: प्रकृति ने डेढ़ महीने की विपश्यना साधना पर भेज दिया है दुनिया को, उसे खुद को खोजने में लगाइये, इस समय पश्चाताप नहीं, प्रायश्चित कीजिए : जीभ-लिंग 8: :
लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज में एक डॉक्टर है सूर्यकांत। मेडिकल यूनिवर्सिटी के वरिष्ठतम प्रोफेसरों में से उनका नाम है और वे इंडियन मेडिकल एसोसियेशन के यूपी चैप्टर में अध्यक्ष भी रह चुके हैं। विषय में निपुण, बेहद सरल, प्रवीण व्याख्याता और मिलनसार भी। सूर्यकांत जी से मेरी मुलाकात करीब 35 बरस पुरानी है, जब वे केजीएमसी में पढ़ रहे थे। उस दौर में कालेज के प्राचार्य थे कोई खन्ना। डॉक्टर सूर्यकांत उस समय क्षय-रोग संबंधी अपना शोधपत्र हिन्दी में तैयार कर रहे थे।
दरअसल, प्राचार्य खन्ना मेडिकल विषय पर शोधपत्र को हिन्दी में तैयार करने के सख्त विरोधी थे, जबकि सूर्यकांत जी अपनी बात पर अडिग थे। उन्होंने मुझसे अपेक्षा की थी कि वे इस विषय पर जो भी सहयोग हो सके, करते रहें। मैंने उन्हें आश्वस्त किया था। लेकिन यह भी अपेक्षा की थी कि इस शोधपत्र की खबर मैं ही ब्रेक करूंगा, इसलिए वे इस बारे में किसी और से चर्चा न करें। उन्होंने मुझे वायदा भी कर लिया। मैंने तय किया था कि इस प्रकरण पर खबरों की श्रंखला तैयार करूंगा, जिसके केंद्र में डॉ सूर्यकांत ही होंगे। मैंने प्लानिंग शुरू कर दी। सामग्री जुटाने लगा। खबर के विभिन्न आयामों को लेकर देश-विदेश के डॉक्टरों और विशेषज्ञों से बातचीत भी करनी शुरू कर दी।
घटना के समय दैनिक जागरण में वरिष्ठ संवाददाता था।
लेकिन कुछ ही महीने बाद अचानक मैंने देखा कि डॉ सूर्यकांत की खबर एक अखबार में छप गयी है। मैं बौखला गया। गुस्सा बहुत आया था। शाम को डॉ सूर्यकांत मेरे दफ्तर मेरे पास आये। मैंने संयम रखा और पूछा कि जब हमने-आपने एक शर्त रखी थी, तो उसका उल्लंघन आपने क्यों किया ? डॉक्टर सूर्यकांत ने भी पूरे शांत भाव में बताया कि वे इस मामले में निर्दोष हैं, लेकिन शर्मिंदा हैं, क्योंकि उनके हॉस्टल में रहने वाले एक बैच-मैट ने यह खबर लीक कर दी थी।
लेकिन डॉक्टर सूर्यकांत के जवाब से मैं संतुष्ट नहीं हुआ, बल्कि अपना आपा खो कर चिल्लाने लगा।
लेकिन आखिर क्यों ? मैंने डॉ सूर्यकांत का अपमान क्यों किया ? मुझे किसी को बेइज्जत करने का मुझे ऐसा बेहूदा अधिकार किसने दिया ?
सच कहूं ? हकीकत बात तो यह है कि यह सवाल मैंने उसके बाद अक्सर अपने आप से और अपना गिरहबान झिंझोड़ कर पूछा है। लेकिन हर बार शर्मिंदगी के अलावा मुझे कोई जवाब नहीं दिया। आत्मग्लानि। आत्म-ताप। आत्म-क्षोभ।
यह तो मेरी करतूत थी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि उसके बाद से जितनी भी बार में मेडिकल कालेज गया हूं, हमेशा डॉ सूर्यकांत से मिलने गया हूं। भले ही वह शख्स अपने ऑफिस में हो या नहीं। कुछ-एक बार को छोड़ दिया जाए, तो डॉक्टर सूर्यकांत ने हमेशा मेरा फोन उठाया है और हमेशा उसी तरह तपाक से जवाब दिया। और हर बार मैं अपने आप को अपमान के गड्ढे से एकाध इंच ऊपर खिसकता महसूस करता रहा हूं। ऐसा नहीं है कि मेरे पास डॉक्टरों की कमी है। लेकिन सच यही है कि मैं हमेशा चाहता हूं कि मैं सूर्यकांत के पास ही अपनी समस्याओं का समाधान खोजूं। न जाने कितने बीमार मित्रों, परिचितों को लेकर मैं सूर्यकांत के पास गया। और हर बार सूर्यकांत का व्यवहार बिलकुल चहकता हुआ ही रहा। सूर्यकांत के पास जाने का मेरा मकसद सिर्फ यही होता है कि मैं हमेशा प्रोफेसर सूर्यकांत के सामने खुद को खड़ा कर अपने आप में इतनी उर्जा बटोर लेना चाहता हूं ताकि भविष्य में किसी अन्य के प्रति ऐसा कोई भी व्यवहार नहीं करूं, जिसे किसी को ठेस लग सके।
जी नहीं। यह मेरा पश्चाताप नहीं है। बल्कि प्रायश्चित भाव है। मुझे उस या ऐसी किसी भी घटना को लेकर खुद में कोई भी पश्चाताप भाव कत्तई महसूस नहीं करता हूं। पश्चाताप में तो खुद को पल-पल घुलता-समाप्त करते हुए खुद की आखिरी सांसें लेने पर मजबूर होता है। बल्कि मैं तो यह चाहता हूं कि मैं अपने प्रत्येक कृत्य का प्रायश्चित करता रहूं। यकीन मानिये कि इससे मैं खुद में मनोबल हासिल करता हूं। और यही मनोबल मुझे ताकत देता है कि मैं आइंदा ऐसी कोई भी अभद्र, बेहूदा और अराजक हरकत से बाज आता रहूं। स्वयं को निर्मल, शांत और पवित्र बनने की कोशिश करता रहूं।
और सच कहूं ? मैं इस कायनात का इकलौता शख्स नहीं हूं जो अभद्र, बेहूदा और अराजक तथा परपीड़क होता है। सच बात यह है कि हम आप सब में ऐसी प्रवृत्तियां कमोबेश कम या कूट-कूट कर भरी ही होती हैं। जरूरत तो होती है कि हम अपने हृदय-कलश में ऐसे कलुषित विष को जल्द से जल्दी फेंक दें, और हृदय-कलश को खाली कर उसे धुल कर उसे पवित्र कर दें। इसके बाद आप अपने कलश में अमृत ही भरा-बटोरा किया करेंगे। तो आइये, हम अपने कृत्यों को खोजें और उसे सार्वजनिक कर अपने दिल पर पड़े भारी पत्थर को हटा लें, ताकि आपका हृदय भार-शूल्य हो जाएा
इतना ही नहीं, चिकित्सक भी अहंकारी, लुटेरा और ईष्यालु नहीं होता, बल्कि उसका चरित्र धन्वन्तरि सा होना चाहिए। लालच से दूर, अपने धर्म पर अडिग। और सूर्यकांत उसी पायदान पर हैं। पीजीआई के सामने माधव विश्रामालय के प्रमुख संचालकों में से एक हैं सूर्यकांत। आरएसएस की समर्पित शाखा के सक्रिय पल्मोरी एटीच्यूट। (क्रमश:)
(हम आपके लिए हम नया प्रस्ताव लाये हैं। आप के जीवन में जो भी कोई खट्टी-कड़वी स्मृतियां आपको लगातार कचोटती जा रही हों, आप तत्काल उससे निजात हासिल कीजिए। खुद को कुरेदिये, उन घटनाओं को याद कीजिए और उनको सविस्तार लिख डालिये। उन घटनाओं को सीधे ईमेल पर भेज दीजिए या फिर वाट्सएप पर भेज दीजिए। आप अगर अपना नाम छपवाना नहीं चाहते हों, तो हमें बता दीजिए। हम आपकी हर याद को आपका जिक्र किये बिना ही प्रकाशित कर देंगे। और उसके साथ ही आपके दिल में छिपा गहरा अंधेरा अचानक समाप्त हो जाएगा, और पूरा दिल-दिमाग चमक पड़ेगा। यह लेख-श्रंखला अब रोजाना प्रकाशित होगी। कोशिश कीजिए कि आप भी इस श्रंखला का हिस्सा बन जाएं।
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