दैनिक भास्कर ! तूने कुलपति से असली सवाल क्यों नहीं पूछा?

बिटिया खबर

: लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुलपति हो, मगर दमन पर इतने दाग क्यों : प्रो विनय पाठक की करतूतों जैसे आरोप तो प्रो आलोक राय पर भी हैं : 102 साल का सिजरा नहीं, आलोक राय के कार्यकाल को खंगालो न :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गुजिश्ता खबरनवीसी यानी पहले दौर की पत्रकारिता का मकसद हुआ करता था कि जिस भी शख्स का इंटरव्यू लिया जा रहा हो, तो उसके पूरे व्यक्तित्व के सारे पहलुओं से जुड़े सवालों पर जवाब मांगा जाए। वजह यह कि समाज में अमुक व्यक्ति से जुड़े सवालों के जवाब पूरी बेबाकी के साथ जगजाहिर किया जा सके। इंटरव्यू कुछ इस तरह का होना चाहिए ताकि सारा स्याह-सफेद सबके सामने रहे और कोई भी शक-शुबहा के लिए कोई स्थान ही न बच सके।
लेकिन आज की पत्रकारिता में अब सवाल नहीं, बल्कि तेल-फुलेल और जबरदस्त चापलूसी-सनी हुई मक्खनबाजी ही होती है, जिसका मकसद अंतर्निहित लाभ झटक लेना। ताज़ा नजीर है दैनिक भास्कर का यह इंटरव्यू, जिसमें भास्कर ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक राय का लिया है। निहायत बचपनापूर्ण सवालों का बेहद सस्ता ढेर, मानो किसी पुराने, दागदार, जर्जर और बेहूदा मकान को रंग-रोगन कर उसे बाजार में पेश किया गया हो। सवाल पूछे जाने लगे हैं कि इस साक्षात्कार की जरूरत क्या थी। कहने जरूरत नहीं है कि ऐसे रंग-रोगन और लक-दक तेवर देने का मकसद केवल संबंधित व्यक्ति से लाभ लेना ही हो सकता है। फिर चाहे कोई व्यक्ति हो, अथवा संस्थान।
आपको बता दें उत्तर प्रदेश के दो विश्वविद्यालयों के कुलपति इस वक्त कई गंभीर सवालों पर से दो-चार हो रहे हैं। इनमें से एक तो है कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक, जिसको यूपी की पुलिस का एसटीएफ दस्ता पूरी जोश-खरोश के साथ खोज रहा है और कुलपति जी हैं कि अपना पायजामा छोड़कर न जाने कहां भाग निकले हैं। अब सवाल किस से किया जाए, यह तो बाद की बात है। लेकिन असल हालत तो यह है कि इस भगोड़े कुलपति की गैरमौजूदगी ने उत्तर प्रदेश की उच्च शिक्षा प्रणाली को एक ऐसा जबरदस्त ठोकर मारी है जिसका घाव अगले कई दशकों तक ठीक नहीं हो पाएगा।
शिक्षा-जगत के इस सबसे पहले भगोड़े होने की पदवी हासिल करने वाले प्रो विनय पाठक के बाद अब लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय पर भी आजकल गंभीर आरोपों पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने भी कुछ ऐसा ही किया है जो विनय पाठक की करतूतों के कद तक तो नहीं पहुंच सकते है आलोक राय, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय जैसे एक महान शैक्षिक संस्थान के सबसे बड़े पदाधिकारी यानी कुलपति पर ऐसे आरोप बेहदअभद्र और अशोभनीय हैं। ऐसे आरोप फुपुक्टा यानी उत्तर प्रदेश के सभी डिग्री कॉलेजेस के टीचर संघ के महासंघ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने लगाया है। वीरेंद्र सिंह के आरोप के अनुसार लखनऊ विश्वविद्यालय में कुलपति प्रोफेसर आलोक राय का कार्यकाल भी भ्रष्टाचार पर फलफूल रहा है।
लेकिन बिल्कुल अभी-अभी जिस तरह का इंटरव्यू दैनिक भास्कर संस्थान ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय के साथ हुई बातचीत के आधार पर प्रकाशित किया है उसमें वीरेंद्र सिंह द्वारा कुलपति प्रो आलोक राय पर लगाए गए आरोपों का कोई जिक्र ही नहीं किया है। बल्कि इसके बजाय दैनिक भास्कर ने लखनऊ विश्वविद्यालय के 102 वर्ष को महान बताते हुए कई ऊल-जलूल सवाल उठा दिए हैं जिसका ऊल-जलूल जवाब प्रोफेसर आलोक राय में दे दिया है। इस इंटरव्यू के मुताबिक दैनिक भास्कर ने प्रो आलोक राय को एक महानतम कुलपति के तौर पर पेश कर दिया है।
अब ऐसा दैनिक भास्कर संस्थान ने क्यों किया है, इसका जवाब तो दैनिक भास्कर खुद ही दे सकेगा, लेकिन इतना जरूर है कि इस कोशिश में दैनिक भास्कर एक बार फिर पाठकों की नजर में अविश्वसनीयता के गहरे अंधकूप में फिसल पड़ा है।

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