: जमानत हो गयी, लेकिन जेल से बाहर निकलने के दरवाजे पर बेहिसाब ताले जड़े गये : गायत्री की पैरवी की देश के सर्वोच्च न्यायाधीश की बेटी रुक्मिणी बोवड़े ने : एडीजे ओपी मिश्र मिश्र को सस्पेंड और लखनऊ जिला जज राजेंद्र सिंह को चंदौली भेज दिया ? अन्यायपालिका- एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक वक्त था जब अखिलेश सरकार में खनन मंत्री रह चुके गायत्री प्रजापति के कांखने-पादने की किसी भी पिद्दी सी भी हरकत पर मीडिया हड़बड़ा कर हल्ला मचाना शुरू कर देती थी। लेकिन आज जब गायत्री प्रजापति की जमानत लखनऊ हाईकोर्ट ने मंजूर कर दी है, मीडिया में सन्नाटा पसरा हुआ है। तब भी खामोशी बनी हुई है, जबकि इस जमानत पर सुनवाई के लिए उस वकील को सुनवाई के लिए बुलाया गया था, जिससे बड़ा तुरुप का पत्ता शायद ही हो पाया रहा हो। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद गायत्री प्रजापति पिछले एक हफ्ते से जेल में बंद है। खुद पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला ने ऐलान कर दिया है कि उसका रेप गायत्री ने नहीं किया, बल्कि वे तो उसे पिता की तरह दुलारते हैं। इसके बावजूद गायत्री के जेल से रिहा होने की सम्भावना न के बराबर है। वजह सिर्फ इतनी भर है कि प्रशासन और पुलिस चाहती ही नहीं है कि गायत्री प्रजापति जेल से बाहर आ सके। वजह यह है कि प्रशासन और पुलिस की भृकुटि प्रजापति पर टेढ़ी ही है। और किसी शख्स या किसी मसले पर प्रशासन और पुलिस की भृकुटि क्यों टेढ़ी हो जाती है, उसे समझने में किसी को दिक्कत हो रही हो तो उसे सोचने में वक्त बर्बाद करने के बजाय लूडो खेलने में जुट जाना चाहिए।
वह बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब गायत्री प्रजापति खबरों और राजनीति के लिए हॉट-केक माना जाता था। वजह थी उसकी अकूत सम्पत्ति, उसका व्यवहार, हर अड़चन को दूर करने के लिए इकलौता रास्ता अपने खजाने के बल पर दूर करने की उसकी शैली वाली कुख्याति, और उसका बेहिसाब धन-दौलत से सना हुआ उसका राजनीतिक कद। लेकिन पिछले हफ्ते पहले जब गायत्री प्रजापति जमानत की जमानत हाईकोर्ट ने मंजूर कर ली है, इसके बावजूद, लगता नहीं है कि इतनी आसानी से गायत्री प्रजापति जेल से बाहर निकल सकेंगे।
बस, यहीं पर एक बड़ा लेकिन एक बड़ा बहुआयामी सवाल न्यायपालिका पर चस्पां हो चुका है कि क्या वाकई न्यायपालिका का ताजा चरित्र न्यायपालिका की प्रक्रिया सम्बन्धी शर्तों और आदर्श मान्यताओं से तेजी के साथ खिसकता तो नहीं जा रहा है। इस सवाल का जवाब भी इसी मामले में पिछले करीब साढे़ तीन बरस की गहरी धुंध में छिपा ही नहीं, बल्कि खुल्लमखुल्ला पसरा होकर बार-बार पर अंगड़ाइयां लेते हुए न्यायपालिका को अन्यायपालिका में तब्दील करने की खिल्ली उड़ा रहा है। तुर्रा यह कि इस जमानत में हाईकोर्ट बार एसोसियेशन की पूर्व कार्यकारिणी से अध्यक्ष से लेकर सचिव जैसे करीब आधा दर्जन वकीलों के नाम पर वकालतनामे दायर थे, लेकिन इस सुनवाई में गायत्री प्रजापति के पक्ष में दलीलें दीं रुक्मिणी बोवड़े ने। महज 12 बरस की वकालत का अनुभव रखने वाली रुक्मिणी बोवड़े देश के सर्वोच्च न्यायाधीश बोवड़े की बेटी हैं।
योर ऑनर ! इस पूरे मामले में आपने जो भी कदम उठाये हैं, वह न केवल न्यायिक अन्याय या न्यायिक बेईमानी अर्थात ज्यूडिशियल डिसऑनेस्टी के पायदानों तक सरक गये थे, बल्कि उसने न्यायपालिका के प्रति आम आदमी के मन में उसके अप्रतिम सम्मान की इमारतों को किर्च-किर्च बिखेर डाला है। दो-टूक कहूं तो कम से कम गायत्री प्रजापति के मामले में आपने एक सांगठनिक बेईमानी करने के अनुष्ठान का श्रीगणेश किया है, जो अपने आप में एक अभूतपूर्व और बिलकुल अनोखा है और यह पहली बार ऐसा हुआ जब किसी न्यायिक बेईमानी को खुलेआम जामा-पाजामा पहनाया गया हो। इतना ही नहीं, इस पूरे मामले में न्यायपालिका के चंद न्यायमूर्तियों ने षडयंत्र की तर्ज पर अपने-आप को तब्दील कर डाला। और हम आपको बता दें युअर लार्डशिप ! कि आम आदमी की नजर में ज्यूडिशियल इम्प्रोप्राइटी को ही ज्यूडिशियल डिसआनेस्टी यानी न्यायिक बेईमानी कहा और समझा जाता है।
दरअसल, करीब साढ़े तीन बरस पहले गायत्री प्रजाति पर सबसे बड़ा हंगामा खड़ा हुआ था। हालांकि उसके पहले भी यह हंगामा चलता रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक, अदालत में खिचड़ी चढ़ चुकी थी। इसमें मीडिया का भी इस्तेमाल किया गया। बल्कि साफ कहें तो दीगर मसलों की ही तर्ज में मीडिया को खरीद लिया गया। नतीजा यह हुआ कि गायत्री प्रजापति के खिलाफ एक ऐसा जबर्दस्त मीडिया-बवंडर पैदा किया, जिससे लगा कि दुनिया की सारी दिक्कतों का इकलौता कारण गायत्री प्रजापति ही है। लेकिन 25 अप्रैल-17 को लखनऊ की पॉक्सो-अदालत के जज ओमप्रकाश मिश्र ने जैसे ही गायत्री की जमानत को मंजूर करने का आदेश दिया, एक भयानक हंगामा खड़ा हो गया, जिसमें न्यायपालिका का न्याय-चित्र भी झुलसने लगा। यूपी के चीफ जस्टिस भोंसले ने एडीजे ओम प्रकाश मिश्र को निलम्बित कर दिया और लखनऊ के जिला जज राजेंद्र सिंह को पद से हटा कर चंदौली भेज दिया।
सवाल यह कि आखिर क्यों ? (क्रमश:)
बवंडर जैसी लहरें-तरंगें तो अब न्यायपालिका में रोजमर्रा की बात हो चुकी है। लेकिन सुनामी और भूचाल जैसे हादसे जब होते हैं, तो सवाल उठने लगते हैं। गायत्री प्रजापति की जमानत पर चल रहे कानूनी बवाल और उसको लेकर राजनीति, सरकार, प्रशासन, पुलिस और मीडिया की भूमिका एक बड़े सांगठानिक षडयंत्र का रूप धारण कर लेती है। मगर इस गठजोड़ में अदालतों की भूमिका तब सामने चर्चा में आती है, जब पानी सिर से ऊपर जाने लगता है।
संविधान के प्रमुख स्तम्भ न्यायपालिका की हालत पर लेख-रिपोर्ट को लेकर दोलत्ती डॉट कॉम ने एक अभियान छेड़ा है। इसकी बाकी श्रंखलाबद्ध कडि़यां को देखने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक करते रहियेगा:-
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