हाईकोर्ट के वकील साहब ! तुम चूतिया हो क्‍या ?

बिटिया खबर

: बिदेसी माल यूपी में अब जज बनेगा। उखाड़ पाओ, तो उखाड़ लेना : चीफ जस्टिस समेत तीन जजों की कालोजियम का फैसला : संविधान के समीक्षक, नियंता स सर्वोच्‍च अधिकारी ने संविधान की चिंदियां फाड़ दीं : गैर-संवैधानिक कृत्‍य किया हाईकोर्ट ने, लखनऊ में हड़ताल 16 से, इलाहाबाद की चुप्‍पी सवालों में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : थोपे गये वकीलों को जज बना कर यूपी हाईकोर्ट में बिठाने की कवायद अब खासा रंग लेती जा रही है। खबर है कि कल यानी 16 सितम्‍बर-22 से लखनऊ हाईकोर्ट के वकील दो दिन की हड़ताल पर रहेंगे। अल्‍टीमेटम साफ-साफ कह दिया गया है कि हड़ताल तो हर हालत में होगी, अब जिसको जो उखाड़ना हो उखाड़ ले। उधर अभी तक इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच प्रशासन की ओर से इस हड़ताल के मामले में कोई भी टिप्‍पणी नहीं की है। कुछ भी हो, अगले दो दिनों तक हाईकोर्ट में अपने मुअक्किलों की याचिकाएं अपनी कांख में दबाने की कवायद से यहां के वकीलों को फुरसत मिल जाएगी, और उसके बजाय न्‍याय के मंदिर की चौखट पर न्‍याय मांगने के लिए अपना घर-दुआर बेच कर लखनऊ हाईकोर्ट का चक्‍कर लगाने वाले आम वादकारी की किस्‍मत पर फिर से राहू-केतू अपनी कुण्‍डली मार बैठेगा।

लेकिन इससे भी ज्‍यादा खतरनाक तो होगा संविधान की सुरक्षा और संरक्षा ही नहीं, बल्कि उसको लागू करने की वह कवायद जिस का जिम्‍मा न्‍यायपालिका का होता है। लेकिन ताजा मामले में तो न्‍यायपालिका खुद ही अपराधी के कठघरे में फंसा-खड़ा दिख रहा है। यह हालत फिलहाल संसद पर जेरे बहस न हो पाया हो, लेकिन इतना तो जरूर है कि इस ताजा घटनाक्रम ने कम से कम यूपी हाईकोर्ट के कामकाज पर बेइंतिहा अराजकता और बेईमानी का आलम पैदा कर दिया है। फिलहाल तो मामले की गेंद अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में जा रही है, लेकिन लखनऊ हाईकोर्ट के वकील तो दो-टूक आरोप लगा रहे हैं कि यूपी हाईकोर्ट की कोलोजियम में इतना बड़ा फैसला करने की औकात अकेले यूपी हाईकोर्ट की है ही नहीं। इसमें तो ऊपरी “शै” बतायी जाती है।
अब इस मामले को सीधे-सीधे समझने की कोशिश कीजिए। किसी भी हाईकोर्ट में उसी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को ही जज बनाने की संवैधानिक नियम है। इस बार भी एकसाथ पांच वकीलों को यूपी हाईकोर्ट में जज बनाने की तैयारी के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के कोलोजियम की कोर-टीम ने अपना फैसला तैयार कर उन सभी का नाम सुप्रीम कोर्ट कोलोजियम को भेज दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट कोलोजिमय के इस फैसले को आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट कोलोजियम जस का तस ही राष्‍ट्रपति को भेज देता है और उसके बाद कोलोजियम में प्रस्‍तावित सारे नामों को जज के तौर पर शपथग्रहण कराते हुए उन्‍हें नियुक्ति दे दी जाती है।
लेकिन यह उतना ही सहज नहीं है, जितना समझा जा रहा है। सच बात तो यह है कि जिन पांच लोगों का नाम जज बनाने के लिए भेजा गया है, वह इलाहाबाद हाईकोर्ट अथवा लखनऊ बेंच तक में भी कभी प्रैक्टिस नहीं किये हैं। लखनऊ के वकील असोक पांडेय का दावा है कि संविधान के अनुच्‍छेद 217-2 के अनुसार केवल उच्‍च न्‍यायालय के अधिवक्‍ता ही उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश के रूप में नियुक्‍त होने के पात्र हैं। असोक पांडेय ने एक और बम फोड़ते हुए देश के सर्वोच्‍च न्‍यायालय के एक पूर्व न्‍यायाधीश एनवी रमना के एक बयान पर आपत्ति जतायी है, जिसमें केवल सर्वोच्‍च न्‍यायालय के वकीलों में विधि-मेघा अधिक होने की बात कही गयी थी।
फिर तो इलाहाबाद हाईकोर्ट और उसकी लखनऊ बेंच के वकील तो अपने आप ही पूरी तरह रंगे हो जाते हैं। फिर तो उनमें विधि-मेधा नाम की धेला भर चीज नहीं होगी। वकीलों का कहना है कि तब तो हमारे सारे साथियों के दिमाग में बुद्धि-मगज के बजाय केवल भूसा ही भरा होगा। वरना इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को मेरिट के तौर पर छान लिया जाता और उनको यहां का जज नियुक्‍त करने के लिए हाईकोर्ट कोलोजिमय से सुप्रीम कोर्ट की कोलोजियम को सिफारिश कर दी जाती।
लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नतीजा यह हुआ कि इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच के प्रैक्टिशनरों को स्‍तरहीन साबित कर लिया गया।
यह भी किया होता, तो भी गनीमत हो सकती थी। दिक्‍कत तो तब सामने पेश आयी, जब इसमें संविधान को दो-कौड़ी का बना दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की बार में प्रैक्टिस करने वाले इन पांच वकीलों को किस संवैधानिक आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज की कुर्सी थमायी जाएगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लेकिन हैरत की बात है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की बार एसोसियेशन ने इस मामले में फिलहाल खामोशी ही अख्तियार रखी है।

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