: चकबन्दी आयुक्त डॉ हरीओम के दफ्तर में उनकी कथित पिटाई को लेकर नये तथ्य : हाईकोर्ट ने भी लिया संज्ञान, गिरफ्तारी की क्या जरूरत, पहले पूरा मामला तो बताओ : हजम नहीं पा रहा है हत्या की कोशिश का आरोप : बड़े हाकिम हो तो इसका मतलब यह तो नहीं कि पुलिस को अर्दब में लेकर मनचाही एफआईआर दर्ज करा लो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यूपी के चकबन्दी आयुक्त की तथाकथित पिटाई का मामला वाला छींटदार चटख रंग अब पहली धुलाई में ही छूटने लगा है। लखनऊ के इंदिरा भवन में सुनी-कही गयी इस बहुचर्चित घटना को लेकर अब ऐसे-ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जिसे देख कर पूरा का पूरा मामला संदिग्ध हो चुका है। साफ होता जा रहा है कि आयुक्त जैसे इस बड़े ओहदेदार ने अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए इस मामले को गजब ट्विस्ट कर डाला था। जाहिर है कि इस कवायद का मकसद सच का गला ही घोंटा ही था। उधर कल हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि उस चकबंदी आयुक्त की पिटाई के कथित मामले में अभियुक्त बनाये गये अमेठी के चकबंदी अधिकारी राकेश पाण्डेय को गिरफ्तार नहीं किया जाए। आदेश भी पुलिस को तलब करके कहा है कि इस मामले की पेंचीदा बिन्दुओं पर हकीकत बताए।
देख लिया आपने? क्या होती है गजब ब्यूरोक्रेसी? मारपीट में भी ब्यूरोक्रेसी ! हत्या के प्रयास में भी तथ्यों को लेकर गोल-माल ! पुलिस को अर्दब में लेकर उसे पदनी का नाच करने जैसी मनचाही हरकतें। हकीकत चाहे कुछ भी हो, लेकिन जब उसे बयान करने का मौका आता है तो ऐसे बड़े अफसर सरक कर मेज के नीचे छिप जाते हैं। बवाल बाकी कर्मचारियों के माथे पर जाता है। चकबंदी आयुक्त की पिटाई के बहुचर्चित मामले में भी तो यही हुआ है। आइये, उसे सिलसिलेवार समझ लिया जाए।
कोई दस दिन पहले इंदिरा भवन में चकबंदी आयुक्त के कार्यालय से खबर आयी कि चकबंदी आयुक्त डॉ हरीओम को कुछ लोगों ने पीट दिया है। फिर खबर आयी कि यह पिटाई अमेठी के एक चकबंदी अधिकारी राकेश पाण्डेय ने की है। फिर खबर आयी कि इस पिटाई के दौरान राकेश पाण्डेय, उसका बेटा और उसके साथ पांच-सात लोगों ने डॉ हरीओम को जमकर पीटा और मेज पर उन्हें लिटा कर पेपरवेट से कूंचा।
अब चूंकि यह मामला यूपी के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर से जुड़ा था, इसलिए पूरी ब्यूरोक्रेसी एकजुट हो गयी। मांग की गयी कि हमलावर को फौरन गिरफ्तार किया जाए और सभी आईएएस अफसरों को सुरक्षा दी जाए। लेकिन सबसे पहले और आनन-फानन यह सुरक्षा डॉ हरीओम को मुहैया करा दी गयी। उसके बाद राकेश पांडेय और उसके बेटे व साथियों की अभियान छेड़ा गया। अपना सारा कामधाम छोड़ कर पुलिस इसी अभियान में जुट गयी और राकेश के बेटे को दबोच कर जेल में ठूंस दिया। राकेश को इस लिए नहीं पकड़ पाये क्योंकि राकेश अस्पताल में भर्ती थे। बाकी कथित साथियों का अतापता ही नहीं चला।
लेकिन इस बीच पुलिस में चकबंदी आयुक्त डॉ हरीओम के चपरासी की ओर से रिपोर्ट उस मामले की रिपोर्ट दर्ज करायी गयी कि राकेश व उसके साथियों ने आयुक्त पर जान से मार डालने की कोशिश की थी। रिपोर्ट में लिखा गया है कि उस हादसे के दौरान राकेश पांडेय और उसके साथियों के साथ आग्नेय अस्त्र भी थे वे सब ऐसे इसी अस्त्रों का प्रदर्शन भी कर रहे थे।
इस मामले को लखनऊ हाईकोर्ट की वकील मधुलिका बोस ने अदालत में पेश किया। मधुलिका ने दावा किया कि यह रिपोर्ट ही अपने आप में खारिज योग्य है, क्योंकि जो भी तथ्य उस रिपोर्ट में दर्ज किये गये हैं, वह वास्तविकता से परे हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले पर सख्त रवैया अपनाया है। जस्टिस अजय लाम्बा और रवींद नामथ मिश्र की खण्डपीठ ने हैरत जतायी है कि जब हमला आयुक्त पर हुआ, तो उन्होंने अपने हादसे की रिपोर्ट खुद लिखाने के बजाय, अपने चपरासी कह कर क्यों करायी। सवाल तो यह भी उठाया गया है कि इस मामले में हत्या की कोशिश वाली धराएं लगाने का औचित्य और आधार क्या है। हाईकोर्ट ने इस मामले में 30 अगस्त को सुनवाई का आदेश देते हुए कहा है कि तब तक राकेश पांडेय को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।