“भ्रष्‍टाचार से जुटाए धन से गरीबों का भला कर रही सरकार”

बिटिया खबर

: यह बयान उप मुख्‍यमंत्री केशवप्रसाद मौर्या की मनो-उपज है या बेहूदगी है दैनिक जागरण की, स्‍पष्‍ट नहीं हो पा रहा : अर्थ को अनर्थ की तरह पेश करना तो दैनिक जागरण की जन्‍मजात आदत है : प्रदेश सरकार में सुल्‍ताना डाकू या चंबल के दुस्‍युओं की करतूत का आभास है, सुविचारित-संवैधानिक ढंग नहीं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपको जान कर हैरत की होगी कि यूपी के गरीबों के लिए जो भलाई कर रही है योगी सरकार, उसके खर्चे का प्राविधान राज्‍य सरकार के बजट में नहीं तय किया गया है। बल्कि प्रदेश के गरीबों की भलाई का काम तो भ्रष्‍टाचार से जुटाये धन से प्रदेश सरकार कर रही है। लेकिन बयान उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का वाकई है भी या नहीं, यह अब तक संशय बना ही हुआ है।
वैसे भी राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के मुताबिक उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के पास दरअसल कोई सुविचारित मुद्दा तो होता नहीं है। ऐसी हालत में अफसर और पत्रकार ही नहीं, बल्कि खुद भाजपा के नेतागण भी मानते हैं कि केशव जी के मन में जो भी आ जाता है, वे भक्‍क से बोल ही पड़ते हैं। ठीक यही हालत तो दैनिक जागरण के पत्रकारों की भी है। वे अक्‍सर तो ऐसी-ऐसी बातों को खबरों की शक्‍ल में कुछ ऐसा पेश कर देते हैं, जो असल बात के बजाय उल्‍टी बात ही साबित होने लगती है।
एक दिन पहले केशवप्रसाद मौर्या के बयान को लेकर हंगामा हो गया। घटना के अनुसार चित्रकूट में अपने एक कार्यक्रम के दौरान केशव प्रसाद मौर्या ने एक समारोह को भी संबोधित किया था। इसमें उन्‍होंने अगले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 80 सीटों पर भाजपा के जीतने का दावा किया। यह भी कहा कि करीब तीस बरस पहले यूपी में बनी कांग्रेस की सरकार के दौरान 80 फीसदी रकम घूस में चला जाता था। वगैरह-वगैरह। लेकिन इस समारोह की रिपोर्टिंग करते वक्‍त दैनिक जागरण ने उस घटना की जो हेडिंग लगायी, वह पढ़ कर लोग हतप्रभ और शर्मसार हो गये। एक पाठक ने बताया कि यह तो सुल्‍ताना डाकू या चंबल के दुस्‍युओं की करतूत का सा आभास हो रहा है, बजाय इसके कि सरकार सुविचारित और संवैधानिक ढंग तरीके से काम कर रही है।
दरअसल, केशव प्रसाद मौर्या की ओर से जो खबर पर हेडिंग लिखी गयी थी उसमें साफ लिखा हुआ है कि भ्रष्‍आचार से जुटाये धन से सरकार कर रही गरीबों का भला।
हालांकि अब तक स्‍पष्‍ट नहीं हो सका है कि केशव प्रसाद मौर्या जी दरअसल यही बात कहना चाहते थे, जो दैनिक जागरण ने छाप दिया। या फिर केशव प्रसाद मौर्या की बात को तोड़ मरोड़ कर दैनिक जागरण ने प्रस्‍तुत कर अर्थ का अनर्थ कर दिया।

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