दामन दब गया तो बिल-बिला पड़े सीओ सिटी, जरा सुन लीजिए

मेरा कोना

जो चपरासी बनने लायक नहीं, वे अफसर हैं जौनपुर में
मैं ईरान की बात करता रहा, सीओ सिटी तूरान की बात रहते रहे

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह जौनपुर में सीओ सिटी के पद पर हैं। नाम है राजकुमार पाण्डेय। मेरी कभी भी उनसे भेंट नहीं हुई, लेकिन जब मैंने जौनपुर में गैंग-रेप से पीडि़त एक लावारिस बच्ची की दास्तान पूरे दुनिया-जहान तक पहुंचाने का अभियान छेड़ा, तो पुलिस और प्रशासन ने हड़बड़ाकर अपनी लुंगी पहन ली। क्या प्रशासन और क्या पुलिस अफसर, सब के सब अस्त़-व्यस्त कपड़ों में मुंह उठाये भागे जिला अस्पताल की ओर। उधर लखनऊ से भी डण्डा की आशंका दिखी, तो सबसे मिमियाना शुरू किया पुलिस अफसरों ने, जिन्होंने इस बच्ची की जिन्दगी जीते-जी हराम करते हुए न सिर्फ उसकी बदहाली की रिपोर्ट दर्ज नहीं की, गैंग-रेप का मेडिकल भी नहीं कराया, बल्कि अपना पिण्ड हमेशा-हमेशा के लिए झाड़ते हुए उस बच्ची् को पागल करार करते हुए गैर-कानूनी तरीके से उसे वाराणसी के राजकीय पागलखाने में भेज दिया। वह तो गनीमत रही कि बनारस के पागलखाने के डॉक्टरों ने उसे पागल मानने से इनकार कर दिया और टका-सा जवाब दे दिया कि उस बच्ची को आइंदा अगर वाराणसी लाये, तो उसके साथ किसी जज के आदेश भी लेते आना। उसके बिना हर्गिज नहीं।

नतीजा यह हुआ कि कल दोपहर एक बजे पुलिस की जो टीम उस बेचारी बच्ची को लेकर पागलखाने गये थे, वे अपना टका-सा मुंह लेकर शाम साढ़े वापस जौनपुर आ गये और उस बच्ची को वापस उसी अस्पताल में भर्ती कर भाग निकले, जहां से लेकर वे बनारस ले गये थे। अब हालत यह है कि अपने साथ हुए दुराचार से बुरी तरह सहमी हुई इस बच्ची के प्रति पूरा प्रशासन और पुलिसवाले सहानुभूति दिखाने का अभिनय करने में जुट गये हैं। दरअसल, इस हादसे की खबरें फैलते ही नागरिकों में गुस्सा भड़कने की आशंका देख कर पुलिसवालों और प्रशासनिक अफसरों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी है। कल शाम एक एसडीएम जिला अस्पताल पहुंचीं और सीओ और सीएमओ से करीब साढ़े चार घंटे तक पहुंची। उन्होंने जिला महिला अस्पताल और प्रभारी चिकित्साधिकारी से भी भेंट की।

लेकिन मामला गड़बड़ होता देख आज पुलिस क्षेत्राधिकारी नगर राजकुमार पाण्डेय ने मुझे ह्वाट्सअप पर बातचीत की। लेकिन आवाज साफ न होने के चलते फिर मैंने उन्हें काल-बैक किया। फोन पर सीओ सिटी काफी परेशान दिख रहे थे। वे मुझे सफाई दे रहे थे कि उस बच्ची की देखभाल ठीक-ठाक से हो रही है। जब मैंने कहा कि आपने इस हादसे की अब तक कोई रिपोर्ट तक क्यों नहीं की, तो उनकी आवाज ही लड़खड़ाने लगी। उन्होंने सफाई दी कि वह बच्ची का कोई भी पैरोकार नहीं आया, ऐसे में रिपोर्ट कैसे दर्ज की जाती। जब मैंने पूछा कि क्या अगर कोई लाश पड़ी होगी, तो आप तब भी रिपोर्ट दर्ज नहीं करेंगे, जवाब में पाण्डेय जी पहले तो लगे मिमियाने, फिर फंसने की हालत तक पहुंच जाने पर कुंकुंआना शुरू कर दिया। मैं पूछता ही रहा, वे मुझे मूर्खतापूर्ण जवाब देकर टकराने की कोशिश करते रहे। मैं यही पूछता रहा कि पुलिस ने रिपोर्ट क्यों दर्ज नहीं की, वे लगातार यही बात करते रहे कि वह बच्ची अर्द्धविक्षिप्त है, उसे अच्छा खाना-पाना दिया जा रहा है, उसकी देखभाल की जा रही है। मैं सिर्फ यही सवाल का जवाब मांग रहा था कि जो काम आपको करना चाहिए था, वह आपने एक बार भी नहीं किया, बल्कि सारे काम गिना रहे हैं। गजब है सीओ जैसे राजपत्रित अधिकारी की मेधा, दिमाग और जवाब। अन्तत: पुलिस और प्रशासनिक संवेदनहीनता और अकर्मण्यता की करतूतों को लेकर मेरे सवालों की झड़ी से बेहाल होकर आखिरकार उन्होंने फोन ही काट कर अपने प्राण बचाये।

आइये, सुन लीजिए जौनपुर के नगर पुलिस उपाधीक्षक राजकुमार पाण्‍डेय से हुई मेरी बातचीत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *