: सलाह दे रहे हैं हाईकोर्ट बार की एल्डर्स-कमेटी के सदस्य और सीनियर एडवोकेट प्रशांत चंद्रा : शर्मनाक षडयंत्रों की गोटियों वाली हालत में जस्टिस डिले भी है, और षडयंत्र भी : कोर्ट से राहत की उम्मीद पालना बेमानी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : राजधानी में हाईकोर्ट अवध बार एसोसियेशन एल्डर्स-कमेटी के सदस्य और सीनियर एडवोकेट प्रशांत चंद्रा की सलाह है कि अदालतों में चक्कर लगाने के बेहतर होगा कि खुद पर होने वाले अत्याचारों की शिकायत अदालतों से करने के बजाय सरकारी अफसरों को उनकी मनचाही रकम अदा कर अपना मामला सुलझा लें। कोर्ट से राहत दिलाने की उम्मीद पालना अब बीते वक्त की बात होती जा रही है। वजह है हालात, तो लगातार प्रतिकूल होते ही जा रहे हैं। कहीं बार एसोसियेशनों पर काबिज होते जा रही नॉन-प्रैक्टिसिंग वकील लोगों की भरमार होती जा रही है। वहीं मामला का निपटारा हो पाना भी मुश्किल होता जा रहा है। कुछ ही दिनों में न्याय मंदिरों में कानून का दिया बुझ जाए, तो कोई अचरज की बात नहीं है।
कोरोना-वायरस की ही तरह अब न्याय-प्रणाली को लगातार मारक हमला करता जा रहा है बार एसोसियेशनों की गतिविधियां। इनको लेकर आम वकीलों में इस हालत को खतरनाक बार-वायरस यानी जानलेवा “बारोना-वायरस” का नाम दिया जाना शुरू कर दिया गया है। हैरत की बात है कि अब तो सर्वोच्च न्यायालय को भी संक्रमित कर चुका है यह खतरनाक बारोना-वायरस। प्रशांत चंद्रा बताते हैं कि अब तो बाकायदा अराजकता पर आमादा होती जा रही है हाईकोर्ट वाली अवध बार एसोसियेशन। दोलत्ती संवाददाता के इस सवाल पर कि इतनी अराजकता होने के बावजूद एल्डर्स-कमेटी क्यों खामोश रही है, प्रशांत चंद्रा हताश भाव में बताते हैं कि हम क्या करते। फौजदारी तो हम कर नहीं सकते। उल्टे इस मामले में याचिका दायर करने वाले सातों वकीलों को भी अवध बार में काबिज लोगों ने बर्खास्त किया।
अवध बार एसोसियेशन में दस हजार सदस्य, चार-पांच हजार वोट, प्रैक्टिसिंग वकीलों की तादात करीब एक हजार
प्रशांत चंद्रा से दोलत्ती संवाददाता ने लम्बी बातचीत की। उनकी पीड़ा थी कि लखनऊ की बार एसोसियेशंस की गरिमा पहले देश भर में विख्यात थी, लेकिन अब हालत दयनीय होती जा रही है। शर्मनाक षडयंत्रों की गोटियां बिछाने लगे थे बार एसोसियेशन के लोग। उनका कहना है कि यह हालत तो जस्टिस डिले भी है, और षडयंत्र भी है। एमिस क्यूरी की तो जरूरत ही नहीं थी, उसका रोल अच्छा नहीं रहा। प्रशांत इन हालातों में खासे हताश दिखायी पड़ रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि मामले को अंजाम तक वे पहुंचा कर ही मानेंगे।
दोलत्ती संवाददाता ने प्रशांत चंद्रा से पूछा कि जब आप वकील लोग अपना ही मामला नहीं सुलझा पा रहे तो मुअक्किल आपके पास क्यों जाए ? उनका कहना था कि यह हालत अब काबू से बाहर होती जा रही हैं। अराजकता और हिंसा का माहौल बनता जा रहा है। दोलत्ती संवाददाता ने पूछा कि :- तो यह है आपकी 30-40 साल में वकालत वाली उपलब्धि, कि आप भयग्रस्त हैं ? प्रशांत चंद्रा ने माना कि अब हालत तो यही बन चुकी है। और इस बात पर हमें क्षोभ है, दुख है और आक्रोश भी है।
यानी पहले मुस्कुराइये, फिर घबराइये कि आप अवध बार एसोसियेशन में हैं