: किसी मसले तक पहुंचने की कोशिश करते ही अचानक एक नया शिगूफा सामने लेट जाता है : फिर नया शिगूफा, दर शिगूफा : अब आ गया है यह नया शिगूफा कपल चैलेंज :
कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी आंधी, तूफान या बवंडर के कचरे की तरह अचानक हमारे आसपास पसर पड़ा है यह कपल-चैलेंज। गजब तेजी, लेकिन मकसद अस्पष्ट। बल्कि मूर्खतापूर्ण भी।
पहले नोटबन्दी, फिर रोहिंग्या, फिर पाकिस्तान, फिर औंधे-मुंह धराशायी अर्थ-व्यवस्था, फिर चीन, फिर नेपाल। नंगे झूठे दावे। निरंकुश पुलिस और प्रशासनिक तंत्र। इसी बीच ट्रम्प-यात्रा की अभूतपूर्व तैयारी की फिराक के चलते कोरोना से निपटने की असफलता, हजारों मील का पैदल सफर पर मजबूर प्रवासी। फिर बिहार चुनाव की तैयारी को लेकर रिया, दिया से लेकर गाँजा….
इसके बारे में कुछ सोचने के बजाय…जब तक हम किसी मसले पर कोई ठोस नतीजे तक पहुंचने की कोशिश भी करते हैं, कि अचानक एक नया शिगूफा सामने लेट जाता है। फिर नया शिगूफा, दर शिगूफा।
और अब आ गया है यह नया शिगूफा:- कपल चैलेंज।
आखिर क्या होता जा रहा है हमारे भीतर? अनजाने में ही हम लोग खुद को किसी भेड़चाल में तब्दील करते जा रहे हैं।
क्या वाकई मूर्ख हैं, या फिर साजिश से बेखबर?
यह हमारी मस्ती है, या फिर सब कुछ भूल जाने का नशा?
कुछ भी हो, यह है तो बेहद खतरनाक।