सच का रेकमाल चढ़ाता हूं तो धुआं छोड़ देते हैं लोग

मेरा कोना

: दलाली वाले अखबार-टीवी आपको खूब पसंद है, पर मेरी सच बात पर ऐतराज : मैं क्‍या करूं, मेरी फितरत ही है बिलकुल अलहदा : हम आपके लिए ताजा खबरें परोसते हैं, आप मुझ में मीन-मेख निकालते हैं : रोज-ब-रोज कई ग्रुपों से बेइज्‍जत करने निकाला जाता हूं, जबकि कई-कई ग्रुप मेरे लिए पलक-पांवड़े बिछाये रहते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मैंने हमेशा गौर किया है कि जब किसी ज्‍वलंत मसले पर मैं खबर लिखता हूं, सचाई को खंगालना शुरू करता हूं, तो आप में से कई लोग आपे से बाहर हो जाते हैं। कल भी कई समूहों पर मेरी खबरों को हंगामा खड़ा हो गया है, कि कुमार सौवीर ने ऐसा क्‍यों किया, यह बदतमीजी है, अभद्रता है, अश्‍लीलता है, सौवीर को खबर की तमीज नहीं, लिखने का सलीका नहीं है। वह कलंक है, बदनुमा दाग है, समाज में रहने के योग्‍य नहीं है, इसकी —- और उसकी—-। र्ई-मेल पर मेल आते हैं कि कुमार सौवीर, मैं तेरी यह कर दूंगा, तेरा वह कर डालूंगा।

हा हा हा

यकीन मानिये कि उनके इस गुस्‍से की वजह क्‍या होती है, वे क्‍यों इतना भड़क जाते हैं, उसकी वजह मेरी समझ में नहीं आती है। नहीं समझ पाता हूं कि आप लोग अपनी खोल से बाहर क्‍यों नहीं निकलना चाहते हैं। आप बात-बात पर मुझ पर क्‍यों भड़क जाते हैं। क्‍यों मुझे गालियां देना शुरू कर देते  हैं, क्‍यों मुझ पर लानत-मलामत करना शुरू कर देते हैं। सिर्फ इसीलिए कि मैं सच बोल पड़ता हूं और आपको केवल उन्‍हीं अल्‍फाजों से दिक्‍कत होती है जिनमें सचाई का रेकमाल च़ढा होता है। कुछ ज्‍यादा ही खुरदुरा।

पेटीएम का नम्‍बर भी नोट कर लो:- 9415302520

अच्‍छा, क्‍या आप यह चाहते हैं कि मैं हमेशा आपकी खुशमद करता रहूं। तो यकीन मानिये, कि मैं ऐसा नहीं कर पाऊंगा। मुझे माफ कीजिए। मेरी फितरत ही कुछ अलहदा है। दूसरों से बिलकुल अलग। मैं सिरे से अलग सोचता हूं, नया अलग बनाता हूं और बिलकुल अलग करता रहता हूं। आप तक बिलकुल अलग अंदाज की खबरें पहुंचाता हूं। फ्री-फण्‍ड में। अखबार के लिए तो आप रोज तीन से पांच रूपये खर्च करते हैं। वह भी दो-कौड़ी के अखबार के लिए, जिसे केवल पन्‍ना पलटने से ज्‍यादा कोई इस्‍तेमाल नहीं कर पाते। फिर रद्दी में बेच देते हैं, या फिर अलमारियों में बिछा देते हैं।

उन अखबारों में जिनमें अधिकांशत: दलाली के नाम की खबरे होती हैं। उन पर पैसा खर्च करना आपको पसंद है। लेकिन जो खबरें हम या हमारे जैसे लोग आपके मोबाइल या कम्‍प्‍यूटर तक पहुंचाते हैं, उनमें आप बहुत मीन-मेख निकालते हैं। अखबार वाले पत्रकार से तो भिड़ना आपके लिए मुमकिन नहीं होता, लेकिन हमारी खबरों पर आपको खूब ऐतराज होता है। अखबारों की एक भी ऐसी खबर नहीं होती जिस पर आप बातचीत कर सकें, लेकिन हमारी खबरों को खूब बांचते हैं और उसका एक-एक धागा निकाल कर मेरी ऐसी की तैसी करते रहते हैं।

मतलब, यह कि जो आपको निशुल्‍क सेवा मुहैया कराये, वह आपकी निगाह में मूर्ख है, और जो अखबार आप तक पैसा देकर रद्दी पहुंचाये तो उसके लिए आप राजी-खुशी से अपनी टेंट-पाकेट खोल देते हैं। लेकिन हमारे लिंक को खोलने में आपको दिक्‍कत होती है। क्‍या मैं जान सकता हूं कि आप ऐसा क्‍यों करते हैं। यह तो वही मिसल हो गयी कि बेगारी कर रहे शख्‍स पर बीस काम और सौंप दिया जाए।

अगर आप आम जनता की आवाज धारदार और प्रभावशाली पत्रकारिता के माध्‍यम से देखना चाहते हैं, तो आपका स्‍वागत है।

आइये मुझे भिक्षा दीजिए। बैंक एकाउंट का ब्‍योरा इस तरह है:-

Kumar Sauvir

a/c SB 30062685159 IFSC : SBIN 0001526

State bank of india, Niyamatullah Road

Aminabad, Lucknow-226018

बहुत प्रॉब्‍लम है। आप सच बोलना भी चाहते हैं। लेकिन यही काम जब मैं शुरू करता हूं, तो उसे सुनने में आपको दिक्‍कत हो जाती है। ऐसा मत करो मेरे दोस्‍त। मैं भी तुम्‍हारा मित्र हूं। मेरे साथ मित्रता का भाव रखो।

मुझ घृणा ही करनी हो तो आओ, मेरे घृ‍णित चेहरे पर कुछ करेंसी नोट फेंक कर मुझे दफा करो। तुम्‍हें भी तसल्‍ली हो जाएगी, मैं भी तृप्‍त हो जाऊंगा। इस समय मैं बहुत कड़की में हूं। जरा दान-दक्षिणा कर दो, तो गाड़ी सरक पड़े। अगर ऐसा कोई इरादा हो तो इस लिंक को क्लिक करके खोलो, मुझे आर्थिक सहायता देने वाली अपील पढ़ो और फिर उसमें अंतिम लाइनों में दर्ज मेरे एकाउंट में जितनी भी इच्‍छा हो, दान डिपॉजिट कर दो।

तुम ही तो हो मेरे तथागत बुद्ध ! अब मुझे भिक्षा दो

कर दो मेरे दोस्‍त। तुम्‍हें तुम्‍हारे बाल-बच्‍चों तक सच्‍ची खबरें पहुंचाने का वास्‍ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *