: होली पर एक नया रंग उलीचना शुरू किया कुमार सौवीर ने : जमाना पूछ रहा है कि इस मेकअप कैसी हूं मैं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जमाने पर फेंक दिया फेंचकुर। बलम, जरा पास खांसो। कोरोना से बतियाओ बलम, जरा पास खांसो। मेरे चना जोर गरम बलम, जरा पास खांसो। बोल कबीरा सारा रारा सारा रारा रारा
तो साहब, कट्टर दलितों की बात सही बात है। सौ फीसदी सच है। ऐसे लोगों के विचार उनकी दैहिक दशा के स्तर पर भी लगातार फलते-फूलते रहते हैं, उनके आर्थिक स्तर पर भी खासे असरकारी होते हैं। अब यह दीगर बात है कि ऐसे लोगों का पिछड़ापन उनके साथ उनके आश्रितों और संतानों तक भी लगातार दलित बना रहता है।
लेकिन हमें उससे क्या लेना-देना। हमें तो आज होली मनानी है, और इसी के चलते होलिका समेत पूरी स्त्री-शक्ति को मजबूत करना है।
तो हुआ यह कि अपना विशिष्ट और कौशल वाले रोजगार की संभावनाओं को अपने ही वैचारिक लातों से रौंद डाले और इसी के चलते अपनी औलादों के भविष्य को नेस्तनाबूत करने पर आमादा एक कट्टर दलित सज्जन से मेरी भेंट हुई। इन सज्जन ने अपने इकलौते बेटे को कभी भी स्कूल नहीं भेजा, क्योंकि स्कूल में ब्राह्मणवादी शिक्षा दी जाती है, जो दलितों और समाज के लिए हानिकारक है। अपने मोहल्ले में सवर्णों के घर भी उन्होंने अपने बेटे को भेजने से मना कर दिया, क्योंकि वहां भी सवर्णवादी और ब्राह्मणवादी शिक्षा और संस्कार मिलते हैं। ऐसी शिक्षाओं के चलते ही हमारा देश और समाज लगातार पिछड़ता जा रहा है। नतीजा यह हुआ कि वह बच्चा दूसरों से बातचीत में ही असहज होने लगा। आंख से आंख लगा कर बात करने में भी उसकी हिचकियां बंधने लगीं। लेकिन उनकी आंख तब खुली जब बेटे की उम्र 19 बरस की हो गयी। तब दौड़े-दौड़े गये स्कूल, तो स्कूल वालों ने साफ कर दिया उन बच्चे की शैक्षिक हालत को देखते हुए उसे केवल कक्षा चार में ही प्रवेश दिया जा सकता है। फिर बड़ा बवाल हुआ। नारे लगाये कि स्कूलवाले चूंकि ब्राह्म्णवादी हैं, इसलिए दलित के दलित-बच्चा का भविष्य तबाह करने पर आमादा हैं।
लेकिन मैं इस कट्टर दलित से सहमत हूं। उन्होंने अपनी वाल पर आज कहा कि होली एक महिला विरोधी और घटिया जमावड़ा है, जहां महिलाओं का सम्मान ही रौंदा डालता है। होली पर सामूहिक थू-थू अभियान चलाते हुए लिखा कि होलिका नामक की एक महिला के सम्मान को इसी बर्बर हिन्दू परम्परा ने कुचला है। वरना क्या जरूरत थी प्रह्लाद को होलिका की गोद में बिठा कर चिता में जलाने की, जहां होलिका भस्म हो गयी। यही तो महिला का अपमान और स्त्री-शक्ति की हत्या ही तो हुई थी न।
मान गया इस तर्क को। और इसीलिए आज से ही तय कर लिया है कि चाहे कुछ भी हो, स्त्री-शक्ति से जुड़ी ही चीजों को अपमानित नहीं होने दूंगा। पैंट फाड़ी जाती है, इसलिए पैंट पहनना बंद। यही हालत कमीज की होती है। चोली की अस्मिता भी इसी हालत में शर्मनाक है। जांघिया और चड्ढी से भी स्त्री-भाव की अस्मिता खुलती और फटती और उसी हिसाब से अपमानित होती रहती है। इसलिए उसका भी बहिष्कार करूंगा।
तो तय कर लिया कि ऐसे ही वस्त्र पहनूंगा, जिसमें स्त्री-भाव के प्रति यथोचित सम्मान हो रहा हो। मसलन अब पैंट या जांघिया-चड्ढी को हमेशा के लिए त्यागने जा रहा हूं। रहा हूं नहीं, रही हूं। उसके स्थान पर केवल पेटीकोट पहनूंगा नहीं, पहनूंगी। शर्ट नहीं, अब ब्लाउज पहनना ही समीचीन और सम्मानजनक होगा। सैंडल नहीं, खड़ाऊं पहनूंगा। पहनूंगा नहीं, पहनूंगी। सिर के बाल कटवाऊंगा या मुंडवाऊंगा, लेकिन मूंछ या दाढ़ी के सम्मान पर कोई भी हमला सहन नहीं करूंगा। करूंगी। भले चाहे कुछ भी हो जाए। सायकिल नहीं, सीधे कार ही चलाऊंगा। चलाऊंगा नहीं, चलाऊंगी।
व्यवहार में भी यही आचरण लागू करूंगा, मेरा आशय है कि मैं करूंगी।
चलूंगी, घूमूंगी, सैर करूंगी, इठलाउंगी, बात करूंगी। मुस्कुराऊंगी। लाइन मारूंगी। आंख मारूंगी।
चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन राणा जी से माफी नहीं मांगूंगी।
वैसे इस मेकअप में इस वक्त कैसे लग रही हूं मैं। बाई गॉड की कसम है आपको, सच-सच बताना।
फर्स्ट इम्प्रेशन, विल बी द लास्ट इम्प्रेशन।
पहला निशाना तो कल्याण सिंह पर ही लगाऊंगी।
क्यों ? कैसा रहेगा मेरे चना जोर गरम !
बुरा न मानो, होली ….