सुनो, शार्पशूटर असगर अली ! नरभक्षी अवनि नहीं, नरभक्षी हैं मैं, तुम, वह और हमारी आदमज़ात

बिटिया खबर
: निरीह बाघिन को एक हृदयहीन मुख्यमंत्री के कह देने भर से मार डाला : दशहरे के दिन इतने लोगों को कुचलते हुए एक ट्रेन निकल गई थी अभी, क्या तेरी बंदूक उठी किसी असली कुसूरवार पर? : ओ हत्यारे, तू अवनि का नहीं, तू सीता का हत्यारा है :

त्रिभुवन
सुनो, शार्पशूटर असगर अली! तुमने एक निरीह बाघिन को नृशंसतापूर्वक सिर्फ़ कुछ सरकारी अफसरों और एक हृदयहीन मुख्यमंत्री के कह देने भर से मार डाला। क्या तुम जवाब दे पाओगे मेरे कुछ प्रश्नों का? कहते हैं कि अवनि ने खेतों में काम करते और खुले में शौच करते लोगों को मार डाला। लेकिन क्या ये सच नहीं कि ये अवनि के ही पुरखों का जंगल नहीं था?
आज जंगल नष्ट किये जा रहे हैं। जिन जंगलों से मस्ताना हवाएं आती थीं, उनको क्या अवनि ने नष्ट किया था? जिनके कारण बरसती थी घनघोर घटाएं, पर्वतों पर अठखेलियां करते उन सघन वनों और उपत्यकाओं को क्या अवनि के किसी पिता, माता या दादा या नाना ने नष्ट किया था?
जो बरखाएं भाती हैं, तुम को हम को, और जो न आएं तो भूखों मरते हैं इस धरती के सब जीव-जंत। क्या वह बरखाएं अवनि के जंगल से नहीं आती थीं? और अवनि के उन जंगलों को कौन नष्ट कर रहा है? ओ क्रूर अधर्मी, अरे नर पिशाच बता कि अगर ऐसे ही मेरे वतन में कोई 13 लोगों को मार देता है तो तो तू क्यों नहीं निकल पड़ता अपनी बंदूक लेकर? क्या दशहरे के दिन इतने लोगों को कुचलते हुए एक ट्रेन निकल गई थी अभी, क्या तेरी बंदूक उठी किसी असली कुसूरवार पर? लेकिन वहां तो लोग ही कुसूरवार लग रहे थे सब!
बता जो समरसता को नष्ट करते हैं, तू और तेरी बंदूक अवनि से पहले उन्हें क्यों नहीं देखते? तू क्यों नहीं उन्हें देखता जो सुहानी रातों के चांद सितारों को देखने वाली आंखों की शक्ति को यौवन में ही हरण कर लेते हैं। तू क्यों नहीं अपनी बंदूक उठाता, जो लोग माताओं के आंगन से शादाबो शगुफ्ता फूलों से गुलज़ार आंगन को नष्ट कर देते हैं?
अवनि की कराहती आत्मा पूछती तो होगी कि अरे दुष्ट, तू मानुस तो हुआ, लेकिन रसखान जैसा क्यों नहीं हुआ? तू गोडसे से भी घातक क्यों हो गया? तू कम से कम गोकुल के गांवों और ग्वालों को नष्ट करने वालों पर भी अपनी बंदूक इस्तेमाल कर लेता! अपनी बंदूक एक बार उन पर भी आजमाकर देख लेता, जो नंद की धेनु को दर-दर भटकने को छोड़ रहे हैं। अपनी बंदूक का भय जरा उनमें भी कर देता, जो उस पाहन या गिरि को आज खोद खोद कर धन वैभव की लूट मचा रहे हैं, अगर पत्थर भी बनूं तो भी उस पर्वत का बनूँ जिसे हरि ने अपनी तर्जनी पर उठाकर ब्रज को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था।
ओ हृदयहीन, तू अवनि को नाहक ही नरभक्षी बता रहा है। क्या नरभक्षी से भी ख़तरनाक़ वे लोग नहीं हैं, जो गंगा और यमुना के नाम पर दिन भर झूठ और पाप का कारोबार करते हैं और प्रकृति की इस अदभुत नेमत को नष्ट कर रहे हैं। क्या तूने कभी सोचा कि इस देश में कदम्ब की डालों वाली अतुलनीय जगहों को किसने नष्ट किया?
क्या तुम कभी देखते हो कि कहां चली जाती है वह मालन जो बाज़ार में लाया करती थी फूलों के गुंथे हार और ढेर सारी कच्ची ताज़ा सब्जियां और अपने ओढ़ने की वह वनैली महक। कहां हैं वे घन-सघन विटप, जिन से बंधते थे, सावन के रस्से?
ओ निस्पृह निष्पाप अवनि के हत्यारे, क्या तुमने कभी उन पर बंदूक उठाई, जो शाम पड़ते ही गलियों में पसर जाने वाले अंधयारे के बीच ही नहीं, भरी दुपहरी लूटपाट और हत्याएं करते हैं? क्या तुमने कभी वन्य प्रदेशों की घनेरी शाखों और सवेरों का भक्षण करने वाले अमानुषिक जीवों की तरफ देख सके हो?
ओ हृदयहीन, क्या तुम इस देश के शहरों में निष्पाप और भोली भाली जवानियों को मदभरी राहों पर डाल देने वाले हिंसक प्राणियों के बारे में गौर करोगे? क्या कभी तू सोच पाएगा कि यह अवनि नहीं, नरभक्षी वह मानसिकता है, जो महकते मंदिरों से आती शंख ध्वनियों में धर्मांधता का विष भरती है? क्या कभी तेरी बंदूक ऐसे लोगों पर उठेगी, जो मुक़द्दस मस्जिद से आती मस्ताना आवाज़ों में मतांधता की बलबलाहट भरती हैं?
एक समय था जब सियासत न थी। एक समय था अवनि को अवनि माना जाता था। एक समय था जब वही पवित्र थी। एक समय था जब वह पाप नाशिनी देवी दुर्गा का वाहन थी। लेकिन क्या तुमने सोचा कि कुछ वोटों के लालच में एक मूर्ख मुख्यमंत्री ने एक देवी से विश्वासघात किया है और वह उसी के शाप से एक दिन ऐसे ही मारा जाएगा! यह वही मूर्ख राजनेता है, यह वही मूर्ख बुद्धिजीवी हैं, जो नरभक्षी नरभक्षी चिल्ला रहे हैं और यह नहीं देख रहे कि लक्ष्मण रेखा कौन लांघ रहा है?
ओ कर्महीन बता कि अवनि नरभक्षी है या वे लोग जो पनघटों को खा गए, जो पनहारियों को दर बदर करके बॉटल बंद पानी बेचने का कारोबार कर रहे हैं? क्या कभी तेरी बंदूक देखेगी कि रुपए-पैसे के नक्शे बनाकर कौन हंसती खिलखिलाती भारत माता के सिर पर से गागर उठाकर परे फेंक गया?
क्‍या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं? ओ अवनि के हत्यारे, तू बता कि चांद की रोशनी को गंदला करके तारे अदृश्य कर देने का अपराध किसने किया?
ओ हत्यारे, तू अवनि का नहीं, तू सीता का हत्यारा है। तू नहीं जानता कि अवनि जहां मारी गई, वह अवनि का घर था, जहां लोग मारे गए, वह अवनि का आंगन था और लोग उस आंगन में आए तो अवनि क्या करती?
ओ हत्यारे, अवनि नहीं नरभक्षी, नरभक्षी, तू, नरभक्षी वह मूर्ख मुख्यमंत्री, जिसने अवनि को नरभक्षी बताया, नरभक्षी मैं वह ख़बर लिखने वाला, जिसने बार-बार लिखा नरभक्षी बाघिन नरभक्षी बाघिन। नरभक्षी वह अदालत, जिसने एक अवनि का दर्द न समझा!
नरभक्षी, मैं, तुम, वह और हमारी आदमज़ात!

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