डॉक्‍टरों की मौज-मस्‍ती होटल में, सेमीनार की फर्जी खबर अखबारों में

बिटिया खबर

: यही अस्‍पताल ही हैं डोलो-650 : होटलबाजी करने गये थे यह डॉक्‍टर, हल्‍ला कि बांझपन पर सेमीनार : हिन्‍दुस्‍तान, उजाला व नभाटा ने चटनी चाटी, खबर फन्‍नेखां : पेशे पर गम्‍भीर, ज्ञानार्जन पर अध्‍ययनशील व मरीजों पर संवेदनशील डॉक्‍टरों से अलग अधिकांश लोग सिर्फ शोशेबाजी-नौटंकी में बिजी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : डॉक्‍टरों की जमात में अधिकांश लोग अध्‍ययन और डॉक्‍टरी करने के बजाय केवल शोशाबाजी ही करते हैं। फकत चंद ही डॉक्‍टर हैं जो अपने पेशे के प्रति गम्‍भीर, ज्ञानार्जन के लिए अध्‍ययनशील हैं और मरीजों के प्रति पूरी तरह संवेदनशील हैं। और जो केवल दिखावा, नौटंकी और शोशाबाजी करते हैं, उनकी करतूतें आप अखबारों में आइने की तरह देख सकते हैं। बस चंद घनिष्‍ठ परिचित, मित्र और नौकर-चाकर जुटाये और बता दिया कि सेमीनार हो गया। और इसी तरह निपट गया डोलो-650 वाली घूसखोरी का मिनियेचर मॉडल।
लखनऊ में भी ऐसा ही एक सेमीनार नामक बेशर्मी वाली नौटंकी उन चंद डॉक्‍टरों और उनके चेला-चपाटियों ने कर डाली, जो बांझ-पन का इलाज करने का दावा किया करते हैं। यह किस्‍सा है एक निजी अस्‍पताल के मालिकों का, जिसका नाम रखा है अजंता होप सोसायटी आफ ह्यूमन रिप्रोडक्‍शन एंड रिसर्च। इसके अलावा इस अस्‍पताल से जुड़े और इंडियन फर्टिलिटी सोसायटी के कर्ताधर्ता लोग भी दिल्‍ली में रहने का दावा करते हैं। यहां इन दोनों ने बीती चार सितम्‍बर को लखनऊ के एक होटल में अपने मित्रों के साथ मौज-मस्‍ती की। लेकिन उसके बाद एक प्रेसनोट जारी कर दिया। पत्रकारों को जलेबी-चटनी चटा दिया और अगले दिन ही इन अखबारों ने झमाझम और फन्‍नेखां खबर छाप दी। बाकायदा फोटो-शोटो के साथ।
इनमें अमर उजाला, हिन्‍दुस्‍तान और नवभारत टाइम्‍स अखबार अव्‍वल रहा। हालांकि दैनिक जागरण ने इस आयोजन से अपनी दूरी ही बनाये रखी। दरअसल, यह खबर अखबारों में प्रचलित एक प्राइवेट-प्रैक्टिस के तौर पर है, जिसे तोहफा थमा कर अखबारों के संपादक छाप देते हैं। ऐसे तोहफे को अखबारी जगत में डग्‍गा के तौर पर देखा, बोला और पहचाना जाता है। जाहिर है कि इसमें भी यही हुआ। इसमें डॉक्‍टरों ने ऊल-जुलूल प्रेस-नोट दिया और संपादक ने उसे छाप दिया। दोनों ही कृतकृत्‍य और गदगद हो गये।

हिन्‍दुस्‍तान और नवभारत टाइम्‍स ने तो इस मजाकिया सेमीनार करती एकसमान फोटो छाप दी, जिसमें फकत आठ लोग अपने-अपने दांत चियारते दिख रहे हैं। क्‍या भी कोई सेमीनार महज आठ लोगों और दो अस्‍पताल के लोगों के बीच ही होता है। इसमें पीजीआई, लोहिया संस्‍थान, क्‍वीन मेरी, डफरिन, झलकारी अस्‍पताल और फातिमा अस्‍पताल जैसे महानतम अस्‍पतालों को इनविटेशन ही नहीं दिया गया।
इस खबर में कोई भी नयापन नहीं था। खबर में शामिल हर बात-बिन्‍दु की जानकारी तनिक भी औसत-स्‍तर के नागरिक पहले से ही जानते हैं। सामान्‍य डॉक्‍टर तो दूर, महिला डॉक्‍टरों को भी इसकी जानकारी होती है। और खास कर जो डॉक्‍टर बांझपन का इलाज करने की डिग्री या विशेषज्ञता रखते हैं, उसके हर पहलू को जानते-पहचानते ही नहीं, उसका निदान भी जानते हैं। लेकिन इसके बावजूद अजंता अस्‍पताल की डॉ गीता खन्ना ने कहा कि बांझपन दंपत्तियों में 50 फीसदी में पुरुषों में दिक्कतें होती हैं। अक्सर लोग महिलाओं में कमी समझ कर इलाज कराते हैं लेकिन समस्या पुरुषों में होती है। इसकी वजह से बहुत से दंपत्तियों की गोद सूनी रहती है।
इस खबर को ऐसे एंगेज से पेश किया गया कि मानो कोई महान काम कर दिया गया है। लिखा है कि रविवार को अजंता होप सोसायटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च की ओर से हजरतगंज में आयोजित सेमिनार में डॉ. गीता ने कहा कि बांझपन की एक बड़ी वजह देर से शादी का होना। जांच पत्नी और पत्नी दोनों को करानी चाहिए ताकि कारण पता चलने पर सही उपचार किया जा सके। खबर के अनुसार इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के महासचिव डॉ सुरवीन घूमन ने कहा कि बांझपन के इलाज दवाओं से संभव है। डॉक्टरों को चाहिए कि इलाज के दूसरे तरीके अपनाएं। आईवीएफ गर्भधारण उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था है। यदि महिलाओं में मधुमेह, रक्तचाप, कई बार गर्भपात हो चुका है तो अच्छे डॉक्टर से इलाज कराएं। हार्मोन थेरेपी या अन्य दवाओं के साथ उपचार किया जा सकता है। सोसायटी के अध्यक्ष डॉ केडी नायर आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ आभा मजूदार आदि मौजूद थे।
और इसके साथ ही बांझपन के नाम पर बकलोल और शोशाबाजी करने वाले डाक्‍टरों ने सेमीनार और बांझपन की समस्‍या का शवदाह संपन्‍न करा दिया।

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