: कौन मानेगा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने बेटे की सिफारिश न की : ठीक से वकालत में जन्म भी नहीं हुआ, सीनियर एडवोकेट का पैनल दिया : हंगामा मचा तो छह दिन के बाद राज्य सरकार ने सीनियर पैनल स्थगित कर डाला : सूसू-पॉटी वाली मैमी-पोको चड्ढी उतारने की तमीज भी नहीं श्रीयश ललित में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : देश के एक सर्वोच्च जज रहे हैं शरद अरविंद बोबड़े। उनकी खासियत उनके तौर-तरीकों जैसी ही थी। मसलन, कलकत्ता के एक समारोह में अचानक उनकी पैंट ही खिसक गयी। भले ही वे नंगे न हो पाये, लेकिन देखने वालों को पक्का चल गया कि वे अपनी पैंट उतर जाने के चलते वे नंगे ही हो गये होंगे। ठीक उसी तरह की हरकत बोबड़े ने अपने कार्यकाल में दिखायी जिसने देश की न्यायपालिका को ही नंगा कर दिया। लोग बात तो खुल कर बोलने लगे कि कोरोना दौर में मची तबाही के दौर में अगर भारत की जनता के लिए एक छोटी-सी अच्छी चीज़ हुई है तो वो ये कि भारत के मुख्य न्यायाधीश रिटायर हो गए”।
इतना ही नहीं, लोग बोले कि बोबडे ने 18 महीने के अपने कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट की आस्था को जितना नुकसान पहुंचाया है, नहीं लगता किसी और चीफ़ जस्टिस ने ऐसा किया होगा। उनके कार्यकाल में जनता का अदालत पर विश्वास खत्म हुआ और साफ लगने कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट का सोचने का ढंग एक-समान ही है, सरकार की पैरोकार और जनता के खिलाफ। सबसे शर्मनाक तो यह रहा कि जस्टिस बोबडे ने अपने किसी मित्र की हार्ले डेविडसन बाइक को किसी लौंड़े-लफाड़ी की तरह नागपुर की सड़कों पर चलाते जींस-टीशर्ट पहन कर फोटो खिंचवायी। चर्चाओं के अनुसार यह बाइक आरएसएस के एक बड़े नेता परिवार की थी।
उसके पहले तो चीफ जस्टिस आफ इंडिया रह चुके हैं तरुण गोगोई। उन पर अपनी निजी सचिव से यौन-उत्पीड़न का आरोप था। और भी कई गंभीर आरोप भी थे, लेकिन हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट की आज़ादी पर सवाल सुप्रीम कोर्ट के कुछ विवादास्पद फैसलों के कारण, जस्टिस रंजन गोगोई पर इल्ज़ाम लगा कि देश की सबसे ऊँची अदालत केंद्रीय सरकार का पक्ष लेने लगी है। खुलासा तो तब हो गया कि गोगोई को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद से रिटायर होने के तत्काल बाद सांसद का ताज दे दिया गया। न्यायविधि इसको सरकार का चरण चूमने वाली बेशर्मी की बेइंतिहा मानते हैं।
अब ताजा मामला है यूयू ललित का, जो इस वक्त भी देश की सर्वोच्च न्यायालय की कुर्सी पर 49 वें सर्वोच्च न्यायाधीश हैं, लेकिन चंद दिनों में ही उनकी छवि पर इतना दाग पड़ गया है कि शायद ही कभी भूला जा सके। तनिक गौर कीजिए कि जुम्मा-जुम्मा चार दिन की अदालती प्रैक्टिस की थी, पांव पालने से नीचे भी नहीं उतारे थे और सूसू-पॉटी वाली मैमी-पोको वाली चड्ढी उतारने की तमीज तक नहीं सीख पाया था देश का सर्वोच्च न्यायाधीश का बेटा, कि उसे यूपी सरकार ने सीनियर एडवोकेट के पैनल में शामिल कर लिया। जबकि हाईकोर्ट के वकील सीनियर एडवोकेट का दर्जा तब ही हासिल कर पाते हैं, जब उनके दांत हिलने लगते हैं और घुटनों की क्रियाशीलता खात्मे पर होती है। लेकिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित के बेटे श्रीयश ललित को यूपी सरकार ने यह जो कृपा अता फरमायी, उससे तो वह न्यूनतम समय में ही हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में जज बन जाने की सारी बाधाएं तोड़ सकता था। कहने की जरूरत नहीं है कि श्रीयश को अदालत तो दूर, अदालत परिसर में घुसने के लिए महज पांच बरस ही हुए हैं, और इतना समय में कोई भी वकील ठीक से अदालती में घुसना और अदालत की कार्यशैली समझना तो दूर, अपने सीनियर एडवोकेट की फाइलें और सामान सम्भालने तक में अपरिपक्व होता है।
अधिवक्ता जगत में श्रीयश यू ललित के साथ यह पक्षपात-पूर्ण हरकत एक निहायत बेशर्म घूसखोरी के तौर पर ही देखी जा रही है। खास तौर पर तब, जब श्रीयश यू ललित के पिता देश के सर्वोच्च न्यायाधीश की कुर्सी पर विराजमान हैं। और कोई भी व्यक्ति यह विश्वास कर रहा है कि श्रीयश यू ललित जैसे दो-चार बरस की प्रैक्टिस करने वाले अपने ही पुत्र को वरिष्ठ अधिवक्ता के पैनल में शामिल करने में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के रुतबों और सिफारिश का इस्तेमाल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित ने नहीं किया होगा।
हालांकि सच बात तो यही है कि यूयू ललित अब अपने बेटे को लाभ दिलाने में बुरी तरह फंस गये। अपयश तो इतना हो चुका है कि कई दशकों तक इस हादसे को अदालती जगत में भुलाया नहीं जा सकेगा और ऐसी किसी भी ऐसी हरकत पर बात-बात पर जस्टिस ललित और उनके बेटे की करतूत का मामला नजीर के तौर पर पेश कर दिया जाएगा।