दुर्दांत विकास दुबे चाहिए ? पार्टियों के दफ्तर में होगा

दोलत्ती

: आठ पुलिसवालों को नृशंसता के साथ मार डालने वाला विकास दुबे की पत्‍नी सपा से चुनाव लड़ चुकी : अब तो सभी दल भी दुर्दांत अपराधियों की शरण-स्‍थली बने : एक मंत्री के साथ भी विकास ने फोटो खिंचवायी थी।

कुमार सौवीर

लखनऊ : आज से विकास दूबे की दूकान अब मीडिया से लेकर राजनीति में खूब चलेगी। इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि कानपुर में सीओ समेत आठ पुलिसवालों की नृशंसतापूर्ण हत्‍या करने वाला विकास दुबे को पुलिस नहीं खोज पायी है। बताते हैं कि विकास फिलहाल कानपुर ही नहीं, प्रदेश के बाहर भी निकल चुका है। वजह है कि उसको मिला ऊंचा राजनीतिक प्रश्रय। एक उच्‍च पदस्‍थ पुलिस सूत्र ने दोलत्‍ती संवाददाता को बताया है कि दोहपर के आसपास विकास उरई के आसपास पहुंच चुका था। अगर ऐसा है तो फिर उसका मकसद जल्‍द से जल्‍द मध्‍यप्रदेश पहुंच जाना है। वैसे सूत्र बताते हैं कि पुलिस ने इस मामले में अपनी चौकसी तेज कर दी है।
एक दौर हुआ करता था जब समाजवादी पार्टी का नाम, धाम, काम और रसूख-धमक का सूरज सिर्फ अपराधियों के बाहुबल के चलते दमकता रहता था। इनमें भी बड़े-बड़े दुर्दांत, नृशंस और कुख्‍यात अपराधियों का नाम इस भास्‍कर-क्षेत्र में दमदम चमका रहता था। चाहे वह मुख्‍तार अंसारी रहे हैं, या फिर डीपी यादव, उमाकांत यादव और रमाकांत यादव जैसे लोग, सब के सब मुलायम सिंह यादव और उनके खानदान के सिरमौर पर टंके हीरे-जवाहरात की हैसियत होते थे। यही वजह है कि सपा के करीबियों ने भीअपराधियों के साथ गल-बहियां खुलेआम करनी शुरू कर दीं। नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी का नाम सुनते ही लोग थरथर कांपने लगते थे। समाजवादी पार्टी का नाम अपराध, अराजकता ओर खून-खराबा जैसी हरकतों में लिप्‍त लोगों के गिरोह का पर्याय बन चुकी थी, जिसके लोग अपनी सरकार बनते ही जनता पर ही टूट पड़ते थे।

अपना दल कभी अपनी सरकार नहीं बना सका, लेकिन उसमें अपराधियों की भरमार बतायी जाती है। यही हालत पीस पार्टी की रही। पीस पार्टी के संस्‍थापक डॉ अयूब खुद ही एक युवती के साथ दुराचार और हत्‍या में फंस गये। यही हालत अमरमणि त्रिपाठी और उसके बेटे अमनमणि त्रिपाठी की भी रही। अपनी पत्‍नी की हत्‍या के साथ ही साथ वह सफेद झूठ बोल कर केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने का पास तक जुगाड़ कर पाया।
यह हालत तब हुआ करता था, जब अपराध से जुड़े लोग सांगठनिक तौर पर अपना पहचान हासिल कर अपना गिरोह संचालित करते थे। उन गिरोहों के मुखिया के इशारे पर ही गिरोहों की रणनीतियां बनायी और लागू की जाती थीं। डाकू-दस्‍युओं के गिरोह भी इसमें खासा दखल रखते थे। मसलन ददुआ गिरोह। पश्चिम यूपी में आतंक का पर्याय बन चुके डीपी यादव का गिरोह भी खासा दखल करने लगे थे। मदन भैया भी एक वक्‍त में राजनीतिक शरणगाह मुहैया कराने वाला बड़ा मुखिया माना जाता था।
जो गिरोह या मुखिया सीधे तौर पर राजनीतिक में सक्रिय नहीं थे, तो भी वे अपने दलों के नेताओं को निर्णायक फैसले करने पर मजबूर कर दिया करते थे। मसलन, हालांकि आज सभी दलों में अपराधियों की घुसपैठ काफी गहरी होती जा रही है। चाहे वह बहुजन समाज पार्टी हो, राष्‍ट्रीय जनता दल हो, कांग्रेस हो या फिर कोई चिरकुट अलानी-फलानी पार्टी। लेकिन शर्मनाक हालत तो तब हो गयी, जब ऐसे अपराधियों का खूंटा भारतीय जनता पार्टी के दफ्तरों में भी गड़ने लगा। भाजपा के कई मामलों में ऐसे चुनिंदा लोगों को अपने गले लगाया। और इस तरह मजबूत होने लगी राजनीति के सारे खेमों-तम्‍बुओं में बाहुबलियों की प्रभावशाली घुसपैठ।
विकास दूबे इसी श्रेणी का दुर्दान्‍त अपराधी है, जिसे हर दल का प्रश्रय मिल चुका है। वरना और वजह क्‍या हो सकती है कि विकास दूबे की पत्‍नी को समाजवादी पार्टी ने एक चुनाव में अपना प्रत्‍याशी घोषित कर दिया था। इतना ही नहीं, दोलत्‍ती को मिली एक फोटो के मुताबिक प्रदेश सरकार के एक मीडियाकर मंत्री से भी विकास दूबे से काफी करीबियां हैं। दोलत्‍ती के पास विकास और उस मंत्री के साथ अगल-बगल खड़ी फोटो मिली है। लेकिन उस फोटो की पुष्टि तक हम उस फोटो को प्रकाशित करने में परहेज कर रहे हैं।

केवल यूपी ही नहीं, दुर्दान्‍त अपराधी विकास दुबे इस वक्‍त पूरे देश में सबसे ज्‍यादा चर्चा में है, जिसने पिछले दिनों कानपुर में आठ पुलिस कर्मचारियों को गोलियों से भून कर उनको मौत के घाट उतार दिया। लेकिन उसके साथ ही अब एक नया नाम जुड़ गया है प्रदेश के एक बड़े कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक का। वजह है विकास दुबे के साथ एक फोटो में अंतरगता के साथ खड़े मंत्री ब्रजेश पाठक।
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