मुझे तो खूब ठोंकते रहे हैं पत्रकार: अंबिका सोनी

मेरा कोना

टंच-माल का मतलब सुनार समझते होंगे, जनता नहीं

: वेश्या, रांड और भेल का मतलब इनके इलाकों में बताइये : आखिर कब सुनारी पर पीएचडी कर चुके हैं बड़बोले बकवादी दिग्गी राजा : दरअसल नेताओं ने ही जनता को अपना टंच-माल समझ लिया है :

कुमार सौवीर

( दूसरी और अंतिम किश्त ) तो आइये दिग्गी राजा, हम आपको बताते हैं कि इन शब्दों का क्या मतलब है। यह जानते हुए भी कि आप हमें या हमारे हम-ख्याल पाठकों को कुत्सित मानसिकता वाली श्रेणी में तत्काल रख देंगे। लेकिन हम आज बोलेंगे जरूर। दिग्गी को पता है कि किस शब्द का कहां पर कैसा इस्तेमाल किया जाना है। मंदसौर में हो रही सभा सुनारों का सम्मेलन नहीं थी, कि जहां वही समझा जाता है जो वहां सारे मौजूद लोग समझना चाहते हैं। और दिग्गी ने भी कभी भी सुनारी में पीएचडी पर नहीं की है। वह आम सभा थी और वहां मौजूद हर शख्स ने दिग्गी के हर शब्द को अपने हिसाब से समझा, सुनारों की समझ से नहीं। दरअसल दिग्गी चाहते भी थे कि वहां मौजूद लोग सुनारों के शब्द के मनचाहे इस्तेमाल करवा दें।

चलिए फिर घूम कर लौट आया जाए टंच-माल शब्द के पोस्टमार्टम पर। किसी भी शब्द का अर्थ समय, काल, परिस्थितियों के खांचे में बदल जाता है, यह तो कोई मूर्ख तक समझ सकता है। फिर दिग्गी क्यों  नहीं। टंच-माल अगर किसी पवित्र-सौदे को माना जा सकता है, तो फिर वेश्या, रांड और भेल तो एक मुकम्मिल नैसर्गिक भाव की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति है। और फिर यह अकेले शब्द ही क्यों, ठुकाई और ठोंकना भी आदर्श शब्द ही तो हैं।

कांग्रेस में तो इस द्विअर्थी भाषा शैली के महिर लोगों की भरमार है। पिछले ही साल, उदयन शर्मा की पुण्य तिथि पर दिल्ली के मावलंकर सभागार में गोष्ठी हुई थी। बड़े दिग्गज पत्रकार मौजूद थे, अफसरशाही के आला लोग थे। मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे संविधान के पहरूए भी थे। सरकार की ओर से अम्बिका भी मौजूद थीं। अब जरा निहारिये अम्बिका सोनी के भाषण को:- पत्रकार तो हर एक को ठोंकते रहे हैं। मुझे भी कई बार नहीं, सैकड़ों बार ठोंक चुके हैं यह पत्रकार। लेकिन मैं अपनी इस ठुकाई पर नाराज नहीं होती। बल्कि मेरी लिए तो ऐसी ठोंकाई आनंद ही देती है।

खैर, अब आप इस शातिर दिग्गी से पूछिये कि क्या वे मध्य प्रदेश में अपने भाषण में आम आदमी तक सेवाएं पहुंचाने की वेश्या की उपलब्धता की वकालत करेंगे। नहीं ना। लेकिन श्रीलंका के लोग वहां इस जुमले पर अपनी छाती चौड़ी कर लेंगे क्यों कि श्रीलंका का सबसे बड़ा बैंक वेश्या बैंक है। लेकिन भारत ही नहीं, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान वगैरह में भी वेश्या का अभिप्राय देह-व्यापार में जुड़ी महिला माना जाता है। और फिर, क्या दिग्गी रांड की उपलब्धता पर भाषण करेंगे? नहीं ना? क्योंकि दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा रांड कहलाती है। जैसे यूरोप में अमेरिका में डॉलर और बांग्लादेश में टका। मगर भारत समेत उपरोक्त देशों में रांड का मतलब उस महिला होता है, जो भरी जवानी में पति खो चुकी हो, यानी विधवा हो चुकी हो, लेकिन बाकी लोगों की कुत्सित नजरों का आमंत्रण भी वह स्वीकार करने की फिराक में हो। हालांकि यह शब्द पुरूषों की ओर से हालातों से बेहाल-निरीह महिलाओं पर आक्षेप के तौर पर उछाला जाता है। खैर, ज्यादा दूर क्यों जाते हैं आप। हमारे आसपास के बीच खोजिए ना, ऐसे शब्दों को जिनका प्रयोग अनर्थकारी हो सकता है। क्या दिग्गी रांड की उपलब्धता पर भाषण करेंगे। नहीं ना। क्योंकि दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा रांड कहलाती है। जैसे यूरोप में अमेरिका में डॉलर और बांग्लादेश में टका। आप मुम्बई समेत देश में कहीं, कभी भी भेल के स्वाद की तारीफ कर सकते हैं, मगर उत्तराखंड में नहीं, खासकर कुमाऊं में यह जुमला नहीं चल पायेगा। क्योंकि वहां भेल का अर्थ गुदा होता है।

और कहने की जरूरत नहीं कि दिग्गी को गुदा का मतलब खूब पता है। आखिरकार वे आखिरकार वे मध्यप्रदेश में अपने नौकर के साथ अप्राकृतिक यौनाचार के चलते भाजपा सरकार में वित्त मंत्री गंवा चुके और राघवजी सम्प्रदाय के अनुयायियों को खूब जानते-पहचानते हैं। क्यों दिग्गी राजा? ( समाप्त )

टंच-माल पर भड़के विवाद पर तैयार लेख का पहला अंक देखने के लिए कृपया क्लिक करें:- टंच-माल बनाम भेल, जिसका मतलब है गुदा

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