: लॉकडाउन से अपराध खत्म नहीं, दबाये गये हैं : दो दिन तक पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने का मौका नहीं मिला :
कुमार सौवीर और गौरव कुशवाहा
लखनऊ : अब इसे पुलिस की व्यस्तता मानी जाए, या फिर पुलिस का नाकारापन, लेकिन सच बात तो यही है कि देवरिया में एक नन्हीं सी बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उसके लिए खुद पुलिस ही जिम्मेदार है। कम से कम, इस स्तर पर तो जरूर ही कि कोरोना में व्यस्त होने का आंसू बहाने पुलिस ने इस हादसे को थाने के कागजों में दर्ज करने तक की जरूरत नहीं समझी। और नतीजा यह हुआ कि हादसे के करीब 48 घंटों बाद ही पुलिस ने मामले की रिपोर्ट तब दर्ज कराने की जहमत फरमायी, जब क्षेत्रीय स्तर पर दबाव ज्यादा पड़ने की आशंकाएं बढ़ने लगीं।
लॉक-डाउन की अभूतपूर्व बंदी के दौरान तमाम मीडिया रिपोर्ट्स यही दावा करते रहे हैं कि कोरोना-काल में सूबे से अपराधों का ग्राफ जमीन से ऊपर उठने के बजाय धूल में मिलता जा रहा है़ और कोरोना से सम्बंधित छिटपुट अपराधो को छोड़ जघन्य अपराधों में भारी गिरावट दर्ज हुई हैं। वहीं अखबारों में भी खबरों की जगह औपचारिक शब्दों ने ही बुनना शुरू कर दिया है। खबर के बजाय अब सरकारी या सुनी-कही बाते ही छप रही हैं। बाकी स्थान विज्ञापनो ने ले लिया है।
देवो की भूमि कहे जाने वाले देवरिया जिले में हुई एक झकझोर देने वाली शर्मनाक घटना ने पुलिस और प्रशासन की सक्रियता की पोल खोल डाली है। देवरिया जिले के रामपुर कारखाना क्षेत्र में लाकडाउन के दौरान चार बरस की एक मासूम के साथ दरिंदगी हो गयी। पीडि़त परिवारीजन बिलखते रहे, लेकिन पुलिस ने अगले दो दिन तक मामले को दर्ज तक नहीं किया।
सूत्र बताते हैं कि रामपुर कारखाना इलाके के बरनई गांव में 4 अप्रैल को दोपहर एक बजे चार साल की बच्ची के साथ दरिंदगी की घटना हो गयी। पीडि़त लोग जब मामले को लेकर पुलिस और प्रशासन के पास पहुंचने लगे, दबंग किस्म के आरोपित पक्ष ने गुंडागर्दी करनी शुरू कर दी। सूत्र बताते हैं कि बच्ची के परिवारीजनों को जान से मारने तक की धमकी दी गयी। लेकिन जब वादी ने मामले को दर्ज कराने की जिद ही ठान ली, तो आरोपी पक्ष के लोगों ने मामले पर सुलह समझौते का दबाव बनाना शुरू कर दिया।
आखिरकार पुलिस की नींद टूटी और छह अप्रैल को देर रात लगभग 11 बजे बच्ची से हुए दुष्कर्म के मामले में पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। खैर, इस जघन्य अपराध में पुलिस को मुकदमा दर्ज करने में दो दिन क्यो लगे इसका जवाब ही दे सकते है। देवरिया के अखबारी तंत्र को भी इस मामले की ख़बर न होना साबित करता है कि जिले में लागू लाकडाउन के चलते पत्रकारिता की धार बुरी तरह भोथरी हो चुकी है। इस हैवानियत की घटना में हुई देरी का सवाल सिर्फ पुलिस से ही नही बल्कि उन सभी बड़े अखबारों से भी है जिनको इस मामले की भनक तक नही लगी।