छपरा में फंसा है हंगरी का युवा। संवेदनहीनता और क्या होगी

दोलत्ती

: छपरा में फंसे हंगरी के नागरिक विक्टर ज़िको की परेशानी का हल आखिर कैसे निकलेगा ? : हंगरी से एक युवा साइकिल चलाते हुए 11 देशों को पार करते हुए भारत पहुंचा :

मुकुंद हरि

छपरा : हंगरी से एक युवा साइकिल चलाते हुए 11 देशों को पार करते हुए भारत पहुंचा। नाम है विक्टर ज़िको। विक्टर की इस हज़ारों किलोमीटर की यात्रा का लक्ष्य है दार्जिलिंग।

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में एलेक्जेंडर सीसोम डी की कब्र है। एलेक्जेंडर सीसोम डी करीब 200 साल पहले भारत आये थे। हंगरी में उनकी एक भाषाविद के रूप में बड़ी प्रतिष्ठा है। कहा जाता है कि उन्हें करीब 13 भाषाओं का ज्ञान था। पहला तिब्बती-अंग्रेज़ी शब्दकोश एलेक्जेंडर सीसोम डी ने ही तैयार किया था। दार्जिलिंग में ही उनकी मृत्यु हुई थी। हंगरी से प्रत्येक वर्ष कुछ लोग आधिकारिक रूप से एलेक्जेंडर सीसोम डी की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आते रहे हैं। विक्टर ने करीब 10 महीने पहले अपनी इस यात्रा की शुरुआत की थी। उस समय दुनिया में कहीं नोवेल कोरोना वायरस का कोई संकट भी नहीं था। प्राप्त सूचना के अनुसार विक्टर 8 फरवरी को भारत पहुंचा।

छपरा सदर अस्पताल के सिविल सर्जन के मुताबिक विक्टर ने बताया कि इसी यात्रा के दौरान उसे पाकिस्तान में किसी दस्तावेज की कमी बताकर गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया था। कई दिनों के बाद विक्टर को रिहा किया गया। अभी भी पाकिस्तान का नाम सुनते ही विक्टर भड़क कर बिल्कुल आग-बबूला हो जाता है। जानकारी के मुताबिक यात्रा के दौरान मार्च में विक्टर को बनारस में भी पुलिस ने रोका था लेकिन वह वहां से बिना ज्यादा परेशानी के आगे निकल गया था। बनारस से चलकर विक्टर ज़िको उत्तर प्रदेश की सीमा पार करते हुए सारण जिले की सीमा में दाखिल हुआ।

24 मार्च 2020 को छपरा से करीब 11 किलोमीटर पहले रिविलगंज थाने की सीमा में गांव वालों ने विक्टर के रूप में एक विदेशी नागरिक को देखकर (शायद कोरोना संक्रमण की आशंका में) पकड़ लिया। एक संदिग्ध विदेशी नागरिक के घूमने और लोगों द्वारा पकड़े जाने की सूचना सारण जिले के कलेक्टर सुब्रत सेन को वहां की पुलिस ने दी। खबर मिलते ही जिला प्रशासन ने विक्टर को गांव वालों के चंगुल से छुड़ाया और छपरा के सदर अस्पताल के कोविड-19 के लिए बने आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया गया।

विक्टर इस दौरान अस्पताल के कर्मचारियों से घुल-मिल गया और कभी अपने वार्ड के बड़े से कमरे तो कभी गलियारे में घूमता, कसरत वगैरह भी करता।

इसी बीच 1 अप्रैल को विक्टर की कोरोना की रिपोर्ट आ गयी। रिपोर्ट निगेटिव निकली। साथ ही, लॉकडाउन की अवधि भी बढ़ती गयी। विक्टर को उम्मीद थी कि लॉकडाउन हटते ही उसे दार्जिलिंग जाने की अनुमति मिल जाएगी लेकिन ये संभव न हो सका।

करीब 11-12 अप्रैल की रात को विक्टर का लैपटॉप, कुछ कपड़े, करीब 4 हज़ार रुपये और पासपोर्ट अस्पताल से चोरी हो गए। सीसीटीवी फुटेज और दूसरे स्रोतों के आधार पर पुलिस ने छानबीन की और जल्द ही चोर पकड़ लिए गए। वे अस्पताल के पास के ही मुहल्ले के थे। चोरों ने विक्टर के कपड़े और पासपोर्ट जलाने की कोशिश की थी। विक्टर के लगभग सभी सामान भी बरामद कर लिए गए लेकिन पासपोर्ट अधजला मिला। स्थानीय प्रशासन की मदद से विक्टर के लिए उसके दूतावास के माध्यम से नए पासपोर्ट देने का अनुरोध किया गया। अभी हाल ही में विक्टर को नया पासपोर्ट भी मिल गया है।

इस बीच यूं ही करीब 8 हफ़्ते गुज़र गए। लॉकडाउन के दौरान विक्टर अपने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर बिहार के छपरा शहर के अस्पताल में पड़ा परेशान हो गया। अपने गुस्से और तनाव को दूर करने के लिए विक्टर अपने कैमरे से कभी-कभी वीडियो बनाकर अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर भी डालने लगा।

फिर भी उसकी मानसिक स्थिति क्या होगी ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कोरोना की निगेटिव रिपोर्ट मिलने के बाद विक्टर कभी-कभी अस्पताल के बाहर मुख्य सड़क तक भी घूम आता था। खुद के साथ घटी चोरी की घटना और अपने इतने लंबे ठहराव की वजह से अब विक्टर हिन्दी के – नमस्ते, गर्म चाय, चलो ठीक है, क्या हाल है… जैसे कई शब्द और उनका अर्थ सीख और समझ चुका था।

विक्टर ने देखा कि लॉकडाउन में थोड़ी छूट मिली है तो शायद उसे भी अब आगे जाने की अनुमति मिल जाएगी। इसी आधार पर वो अब किसी भी तरह छपरा के सदर अस्पताल से निकलने की कोशिशों में लग गया। लेकिन दूसरी तरफ जिला प्रशासन का कहना है कि केन्द्र सरकार की तरफ से किसी विदेशी व्यक्ति को भारत में उसकी आगे की यात्रा साइकिल से जारी रहने देने की कोई छूट या निर्देश न मिलने के कारण विक्टर को साइकिल से आगे यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

स्थानीय प्रशासन की तरफ से विक्टर को वापस उसके देश यानी हंगरी भेजने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन विक्टर ने वापस जाने से साफ इंकार कर दिया। विक्टर का कहना है कि उसकी यह यात्रा एक तरीके से तीर्थयात्रा है और अब अपनी मंज़िल के इतने पास आकर वह वापस अपने देश नहीं जा सकता। अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करने के किये विक्टर अपने सीने के सामने एलेक्जेंडर सीसोम डी से जुड़ी एक किताब रख देता है।

हालांकि, इसी बीच यहां रहते हुए विक्टर ने कुछ दोस्त भी बना लिए हैं, जिनके साथ वह कभी फोन पर या मुलाकात के दौरान बातचीत भी करता है। यात्रा की अनुमति न मिलने से नाराज़ होकर विक्टर 3-4 दिन पहले अचानक अपनी साइकिल लेकर अस्पताल से भाग निकलता है। निकलने के दौरान गार्ड ने पूछा तो विक्टर ने बोल दिया कि उसे जाने की अनुमति मिल गयी है।

अस्पताल के पदाधिकारी कोरोना की वजह से तमाम कामों में व्यस्त भी हैं लेकिन जैसे ही उनके साथ-साथ प्रशासन को अस्पताल से विदेशी नागरिक विक्टर के भागने की खबर मिलती है, सबके हाथ-पांव फूल जाते हैं क्योंकि विक्टर एक सरकारी अस्पताल में भर्ती था और उसकी सुरक्षा और देख-भाल की जिम्मेदारी भी अस्पताल और प्रशासन की है।

किसी तरह विक्टर को स्थानीय पुलिस से मिली सूचना के आधार पर आगे की पुलिस रोकती है और उसे वापस छपरा के सदर अस्पताल में लाकर उसी वार्ड में रखा जाता है।

करीब 6 लोगों के लिए बने इस आइसोलेशन वार्ड में शुरुआत से ही विक्टर ज़िको अकेला ही रह रहा है। अब उसकी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस के जवान वार्ड के बाहर तैनात कर दिए जाते हैं। विक्टर का कमरा किसी हॉल के आकार जितना है और उसमें केबल, एलईडी टीवी, पंखे, एयर कंडीशन जैसी सुविधाएं भी मौजूद हैं। चंद रोज पहले किसी गड़बड़ी से उसके कमरे की बिजली और एसी के स्विच में खराबी आ गयी थी, उसे भी तुरंत ठीक करवाया गया।

विक्टर बार-बार दार्जिलिंग जाने की बात करता है और लोगों को परेशान करने के लिए तमाम तरह के खाने की चीजों की मांग करता रहता है। वैसे खाद्य पदार्थ और वस्तुएं जो उसके देश की हैं और यहां मिलना मुमकिन नहीं। फिर भी अस्पताल के कई डॉक्टरों, यहां के स्थानीय मित्रों, अस्पताल के कर्मचारियों आदि के घर से उसके लिए पनीर चिली, चिकेन, समेत खाने की अन्य चीजें लेकर लोग उस तक प्यार से पहुंचाते रहते हैं ताकि अपने घर से इतनी दूर ऐसी स्थिति में एक अस्पताल में यूं रखे गए विदेशी यात्री को बेहतर अनुभव मिल सके।

अस्पताल में चूहों के डर से विक्टर अपने लिए दिए गए फलों को पंखे के डैनों में लटका कर रखता है। एक तरफ टेबल पर उसके लिए स्थानीय लोगों के घर से बनाकर दी गयी खाने की तमाम चीजें भी रखी हुई दिखाई देती हैं। किसी बेड पर उसने अपना लैपटॉप तो किसी पर अपना कैमरा, बैग, कपड़े और दूसरी चीजें रखी हुई हैं। अपनी एक मच्छरदानी भी विक्टर साथ रखता है।

बीतें दो-तीन दिनों से विक्टर को लेकर तमाम तरह की खबरें देखने-पढ़ने को मिल रही थीं। कल ही बिहार विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने विक्टर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बात की थी और विक्टर को यथासंभव मदद करने का आश्वासन भी दिया था।

आज दोपहर छपरा के वर्तमान भाजपा विधायक डॉ. सी. एन. गुप्ता और जदयू के विधान परिषद के सदस्य डॉ. वीरेन्द्र नारायण यादव भी विक्टर से मिलने सदर अस्पताल गए थे और वहां की वस्तुस्थिति खुद देखी। हालांकि, ये दोनों लोग इसके पहले भी एक बार अस्पताल जाकर विक्टर के विषय में जानकारी ले चुके हैं।

विक्टर ने सबके सामने खुलकर बातें कीं और कहा कि उसे सुविधा के लिहाज से कोई परेशानी नहीं है, सब लोग उसका काफी ध्यान भी रख रहे हैं लेकिन वो किसी भी हालत में अब यहां से निकलकर दार्जिलिंग जाना चाहता है। विक्टर को बताया गया कि जिस राज्य में वो जाना चाहता है, वहां भी कोरोना के कारण स्थिति ठीक नहीं है और ऐसी हालत और लॉकडाउन के कारण भी उसका वहां जाना अभी संभव नहीं। फिर भी विक्टर अपनी जिद पर कायम है। उसको आश्वस्त किया गया कि जैसे ही लॉकडाउन में छूट मिलेगी और उसकी यात्रा के प्रकार को लेकर कोई जानकारी या स्पष्ट निर्देश सामने आएगा, उसको तत्काल बताया जाएगा। साथ ही उसकी परेशानी की बात आगे तक पहुंचाई जाएगी।

ये सब पढ़कर आपको विक्टर ज़िको की अब तक की दास्तान और उसकी मनोदशा और इससे जुड़े संघर्षों का अंदाज़ा लग गया होगा। ऐसे में, अब सवाल यही है कि क्या इस आकस्मिक व वैश्विक महामारी के अप्रत्याशित समय में व्यवस्था और नियमों के घेरे में घिरा हुआ विक्टर ज़िको दार्जिलिंग पहुंच पायेगा या उसे वापस अपने देश हंगरी जाना पड़ेगा? क्या विक्टर ज़िको के मामले पर भारत सरकार कोई निर्देश देगी क्योंकि राज्य सरकार इस मामले में स्वयं को केन्द्र सरकार के नियमों के अधीन मानती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *