खतरनाक साबित हुई बुलंदशहर की सेल्फी, और अब जौनपुर की जुल्फी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कामधाम न करना पड़े तो कोई भी काहिल दिनभर बाल संवारता रहेगा  : जिले का सर्वोच्च अधिकारी है. डीएम ! तुमने उस बच्ची पर क्या कार्रवाई की? : आखिर वजह क्या है कि रेपपीडि़त बच्ची पर अन्याय हुआ, तुम खामोश रहे : डीएम, तुमने बहुत किया आराम…….। अब अपनी गैर-जिम्मेदारी पर जवाब दो :

कुमार सौवीर

जौनपुर : अपने पर हुए हादसे से व्याकुल बच्ची पूरे नौ दिनों तक जिला अस्पताल में अपनी एडि़यां रगड़ती रही, लेकिन पुलिस वालों ने उसकी रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय उसे पागल करार दे दिया और फिर अपना पाप वाराणसी के पागलखाने के माथे पर फेंकने की कोशिश की। लेकिन पागलखाने ने पुलिस की इस पाशविक करतूत पर साथ देने से इनकार दे दिया। कुछ भी हो, असल सवाल तो यह उठ रहा है कि आईजी से लेकर पुलिस कप्तानों, सीओ और कोतवालों जैसे पुलिसवालों ने तो खैर अपनी जिम्मेदारी फेंक डाली, मगर वे कौन से कारण थे जो जिलाधिकारी भानुप्रताप गोस्वामी ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ दिया।

जौनपुर के डीएम भानुप्रताप गोस्वामी की हरकतों से जनमानस खासा क्षुब्ध है। लोग गोस्वामी की गैरजिम्मेदारी पर नाराज भी हैं और कटाक्ष भी खूब करने लगे हैं। लोगों का कहना है कि बुलंदशहर की डीएम बी चंद्रकला का सेल्फी का मामला खासा भड़क गया था, ठीक उसी तरह जौनपुर के डीएम का अपनी जुल्फें संवारना भी जौनपुर में महिला सुरक्षा-संरक्षा की खासी कीमत वसूल रहा है। यह कहावत खूब चल चुकी है कि:- बहुत खतरनाक साबित हुई बुलंदशहर की सेल्फी, और अब जौनपुर की जुल्फी।

आपको बता दें कि एसपी समेत सारे पुलिस अधिकारी और कर्मचारी सरकार के केवल एक पुलिस विभाग के होते हैं। जबकि जिलाधिकारी का काम सरकार के सारे विभागों की कार्य-शैली और उनकी कमी-बेशी पर निगहबानी की होती है। माना यही जाता है कि अपराधों के नियंत्रण और उनसे निपटने के लिए पुलिस कप्‍तान को असीम अधिकार दिये गये हैं। लेकिन इसके बावजूद जब कोई कप्तान अपने दायित्वों से विमुख होता है तो ऐसी हालत में जिलाधिकारी की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपने स्तर पर हस्तक्षेप करे। लेकिन भानुप्रताप गोस्वामी ने इस बारे में लगातार खामोशी ही बनाये रखी। नतीजा यह हुआ कि उस गैंग-रेप पीडि़त बच्ची की मेडिकल जांच तक नहीं हो पायी और न ही पुलिसवालों ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर दुष्कर्मियों को पहचान करने उन्हें जेल के सींखचों में बंद किया जा सके। कहने की जरूरत नहीं कि यह जिम्मेदारी सीधे-सीधे जिलाधिकारी की ही थी। जो कि उन्होंने नहीं किया। जिले की एक वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ ने इस बारे में बातचीत करने के दौरान बताया कि चाहे वह पुलिस का अधिकारी हो या फिर प्रशासनिक, सभी ने भी इस मामले में हृदयहीनता का प्रदर्शन और इस असहाय बच्ची की अस्मत का खुला मजाक उठाया। वह तब जब कि जिले में दो एसडीएम अधिकारी महिलाएं भी हैं, जिनमें से एक ने तो कल 24 फरवरी की शाम जिला पुरूष और महिला अस्पताल का करीब साढ़े चार घण्टों तक इसी मसले पर बातचीत करती रहीं। इस डाक्टर ने बेहद भरे गले से कहा कि अगर यह महिला अधिकारी 17 फरवरी से लेकर 24 फरवरी तक अस्पताल पहुंच कर अपना दायित्व निभा लेतीं तो इस बच्ची की यह दुर्गति नहीं होती, जो इस वक्त हो रही है कि उसे गैंग-रेप भी सहा और बची-खुची अस्मत उसे पागल के तौर पर प्रमाणित कर डाली।

काश, जौनपुर के जिलाधिकारी भानुप्रताप गोस्वामी अपनी जुल्फी संवारने में वक्त जाया करने के बजाय जिले में कानून-व्यवस्था की निगरानी करने का दायित्व सम्भालते तो यह नौबत नहीं आती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *