: सर्जिकल स्ट्राइक से छिन्न-बिन्न है यूपी चुनाव के सारे पॉलिटिकल बंकर : पीओके के आतंकवादी क्षेत्रों पर हमला किया सेना ने, दहल गये हैं यूपी के सारे चुनावी समीकरण : वैसे भी पक्का यह है कि यह केवल शिगूफा भर ही है प्रियंका का चुनाव लड़ना :
कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी भी सवाल का समाधान खोजने के लिए कम से कम तीन बेहद जरूरी तथ्यों पर गौर करना महत्वपूर्ण होता है। यह तीनों ही अलग-अलग धरातल से उपजे तथ्य होते हैं। तो बेहतर होता यह है कि पहले इन तीनों धरातलों पर ऐसे सवाल को परख लिया जाए, उसके बाद ही मन-वांछित कदम उठा लिया जाए। यह इसलिए जरूरी होता है, ताकि किसी को चूक की गुंजाइश न हो सके।
इन तीन धरातल होते हैं:- भावनात्मक, जन-चर्चा और यथार्थपरक। अब अगर हम कांग्रेस में प्रियंका गांधी के प्रवेश की गुंजाइश खोजने लगेंगे तो हमें सबसे पहले उसका भावनात्मक आधार टटोलना होगा। प्रियंका के चुनाव में खुल कर आने के सवाल पर भावनात्मक पक्ष तो यह है कि चूंकि प्रियंका के परिवार देश की आजादी और उसके बाद तक से इतिहास समेटे हैं, प्रियंका एक सुदर्शनी, मितभाषी, सुशील, चुम्बकीय आकर्षण वाले व्यक्तित्व की स्वामी हैं, ऐसे में कांग्रेस को उनके चेहरे का लाभ मिल सकता है।
जन-चर्चा के धरातल पर बातचीत शुरू होगी तो प्रियंका का चेहरा इंदिरा गांधी से मिलता-जुलता दिखेगा, जो दुर्गा की छवि जैसी है। एक जुझारू, बार बार हार कर भी जीतने वाले उद्दाम शख्सियत है। लेकिन बदले हालातों में राबर्ट वाड्रा के चेहरे पर बुरी तरह सनी-लिथड़ी कालिख से सटा हुआ नाम है प्रियंका का। राजनीति करने वाली नहीं, बल्कि सत्ता को कब्जाने के लिए सूखे कांग्रेसियों की मृग-तृष्णा की तरह है जिसका कोई भी लाभ कांग्रेस को नहीं मिल सकता है।
और अब यथार्थपरक धरातल पर इसी सवाल पर खोजने की कोशिश करेंगे आप, तो आपको साफ लगेगा कि उरी हादसे का जवाब देने के लिए सेना ने जिस तरह पाकिस्तान द्वारा कब्जाये कश्मीर में घुस कर आतंकवादियों को चुन-चु न कर मारा है, उसके बाद केवल यूपी ही नहीं, पूरे देश की राजनीति की बिसात भी पूरी तरह एकतरफा बन चुकी है। अब तो युद्ध की काली छाया लगातार घनेरी होती जा रही है, और इस हादसे के बाद पाकिस्तान इसका एक जबर्दस्त जवाब देने की तैयारी में जुटी है। ऐसे में भारतीय सेना पर यह दबाव लगातार बनता जा रहा है कि वह खुद को हमलावर साबित करे। ऐसी हालत में हमला यह भारत की ओर से हो या फिर पाकिस्तान की तरफ, इसका लाभ केंद्र पर काबिज भाजपा के खाते में जाएगा। और फिर यह सवाल ही बेमानी होता जा रहा है कि यूपी के अगले चुनाव में प्रियंका गांधी का कोई लाभ होगा भी या नहीं।
मेरा तो मानना है कि अगर प्रियंका अब तक सक्रिय राजनीति के बारे में कोई फैसला कर भी चुकी होंगी, तो वे अपना फैसला अब मुल्तवी कर देंगी। कहने की जरूरत नहीं कि सर्जिकल स्ट्राइक के माहौल में अपनी छीछालेदर करवाने से बेहतर यह फैसला करेंगी कि अगले चुनाव के लिए कमर कस लें। किसी को अगर इसमें कोई शक हो कि अगला चुनाव भाजपा के अलावा कोई और जीतेगा, तो उसे अपना यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए।
आज इसी पर न्यूज चैनल इण्डिया न्यूज पर मैंने यह बात रखी। प्राइम टाइम कार्यक्रम में लाइव शो के दौरान बातचीत में सपा के नवेद सिद्दीकी, भाजपा के राकेश त्रिपाठी और कांग्रेस के बालमुकुन्द पांडेय साथ थे। लेकिन एक जीतती पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने इस बहस को निहायत छिछोरे मोड़ पर रखने की कुत्सित कोशिश की, इसका मैंने तत्काल विरोध और भर्त्सना कर दी।