चूतिया हमेशा चूतिया ही रहेगा, जैसे बनारस का डीएम

दोलत्ती

: चूतिया शब्‍द मादा-अंग का परिचायक शब्‍द नहीं, बल्कि स्‍लैंग है, अर्थ है मूर्ख-प्रवर : काशी के व्‍यवसायी-नेता पर केंद्रित आलेख का अगला अंक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मेरी एक नयी, लेकिन बेहतरीन महिला मित्र से आज अचानक एक लाजवाब चर्चा हो गयी। वे एक मेडिकल कालेज में बच्‍चों के रोग की शिक्षक हैं। बातचीत शुरू हुई चूतियों और चूतियापंथी की सनातन और प्राचीन परम्‍परा के साथ ही लोगों की असल चूतियापंथी वाली प्रवृत्ति पर। उन्‍होंने इस चूतिया शब्‍द पर ऐतराज किया। उनका कहना था कि चूतिया शब्‍द अश्‍लील है और किसी महिला के साथ बातचीत के दौरान हमें चूतिया जैसे शब्‍दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

उनकी बात बिलकुल दुरुस्‍त थी। सच बात यही है कि चूतिया शब्‍द सुनते ही कोई भी महिला असहज हो सकती है या असहज हो जाती है। लेकिन तथाकथित आभिजात्‍य पुरुष-वर्ग इस शब्‍द पर भरपूर आनंद लेने के बावजूद उस पर ऐतराज करता है, अपनी नाक-भौं सिकोड़ना शुरू कर देता है। खैर, शिक्षिका के साथ बातचीत को लेकर उनकी दिक्‍कत और मेरे तर्क भी जमीनी और धरातल पर थे। सो, हमने उनको पूरा शिजरा खोल दिया। हमने उनके सामने चूतिया, चूतियों, और असल चूतियापंथी पर बाकायदा व्‍याख्‍यान दे दिया। आइये, हम आपको बता देते हैं कि उस भद्र महिला के साथ चूतियापंथी को लेकर मेरी क्‍या क्‍या-क्‍या और क्‍यों-क्‍यों ही नहीं, बल्कि कैसी व कितनी चर्चा चली।

मैंने उनको बताया कि चूतिया किसी प्राणी के अंग-विशेष का हिस्‍सा-प्रतीक नहीं है, जिसके बारे में सामान्‍य तौर पर लोग-बाग प्राणी के रिप्रोडक्‍शन यानी प्रजनन की सर्वोच्‍च भावुक, प्रेम, मार्मिक, नाजुक और सर्वोत्‍तम स्थिति में जाना-पहचाना और पहुंचना शुरू कर देते हैं या उसका अर्थ का अनर्थ समझ कर उसको अपने परिवार और खास कर महिलाओं के लिए असहज बनाना शुरू कर देते हैं। हां, इतना जरूर है कि इस शब्‍द से एक मादा के अंग-विशेष का भान जरूर होता है। लेकिन उसका जिम्‍मेदार भाषा या व्‍याकरण नहीं, बल्कि हमारी मूर्खतापूर्ण और तथाकथित त्‍वरा-बुद्धि ही होती है, जो हमें सांकेतिक तौर पर हमें शर्मिंदा करने पर बाध्‍य करती है। वजह यह कि इस शब्‍द को इस भाव में देखने के लोग और उसका अनुयायी वर्ग उससे तनिक भी अलग समझने को तैयार ही नहीं होता है।

हकीकत तो यही है कि यह दिक्‍कत शब्‍द से नहीं, बल्कि उसके प्रति हमारी अज्ञानता और शंकालु प्रवृत्ति होती है।
मैंने उनको बताया कि चूतिया शब्द व्याकरण या ग्रामर नहीं, बल्कि स्‍लैंग के तौर पर ही है। ठीक उसी तरह, जैसे अंग्रेजी का अब्रा के डकरा नामक शब्‍द। ठीक उसी तरह जैसे बेफिजूल। जैसे जाल तू, जलाल तू, आयी बला को टाल तू। जैसे बकलोल। जैसे लड़हु जगधर। जैसे बकलण्‍ठ। वगैरह-वगैरह। भूत-प्रेत, डायन, बला, शैतान, बला और अलाय-बलाय। लेकिन सच बात तो यही है कि यह एक ऐसा शब्द है जो आपकी अभिव्यक्ति को प्रवाह और गति भी देता है। आपकी बात की आवाज और उसके असर को ज्‍यादा असरकारी बनाता है।

यह वही शब्‍द और उसका सगोत्रीय-शब्‍द है जो आपकी रवानगी, आपके अंदाज़, आपकी मस्ती और आपके बेलौस अंदाज़ को परिलक्षित करता है। आपको सहज तौर पर अलमस्‍त करता रहता है। लेकिन शब्‍द के मूल अर्थ के बजाय, उसके स्‍लैंग के साथ। मैंने डॉक्‍टर साहब को समझाने की कोशिश की, कि हमें भाषा, जुबान और लहजे को हमेशा अलग तरीके और लहजे में समझने की कोशिश करना चाहिए। मान कर ही चलना चाहिए कि सामने वाले का मकसद कभी भी आपके लिए अपमानजनक नही हो सकता। जब तक, कि आप साबित न कर लें उस शख्स के लहजे में कोई काबिल-ए-ऐतराज मामला है अथवा नहीं। मैंने उनका साफ बता दिया कि कुमार सौवीर के विचार और उनके तर्क तब तक जिन्‍दा जरूर रहेंगे, जब तक या तो कुमार सौवीर दीवार पर माला चढ़ाए न टंगे दिखने लगें या फिर मेरी व्‍याख्‍याओें का प्रमाणिकीकरण न हो जाए।

यह एक श्रंखलाबद्ध आलेख उपक्रम है। इसका अगला अंक बनारस समेत कई जिलाधिकारियों की प्रवृत्ति के प्रति समर्पित हैं, जो हमेशा अपने अहंकारी भाव की लंगोट खोले बैठे रहते हैं। ठीक उसी तरह, जैसे बनारस के लोग गंगा जी का स्‍नान करते वक्‍त गमछा तो कमर पर लपेटे रहते हैं, जबकि लंगोट कंधे पर। कोई टोके तो खौखियाते हैं, जैसे बनारस का डीएम। उसका नाम है कौशलराज शर्मा। कई जिलों में खासी नौटंकी कर चुका है यह डीएम। खैर, उसके अतीत का शिजरा तो बाद में लिखने जा रहा हूं। ताजा घटना यह कि कि जिस तरह बनारस के एक व्‍यापारी संघ के अध्‍यक्ष ने मुख्‍यमंत्री के साथ हुई बात को वायरल करने के आरोप में बनारस के जिलाधिकारी ने अपनी अफसरी की गुंडागर्दी मचायी है, उसकी चिंदियां बिखरने पर आमादा हैं पत्रकारिता में उगने वाली हमारी नयी संततियां। नेतृत्‍व कर रहा हूं मैं।

इस खबर-विश्‍लेषण को लेकर मैंने कई अंकों में प्रकाशित लेखों-आलोखों के तौर पर छापने का अभियान छेड़ने जा रहा हूं। हम इस विषय पर बाकायदा श्रंखला-बद्ध प्रकाशित करते करेंगे। इस श्रंखलाबद्ध आलेख रिपोर्ताज के अगले अंक को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
बनारस का डीएम: चूतियापंथी तो डीएनए में होती है

 

2 thoughts on “चूतिया हमेशा चूतिया ही रहेगा, जैसे बनारस का डीएम

  1. बहुत सुंदर व्याख्या आपने की भ्राताश्री मैं भी चाहता इन भ्रष्टाचारी नौकरशाहों की लंगोट आम जनता जनार्दन की बीच भरे बाजार खोली जाए ताकि इनकी तानाशाही भरी नौकरशाही भरे बाजार दिखाई जा सके। बताते चलो जब कौशल राज शर्मा लखनऊ के जिलाधिकारी हुआ करते थे उस वक्त संजय आजाद की काल को रिसीव करने से कतराते थे क्योंकि मैं उनके मैसेज बॉक्स में खुलेआम भ्रष्टाचारी चोर डकैत लुटेरे इत्यादि इत्यादि सुंदर सुंदर मनमोहक प्रवचनों से उन्हें संबोधित करता था और वे रिसीव करके चुप हो जाते थे एक बार भूलवश शर्मा जी ने हमारी कॉल रिसीव करते ही बोले… बोलो संजय भैया !!!
    मामला था अवैध निर्माण के तहत रामाधीन सिंह इंटर कॉलेज के भूमाफिया प्रबंधक हिस्ट्रीशीटर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का। राजधानी लखनऊ में कौशल राज शर्मा जब तक जिलाधिकारी रहे संजय आजाद के सामने भी भीगी बिल्ली बन कर रहते थे , क्योंकि आपके अनुज का मानना है कि ….ऐसे भ्रष्ट नौकरशाहों कि जिगरा नहीं होता है।

    कुल मिलाकर आपने भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ जो अभियान छेड़ा है वो भ्राताश्री बहुत ही काबिलेतारीफ है …और मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूं कि आपकी लेखनी की धार से….इन चोर डकैत भ्रष्टाचारी नौकरशाहों की लंगोट अपने आप गीली हो जाएगी …!!!

    यही नहीं 1 दिन ऐसा भी आएगा कि ये भ्रष्टाचारी अपने मुंह पर खुद ही तमाचा मारने को लालायित होते दिखाई पड़ेंगे… डंके की चोट पर….!!!
    जय हो !👌👌👌👌🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🌹🌹🌹🌹

  2. भाषा एवं शब्दों का बेहद प्रभावी प्रयोग किया है। इससे आपकी निर्भीकता, बेबाकी और ज्ञानवर्द्धक लेखन शैली में प्रवीणता का प्रकटीकरण होता है। यदि थोड़ा संयमित हों, तो आगामी चुनाव में पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करें। प्रस्ताव मेरी तरफ से। सादर। शैलेन्द्र श्रीवास्तव, पत्रकार, लखनऊ।

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