: योगी-सरकार की खटिया न खड़ी करो : अक्लन, दखलन, शक्लन और मसलन : तब न महादेव बच पाते और न काशी की जरूरत : नोटिस पर दस्तखत नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : चकाचक बनारसी। वे एक अप्रतिम शख्सियत थे। कविता में बोर करने वालों से बिलकुल अलहदा। टू द प्वाइंट बात करते थे। बेहया माने जाने वाले शब्दों को इतने करीने से सजाते थे, कि असल मर्म बाहर उबल कर सामने वाले के दिल तक धंस जाता था। बेलौस, बेझिझक और सटीक मारक। बोफोर्स की तरह। धमाकेदार इतना कि एक ही वार में कारगिल फतह हो जाए। यह नहीं कि राफेल की तरह दुनिया भर में हंगामा खड़ा कर दिया, लेकिन एक मूस-चूहा तक न उखाड़ पायें। गलवान घाटी में 20 जवानों की लाश का जवाब भी न दे पायें, लेकिन पाकिस्तान के पीछे चिल्ल-पों करने लगें। बनारस जैसे जिलों के कलेक्टरों की हर रग-नस से वाकिफ हुआ करते थे चकाचक बनारसी। उन पर कई कविताएं आज भी बनारस में गायी जाती हैं। होली के एक कवि-सम्मेलन में उन्होंने साफ बोला:- सब जानते हैं दंगा हुआ मदनपुरा में, मगर कर्फ्यू है लहुराबीर तेरी ……।
तो बात चल रही थी चूतिया, चूतियों और चूतियापंथी की सनातन परम्परा की। मेरा मानना है कि गोत्र-वार अगर पहचान शुरू की जाए तो हम पायेंगे कि चूतिया मूलत: चार तरीके के उपलब्ध होते हैं। अक्लन चूतिया, दखलन चूतिया, शक्लन चूतिया और मसलन चूतिया। पहले नम्बर पर अक्लन, यानी बुद्धि से पैदल अर्थात मूर्ख। दूसरे दखलन, यानी दो लोगों के बीच हो रही बातचीत में खाम-खां कूद पड़ने वाले। तीसरी जाति होती है शक्लन, यानी ऐसे चूतिये जो शक्ल से दे ही आभास दे पड़ते हैं कि हां वे वाकई चूतिया हैं। और आखिरी होते हैं मसलन, यानी उदाहरणार्थ, अथवा फॉर एक्जाम्पल, मसलन इन उपरोक्त तीनों गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व।
हालांकि नासा और डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में एक नयी प्रजाति का चूतिया खोज लिया है जिसका नाम रखा है चमन-चूतिया। यानी ऐसा चूतिया जिसको देखते ही किसी भी गुलशन, चमन, बाग, पार्क, खलिहान या लॉन वगैरह के पेड़, पौधे, घास ही नहीं, बल्कि पूरा का पूरा वातावरण और पर्यावरण ही थरथराने लगे।
काशी यानी बनारस की पवित्र धरा-धरती ऐसे महान चूतियों से अटी-पड़ी है। क्या जनता और क्या अफसर। क्या धनवान और क्या कलेक्टर। और तो और, भगवान शिव भोले शंकर महादेव ने एक बार भस्मासुर को ऐसा आशीर्वाद दे दिया कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्मीभूत हो जाएगा। यह जानते हुए भी कि ऐसे आशीर्वाद ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहिए। लेकिन औघड़दानी ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। नतीजा यह हुआ कि भस्मासुर ने शिवशंकर को ही दौड़ा लिया। वह तो गनीमत है कि विष्णु जी की बुद्धि काम आ गयी और वे क्षीर-सागर की शेषनाग-शैया से उठ कर भागे-भागे काशी पहुंचे और उल्टा भस्मासुर को ही भस्म करवा डाला। वरना तब न महादेव बच पाते और न ही इस काशी की कोई जरूरत ही पड़ती।
बहरहाल, असल किस्सा यह है कि जब मुख्यमंत्री योगी और व्यवसायियों के नेता से जनता और उद्यमियों के हितों को लेकर बातचीत हो रही थी, तो जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने क्यों अपनी टांग फंसायी? खाम-खां, कोई भी बुद्धि नहीं लगायी कि दो लोगों के बीच में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। अरे पहले मामले को तो समझते। नोटिस काहे थमा दी तुमने व्यापारी नेता को? योगी जी ने तुम्हारी अदालत में कोई नालिश की थी, कोई अर्जी लगायी थी कि, “डीएम साहब ! इस राकेश जैन को सबक सिखाओ। इसने मेरी बातचीत का टेप वायरल कर मुझे बदनाम कर दिया है। ”
काहे खौखिया पड़े तुम? यूएनओ, ट्रम्प, पुतिन, इमरान, जिनपिंग अथवा मौलाना साद से कोई साजिश तो कर नहीं रहे थे। तुमसे क्या मतलब था? अपना कामधाम तो करते नहीं हो। एक गरीब चाय-विक्रेता को तुमने सिर्फ मास्क न पहने ग्राहकों की मौजूदगी के अपराध में जेल में बंद करा दिया। अरे लोक-सेवक हो, तो सेवक की तरह ही व्यवहार करो। योगी-सरकार की खटिया न खड़ी करो।
और काबिलियत और उतावली का तेल लगाने का नमूना यह देखिये कि इस डीएम ने जिस व्यापारी नेता को तीन दिन की नोटिस दी है, उस पर दस्तखत तक करने की जरूरत नहीं समझी कौशलराज शर्मा ने।
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बनारस का डीएम: चूतियापंथी तो डीएनए में होती है
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तनी रुका रजा। डीएम खौखियावत बा
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