: छात्रों की पीठ ठोंकने के बजाय, अपनी ही पीठ थपथपाने में जुट गये जौनपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति : जागरण ने आयोजित की थी स्कूल-कॉलेजों में जीनियस प्रतियोगिता : समारोह का स्मृति चिन्ह को अपनी उपलब्धि मान कर प्रचारित कर बैठे हैं कुलपति :
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जौनपुर : शिक्षक-शिष्य सम्बन्ध प्रचीन काल से ही बेहद त्याग पर आधारित हुआ है। इस सम्बन्ध में गुरू अपना ज्ञान अपने शिष्यों तक परोसता है, जबकि शिष्य उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है। आदान-प्रदान की इन दोनों ही प्रक्रियाओं में दोनों ही लोग अपना जीवन धन्य समझते हैं। लेकिन यह त्यागमयी परम्परा पर जौनपुर के वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति ने समाप्त कर दिया। उन्होंने छात्रों की प्रतियोगिता वाले एक समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दिये गये स्मृति चिन्ह को उस प्रतियोगिता की विजय चिन्ह के तौर पर स्वयं को विजयी घोषित करा दिया। इतना ही नहीं, कुलपति ने इस चिन्ह को अपने फेसबुक आदि सोशल साइट्स पर अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत किया। जाहिर है कि कुलपति के खाते में वाहवाही बरस रही है, जबकि जानने वाले इस पर लानत भेजने में जुटे हैं। पूरा शिक्षा बाजार थूथू कर रहा है।
सामान्य परम्परा है कि वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्व विद्यालय के कुलपति राजाराम यादव की काबिलियत देखनी हो तो उनका फेसबुक एकाउण्ट देख कर आपको अंदाजा हो जायेगा। वे अपने फेसबुक पर कई ऐसे फोटो और वीडियो पोस्ट किया है जिसे देखकर आप उनकी प्रतिभा का अंदाजा लगा सकते है। इस पोस्ट में सबसे हास्यास्पद पोस्ट किया है बीते 30 जुलाई की शाम 7 बजकर छः मिनट पर। इस पोस्ट में उन्होने एक अखबार द्वारा अपने आप को जीनियस एवार्ड देने वाली पोस्ट किया है।
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मालूम हो कि बीते रविवार को दैनिक जागरण अखबार ने जिले भर के सभी स्कूलो के हाई स्कूल और इण्टर के छात्रो का एक प्रतियोगिता कराया था। इस कार्यक्रम का नाम रखा गया था जागरण जीनियस एवार्ड 2017 । इस कार्यक्रम में अव्वल स्थान पाने वाले छात्र-छात्राओ को एवार्ड देने के लिए वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्वविद्यालय के कुलपति को मुख्य अतिथि बनाया गया था। कार्यक्रम में इस मीडिया ग्रुप द्वारा मुख्य अतिथि को सम्मानित करने के लिए स्मृति चिन्ह दिया गया था। वीसी साहब उस स्मृति चिन्ह को मीडिया ग्रुप द्वारा अपने फेसबुक पर खुद को जीनियस एवार्ड मिलने की पोस्ट किया है। इस पोस्ट पर उन्हे खुब लाईक और कमेंट बाक्स में बधाईयां मिल रही है।
इस बारे में कुलपति डॉ राजाराम यादव से सम्पर्क करने के लिए कई बार कोशिश की गयी, लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया।