और कुरूप अलक्ष्मी को देवताओं ने उन घरों में जाकर रहने को कहा जिन घरों में कलह होता रहता है।
लिंगपुराण की कथा के अनुसार अलक्षमी का विवाह ब्राह्मण दु:सह से हुआ जिसके पाताल चले जाने के बाद वह अकेली एक पीपल के वृक्ष के नीचे रहने लगीं। वहीं हर शनिवार को लक्ष्मी उससे मिलने आती हैं। यही कारण है कि शनिवार को पीपल का स्पर्श समृद्धि तथा अन्य दिनों में दरिद्रता देनेवाला माना जाता है। लक्ष्मी को मिष्ठान्न प्रिय है, अलक्ष्मी को खट्टी और कड़वी चीज़ें। इसी वजह से मिठाई घर के भीतर रखी जाती है और नीबू तथा तीखी मिर्ची घर के बाहर। लक्ष्मी मिठाई खाने घर के अंदर तक आती हैं। अलक्ष्मी नींबू और मिर्ची खाकर घर के दरवाज़े से ही संतुष्ट लौट जाती हैं।
दरिद्रता की इसी देवी अलक्ष्मी को दलिदर कहकर भगाया जाता है। गांव की औरतें उसे दूसरे गांव के सिवान तक खदेड़ आती है। दूसरे गांव की औरतें भी यही करती हैं। इस तरह इलाके के तमाम गांवों की औरतों में दलिदर को बगल वाले गांव की सीमा तक छोड़ने की ऐसी प्रतिस्पर्द्धा चलती है कि दलिदर को इलाके से निकलने का कोई रास्ता ही नहीं मिलता।
शायद यही वज़ह है कि सदियों तक खदेड़े जाने के बावजूद देश में दलिदर आज भी जस का तस बना हुआ है।
( ध्रुव गुप्त बिहार में आईपीएस अफसर रह चुके हैं। उनके आलेख चर्चित हैं। )