: अरबों कमा चुके, भीख मांगने में जुटे, लेकिन कर्मचारी का वेतन न देंगे : कर्मचारियों के पेट पर लात मारने में हिचक नहीं : अखबार की कमाई से आलीशान इमारतें खड़ी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : राजस्थान पत्रिका को सामान्य तौर पर लोग बहुत सम्मानजनक ढंग से देखते हैं और मानते हैं। लेकिन यह राय अब बहुत तेजी से बदलती जा रही है। वजह यह कि ताजा कोरोना-वायरस के हमले के बाद बदले आर्थिक समीकरणों का वास्ता देकर राजस्थान पत्रिका के मैनेजरों ने एक तरफ तो अपने कर्मचारियों के पेट पर लात मारना शुरू कर दिया है, जबकि देश के विभिन्न इलाकों में बने अपने दफ्तरों के मालिकों से तीन महीने का किराया माफ कराने के लिए गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया है।
हैरत की बात तो यह है कि इस पत्रिका समूह ने अखबार के नाम पर कई अट्टालिकाएं भी खड़ी कर रखी है जिनमें कई मॉल, कंपलेक्सेस और उत्सव तथा मांगलिक मंडप भी मौजूद हैं। सूत्र तो यहां भी बताते हैं कि इस अखबार ने अपने व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए पार्क आदि का भी आवंटन हासिल कर रखा है।
सूत्र बताते हैं कि कोरोना के झटके का फिलहाल राजस्थान पत्रिका की वित्तीय स्थिति में बहुत ज्यादा नहीं डगमगायी होगी, लेकिन इस के बहाने पत्रिका प्रबंधन ने अपने कमाई के लिए बाकायदा ठोस व्यवस्थाएं कर रखी हैं। लेकिन इसके बावजूद यह समूह न तो कर्मचारियों को पूरा वेतन देना चाहता है, और न ही राजस्थान समेत देश के कई प्रमुख शहरों में किराये पर हासिल बड़ी इमारतों के किराए को माफ कराने की जुगत भिड़ा रहा है।
कोरोना के नाम पर घडि़याली आंसू बहाने वाले राजस्थान पत्रिका प्रबंधन ने ऐसे किराए की इमारतों के मालिकों से चिट्ठी भेजकर गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया है कि वह इस आपदा से जूझने के लिए पत्रकारिता के स्तंभ बने रहे राजस्थान पत्रिका को मजबूती दें, और कम से कम तीन महीनों तक का किराया माफ कर दें। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए इस समूह ने अपने राजनीतिक सम्पर्कों का भी इस्तेमाल करने की रणनीति बना ली है। लेकिन अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि किस भवन के मालिक ने पत्रिका समूह के तीन महीनों के किराये की माफी की है भी या नहीं।
सूत्र बताते हैं कि हैरत की बात यही है कि इस समूह के पास जयपुर, राजस्थान समेत देश के विभिन्न क्षेत्रों-शहरों में कई मॉल समेत कई व्यवसायिक इमारतें मौजूद हैं। लेकिन यह समूह इनमें से किसी का भी किराया छोड़ने को कभी भी तैयार नहीं होता है। इतना ही नहीं, इस समूह में अपने पत्रकारों समेत सभी कर्मचारियों को केवल 15-15 हजारों का ही भुगतान केवल बकाया वेतन के तौर पर किया गया है। सूत्र बताते हैं कि इस समूह मालिकों ने अपनी अखबारी कमाई को व्यवसाय से अलग भी कई दीगर कामधंधों में लगा रखा था।