नववर्ष: दुनिया लेनदार है, और हम देनदार

बिटिया खबर
: ग्‍यारह सूत्र, जो आपको एक आदर्श नागरिक बना सकते हैं : गालियों से परहेज और कन्‍या को देवी मानने के बजाय कन्‍या-भ्रूण संरक्षण का आंदोलन छेडिये : सार्वजनिक स्‍थानों पर नमाज या भजन करने वालों का पुरजोर विरोध कीजिए, लानत और धिक्‍कार कीजिए :

कुमार सौवीर
लखनऊ : नया साल पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं, लेकिन एक गुजारिश है कि कृपया इसमें फंसे कुछ पेंच जरूर निकाल दीजिएगा।
गुजिश्‍ता यानी बीता वक्‍त हमेशा बुरा ही नहीं होता। उसमें कुछ खुसूसियतें भी मौजूद होती हैं। बड़ा सब्‍जेक्टिव शब्‍द होता है किसी को अच्‍छा अथवा बुरा कह देना।
इसलिए अगर हम उसे खारिज या कुबूल करने की कवायदें छोड़ कर आने वाले वक्‍त के लिए कुछ खास सपने बुन सकें, उसके लिए नयी रणनीति बना सकें और उसके लिए अगर ठोस कदम उठा लें, तो यकीन मानिये कि आने वाला बरस यकीनन लाजवाब हो सकता है।
पहला:- महिलाओं पर केंद्रित गालियों से परहेज करने के बारे में सोचिये और कन्‍या को देवी मानने के बजाय कन्‍या-भ्रूण संरक्षण का आंदोलन छेडिये। गालियां देनी भी हों, तो उससे पहले अपने परिवार की महिलाओं को सोच लीजिए।
दूसरा:- गांधी, सुभाष, भगत सिंह और सरहदी गांधी जैसे आदर्श नागरिकों की जरूरत समाज के बजाय अपने खुद के घर में विकसित कीजिए।
तीसरा:- अपने अधिकार के बजाय हम अपने दायित्‍वों को लेकर सोचें।
चौथा:- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋणों को नियमित और बाकायदा अनुष्‍ठान के तौर पर चुकाने के बारे में सोचिये, जहां आपमें आत्‍म-जागृति का भाव जागेगा।
पांचवां:- अपने नेता का चुनाव करने के पहले उसके चरित्र के बारे में चिंतन करें। वोट देने का फैसला जाति या धर्म के बजाय अपने दिल के साथ ही अपने दिमाग तथा अपने जमीनी मसलों को गुणदोष के आधार पर तय करें।
छठा:- मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों पर सतर्क और जागृत रहिये। गलत कृत्‍यों पर जोरदार हमला कीजिए।
सातवां:- पशु को अपना रिश्‍तेदार का ओहदा थमाने के बजाय उस पशु के प्रति अपने दायित्‍वों पर सोचें।
आठवां:- नागरिक होना ही पर्याप्‍त नहीं, बल्कि खुद को नागरिक साबित करने के बारे में सोचें।
नौंवा:- सड़क, पार्क जैसे सार्वजनिक स्‍थानों पर नमाज पढ़ने की साजिश करने वालों पर सरेआम पूरी ताकत से लानत फेंकिये और इसी तरह रात्रि-जागरण या भजन करने वालों पर धिक्‍कार करने का साहस दिखाइये।
दसवां:- आप देश के नागरिक हैं। ऐसा कोई व्‍यवहार या वस्‍त्र अथवा आचरण न करें, जो आपकी समरस राष्‍ट्रीयता के बजाय आपको कोई विशिष्‍ट पहचान दिलाने लगे। आप जब भी ऐसा करते हैं, तो द्विराष्‍ट्र की अवधारणा को मजबूत करते हैं। इस सोच को खारिज कीजिए।
ग्‍यारह:- अतीत की कब्रों को खोदने की कोशिश मत कीजिए। नये सपने तैयार कीजिए। कब्रें खोदने का नतीजा हमेशा भयावह बदबू के तौर पर ही निकलता है। यह कोशिश मन से निकाल दीजिए।
और अब आखिरी बात। मेरा एक मित्र है विष्‍णु त्रिपाठी। हम लोगों ने लखनऊ के दैनिक जागरण में सन-87 से सन-92 तक एकसाथ काम किया। किस्‍मत से मैं स्‍वतंत्र पत्रकारिता कर रहा हूं, और विष्‍णु त्रिपाठी दैनिक जागरण का पल्‍लू थामे-थामे दिल्‍ली संस्‍करण में संपादक के ओहदे तक पहुंच गये। आज अभी उन्‍होंने नये बरस पर मुझे एक संदेश वाट्सऐप पर भेजा है। आप भी निहार लीजिए जरा:-
सन- 1932 में अपने एक मित्र को नववर्ष के मौके पर महात्‍मा गांधी ने एक पत्र लिख कर बधाई कुछ इस तरह भेजी थी:-
मैं देखता हूं कि तुम नये साल में क्‍या-क्‍या नया निश्‍चय करते हो। जिससे न बोले हो, उससे बोलो। जिससे न मिले हो उससे मिलो। जिसके घर न गये हो उसके घर जाओ। और यह सब तुम इसलिए करो कि दुनिया लेनदार है, और हम देनदार हैं।

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