ठहाकों की सीरियसनेस पर ‘बधाई हो’

बिटिया खबर
: बढ़िया फिल्म देखने जाने का मन बने तो एडवांस में बधाई हो : खाना खा लिया है बेटा, पति से बिनबोला प्रेम, सास से स्टार वार प्लस स्नेह, और नुकीली सलाई से रिश्तों को बुनने वाला किरदार : पारंपरिक होते हुए प्रगतिशीलता का दमखम :

प्रो. अमिताभ
नई दिल्‍ली : ‘फालतू की सीरियसनेस पर बस हंसा जा सकता है और ठहाकों के भीतर भी गहरी संजीदगी छिपी हो सकती है।’ ‘बधाई हो’ देखी तो पत्रकारिता के अपने गुरु अखिलेश मिश्र की बात याद आ गयी।
निर्माता-निर्देशक अमित शर्मा की फिल्म की थीम भी किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकती है। अपनी शादी की प्लानिंग में लगे नायक को अचानक पता चलता है कि उसके बाप फिर से ‘बाप’ बनने वाले हैं। फिर क्या होता है? कैसे होता है? फिल्म इन्हीं सवालों-जवाबों के साथ बहती जाती है और दर्शक कहीं हंसते, कभी चुप्पी साधते और कभी पलकों के बीच आंसू छिपाए इसकी लहरों में डूबते उतराते रहते है।
फिल्म मी टू के दौर में शायद उससे बढ़कर प्रगतिशीलता की बात करती है। पर साथ-साथ बड़ी संजीदगी से पारिवारिक मूल्यों की अंगुली थामे हुए। किरदार करीने से खुलते जाते हैं। आप सतह दर सतह हर किरदार में सफर करते हैं।
कइयों को टेलीविजन पर बरसों पहले खानदान सीरियल वाली नकचढ़ी बिजनेसवूमैन केतकी यानी नीना गुप्ता याद होगी। वहीं नीना यहां चुप्पी साधे संवेदनशील मध्यवर्गीय महिला के रोल में है। ‘खाना खा लिया है बेटा, पति से बिनबोला प्रेम, सास से स्टार वार प्लस स्नेह, और नुकीली सलाई से रिश्तों को बुनने वाला यह किरदार नितांत अपना सा लगता है। पर यही पारंपरिक सी पात्र अधेड़ उम्र में बच्चे को जन्म देना चाहती हैं क्योंकि न वह जीव हत्या करना चाहती है न अपनी संवेदना का वध। मूल्यों के सहारे प्रगतिशीलता की जंग लड़ने वाला अनोखा किरदार है नीना का।
तलवार, आमिर और ब्लैक फ्राइडे में दमदार अभिनय की झलक दिखा चुके गजराज राव को इस फिल्म को देखने के बाद आप भूल नहीं पाएंगे। कंजूस, कवि, बीबी के सामने दब्बू, मर्दानगी पर दंभ और साथ में संजीदगी इतने शेड्स आपने कम ही किरदारों में देखें होंगे।
अजीब से हालात के बीच फंसे युवक के किरदार को आयुष्मान ने शिद्दत से निभाया है। वो अकेला चेहरा थे, जिनपर हाल तक भीड़ खींचने की जिम्मेदारी थी। उन्होंने दिखा दिया कि उनका अपना दर्शाकों का एक बड़ा वर्ग उनसे जुड़ा है। सौम्यता, उर्जा और संजीदगी का जोड़ उन्हें मध्यवर्गी किरदारों के करीब रखता है। अंधाधुन के साथ बधाई हो, दो फिल्मों में आयुष्मान साथ साथ नजर आये है और दोनों को हिट किया है। कम बजट वाली फिल्मों के लिए ऐसे कुछ अन्य हीरो मिलें तो अच्छे दिन हैं।
दंगल की बबिता फोगाट सान्या मल्होत्रा का किरदार छोटा था, पर खूबसूरत दिखने के साथ उन्होंने इसे खूबसूरती से निभाया। दादी के रोल में सुरेखा सीकरी का अभिनय लाजवाब है जो पारंपरिक होते हुए प्रगतिशीलता के पाले में नजर आती है। वहीं हाई क्लास लेडी के किरदार में शीबा चड्ढा इस वर्ग के पूर्वाग्रहों और कहीं गहरें धंसे बैठे दकियानूसीपन को सामने लाती हैं।
ऐसी फिल्म को पर्दे से पहले कागज पर कारनामा करना होता है। स्क्रिप्ट स्टोरी स्क्रीन प्ले डायलाग अक्षत घिल्डियाल के हैं और उनकी टीम ज्योति कपूर, शांतनु श्रीवास्तव से दमदार हो जाती है। कुल मिलाकर बढ़िया फिल्म देखने जाने का मन बने तो एडवांस में बधाई हो।

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