ओ बड़े बाबू ! साहबी पकड़े रहे तो जिंदगी छूट जाएगी

मेरा कोना

: वक्‍त-ए-रिटायरमेंट, बडे जतन से पाला पोसा गया कुत्ता तक हिकारत से पँलग के नीचे घुस जाता है : अतः समय रहते सुधार आवश्यक है साहबी छोड़ मानवीयता अपनाओ : दोस्त बनाओ, अपनों को समय दो और दूसरों के काम आओ :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

लखनऊ : साहब रिटायर होता है ! सरकारी बँगला ,उसका हरा भरा लॉन ,ड्राईवरों ,चपरासियो के साथ बिना नागा नमस्ते करने वालो की भीड एकाएक साथ छोड जाती है ! हाँलाकि उनके जाने का दिन तो हमेशा से तय था पर साहब को ये एकाएक सा ही लगता है !

साहब हतप्रभ होता है ,पर टिमटिमाता है उम्मीद का दिया ! चूँकि वो हमेशा से यह माने बैठा था कि वह बेहद ज्ञानी है ! दफ़्तर चलना मुश्किल होगा उसके बिना ! लोग आयेंगे सलाह मशविरे के लिये ! मार्गदर्शन देने लिये बैचैन साहब उम्मीद भरी आँखों से तकता है मार्ग !  पर अफ़सोस ! कोई नही फटकता ! दुखियारी शाम के बाद फिर से उदास सुबह चली आती है !  दिन बीतते है ! हफ़्ते बीतते है ! और फिर बीतते महिनो के साथ आस बीतने लगती है !

निराशा के भँवर मे गोते खाता साहब किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है ! बेचैन होता है ! सुबह पढ़ चुके अख़बार को दुबारा तिबारा पढ़ता है ! आस्था और संस्कार के साथ डीडी चैनल भी देखता है ! चुप्पी साधे पडे मोबाईल फ़ोन को निहारता साहब बीबी से फ़ोन ख़राब होने की शंका जाहिर करता है ! मन पक्का करके पुराने साथियों को अपनी तरफ से फ़ोन लगाता है ! और लगातार बजती घंटी को सुनकर दुखी होता है ! कॉलोनी मे ,बाज़ार मे ,पार्क मे ,हर सन्नाटे और आबादी में किसी पहचाने चेहरे को तलाशने की बेकार कोशिश करता है ! पार्क मे टहलते वक्त किसी पुराने मातहत को कन्नी काटकर किसी दूसरी पगडंडी पर मुड़ते देखता है और भारी मन और भारी क़दमों से घर लौट आता है !

वह पाता है दुनिया उसकी उम्मीद से कहीं पहले बदल गयी है ! अब कार का दरवाज़ा ख़ुद खोलना पड़ता है उसे और शॉपिंग के वक्त बिल भी ख़ुद ही चुकाना होता है ! थियेटर के लिये लगी लम्बी लाईन उसे हैरान करती है और ट्रैन मे सफ़र करते वक्त अपना बैग ख़ुद घसीटना उसे परेशान कर जाता है !

बैचैन साहब अब मिलनसार होने की कोशिश करता है ! शादी ,मुंडन से लेकर तेरहवीं तक के हर न्योते की इज़्ज़त करने लगता है ! मैयतो मे पाये जाने लगता है साहब ! हर जानपहचान वाले को जन्मदिन की बधाई देने लगता है ! आदत होती नही !  इसलिये ऐसा करना अजीब लगता है साहब को ! जाहिर है साहब की बेचैनी और ज़्यादा बढ़ती ही है!

दुनिया को बदलते देख मन ख़राब होता है साहब का ! वो पाता है उसके सामने याचक बने रहने वाले रिश्तेदार अचानक निष्ठुर हो उठे हैं  ,उसका दिया सारा उधार डूब गया है और अब किराने वाला भी चाहता है कि वो अपना पूरा बिल नगद चुकाये !

कुछेक साहब ऐसे मे अध्यात्म की दुनिया मे घुसने की कोशिश करते है ! पर ध्यान मे अचानक पुराना ऑफिस मय चपरासियो के घुस आता है ! विनम्रता से दोहरे होते ठेकेदार चले आते है मन मे ! धार्मिक होने की नाकाम कोशिश करता साहब जल्दी ही इस निष्कर्ष पर जा पहुँचता है कि वह ग़लत जगह चला आया है !

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बड़ाबाबू

हैरान परेशान रिटायर साहब बाल डाई करना भूलने लगता है ! तेज़ी से बूढ़ा होता है ! चिड़चिड़ाहट लौट आती है उसकी ! हताश साहब घर मे साहबी करने की कोशिश करता है और मुँह की खाता है ! अनमना बेटा कन्नी काटता है ! नाती पोते दूर भागते है ,बीबी उसे नाक़ाबिले बर्दाश्त घोषित कर देती है और बडे जतन से पाला पोसा गया कुत्ता तक उसे देख पँलग के नीचे घुस जाता है ! ऐसे वो कुढ़ता है वो ! नाशुक्री दुनिया को गरियाता है ! दुखी बना रहता है और आस पास वालो को दुखी करता है !

रिटायर साहब और कर भी क्या सकता है ? जब तक जीता है साहब ! यही करता है !

अतः समय रहते सुधार आवश्यक है साहबी छोड़ मानवीयता अपनाओ।

दोस्त बनाओ, अपनों को समय दो और दूसरों के काम आओ।

साहबी पकड़े रहे तो जिंदगी छूट जाएगी

जिन्‍दगी भर तो ऐश और अधिकारों के मतवाले बने रहते हैं अधिकारी लोग, लेकिन ज्‍यों-ज्‍यों उनके रिटायरमेंट का वक्‍त आने लगता है, उन्‍हें नश्‍वर जीवन की निस्‍सारता का अहसास तेजी से होने लगता है। यूपी के एक वरिष्‍ठ आईएएस अधिकारी ने यह आलेख मुझे भेजा है। आपसे अनुरोध है कि इस तरह के अनुरोध अगर आप में से किसी के पास हों तो वे उन्‍हें हमें हमारे पास भेज दें। हम आपके विचार पूरे सम्‍मान के साथ प्रकाशित करेंगे।

सम्‍पादक

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