“चापलूसी कर चमक चमचे गये, मैं जमूरा हो गया”

मेरा कोना

: दैनिक जागरण के नरेंद्र गुप्‍ता को भरे दफ्तर में विष्‍णु त्रिपाठी ने असलियत दिखा डाली : दास को एक दशक हो गया, आदमी था, घास-कूड़ा हो गया : जैसे पुरानी बजाज स्‍कूटर किक मारने के पहले 90 डिग्री की झुकाव मांगती है, ऐसे खांस-खंखार कर विष्‍णु त्रिपाठी ने तुक्‍तक पाठ शुरू किया : विष्‍णु त्रिपाठी- दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ( गतांक से आगे ) लेकिन असल खबर अब सुनिये। नौकरी के ठीक दसवें साल की बरसी के दिन विष्‍णु त्रिपाठी ने एक अठन्‍नी में एक सूखी-झुरान माला खरीदी। पहले ही ताड़ लिया था कि कमरे में कौन-कौन मौजूद है। फिर सीधे सम्‍पादक-मालिक नरेंद्र गुप्‍ता के कमरे में घुस गये। मालिक ने अपनी गंजी चांद पर हाथ फेरा और प्रश्‍नवाचक दृष्टिपात विष्‍णु त्रिपाठी पर किया। लपक कर मालिक की कुर्सी के पास पहुंचे विष्‍णु जी, जेब से वही तुड़ी-मुड़ी माला निकाली। उसे सुलझाया, और नरेंद्र गुप्‍ता के गले में डाल कर दोनों हाथ जोड़ कर उनकी ओर हल्‍का झुक कर प्रणाम कर लिया।

नरेंद्र जी की समझ में ही नहीं आया कि यह माजरा क्‍या है। सवाल उठाया, तो विष्‍णु जी ने जवाब दिया:- आज पूरा दस साल हो चुका है आपके अखबार में काम करते हुए मुझे। आपने अब तक मुझे नौकरी से नहीं निकाला, यही बहुत है मेरे लिए। बस इसीलिए से आपकी शरण में प्रणाम करने आया हूं, और धन्‍यवाद के तौर पर यह माला भी आपके गले में डाली है।

कानपुर से जुड़ी खबरों को पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

कानपुर

नरेंद्र गुप्‍ता गदगद। मुस्‍कुराहट का असफल प्रयास करते हुए उन्‍हें दाहिने हाथ से उन्‍हें कुर्सी पर बैठने का इशारा किया, और फिर उन्‍हें चाय पिलाने के लिए घंटी बजा दी चपरासी के लिए। फिर पूरे कार्यालय में बैठे बाकी लोगों की ओर एक गहरी सांस लेते हुए उनकी ओर देखा, कुछ इस तर्ज पर:- देख लो कि हमारे कर्मचारी मुझे कितना प्‍यार, सम्‍मान और दुलार करते हैं। प्राण देने तक के स्‍तर पर। लेकिन विष्‍णु जी ने कुर्सी पर बैठने के बजाय एक निवेदन कर लिया। बोले: यह मेरे लिए हर्ष का विषय है कि मैंने पिछले दस बरसों तक इस अखबार की मुसलसल सेवा की। यह माला उसकी एवज में है। लेकिन यह फिफ्टी परसेंट ही है। बाकी फिफ्टी परसेंट का मामला मैं आपकी सेवा में एक कविता के तौर पर पेश करना चाहता हूं, और इस तरह आज दस-वर्षीय हवन-कुण्‍ड पर अपनी सम्‍पूर्ण हवि स्‍वाहा कर देना चाहता हूं।

पत्रकारिता से जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

पत्रकार पत्रकारिता

मालिक ने सहमति का इशारा किया, तो विष्‍णु त्रिपाठी जी अपनी गर्दन दायें-बायें ओर मोड़ कर कविता कुछ इस स्‍टाइल में स्‍टार्ट किया, जैसे पुरानी बजाज स्‍कूटर किक मारने के पहले 90 डिग्री की झुकाव मांगती है। उसके बाद दो-एक बार खांस-खंखार कर विष्‍णु जी ने कविता पाठ शुरू कर दिया। बोले:- यह कविता नहीं तुक्‍तक है। मुक्‍तक का सगोत्रीय। नया-नया जन्‍मा है यह तुक्‍तक, केवल आपके सम्‍मान में। अब मुलाहिजा फरमाइये

“दास को एक दशक हो गया, आदमी था, घास-कूड़ा हो गया,

चापलूसी कर चमक चमचे गये, वे मदारी हो गये, मैं जमूरा हो गया।

माफ जो करते रहे हैं आप मेरी धृष्‍टताएं , आभार की अभिव्‍यक्ति को शब्‍द हम कैसे जुटायें,

बदहाल हैं, खुशहाल हैं, हर हाल में हम, तरक्‍की हम कभी तनख्‍वाह में पायें, न पायें।।”

दुनिया के महान महानगरी की सूची में दर्ज है कानपुर का नाम। आजकल इसी महानगरी के विभिन्‍न लोगों पर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरीबिटियाडॉटकॉम लम्‍बी बातचीत में जुटा है। उस वार्तालाप की विभिन्‍न कडि़यों के तौर पर हम विषयवार प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसी बाकी कडि़यों को पढ़ने के लिए आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कीजिए:-

कानपुर-कनपुरिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *