चंचल-भू: कांग्रेस की सूनी पगडंडी में मजबूरी और शिगूफा ही था जेल जाना

मेरा कोना

: अराजकता चंचल की, सुस्‍ती पुलिस की, मगर समर्थकों ने उचक कर गालियां दीं अदालत और सरकार पर : मौका पड़े तो पत्रकारिता के मंडवालियों के कूकुर तक को पुचकार सकते हैं भूजी जी : समर्थक तो 56 इंची सीना तान कर भूजी के समर्थन में एफबी-वार में तलवारें भांजने निकल पड़े :

कुमार सौवीर

लखनऊ : चंचल-भूजी जी जेल क्‍या गये, उनके समर्थन में श्रंगाली चिल्‍ल-पों सप्‍तम-सुर के आठवें तल्‍ले तक पहुंच गया। कोई अदालत को कोस रहा था, तो कोई जज को। पुलिस को भी गालियां दी गयीं। लेकिन कुल मिला कर मोदी और योगी सरकार की तो पैंट ही उतार ली गयी। पानी पी-पी कर गालियां दी गयीं चंचल-भूजी जी के समर्थन में। यहां तक कि उनका जेल जाना भी अधिकांश लोगों ने आपातकाल के आने के तौर पर देखना-सुनना शुरू कर दिया। जहां अभिव्‍यक्ति का गला दबोच लिया जाता है, और पूरा का पूरा समाज तानाशाही से आक्रांत हो जाता है। पूरा देश गैस-चैम्‍बर बन जाता है, जहां कानून-व्‍यवस्‍था और मानवाधिकार का कोई नामलेवा तक नहीं होता।

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सच कहूं तो मैं भी यह मानता हूं कि भाजपा सरकार का सूरज जिस-जिस तीव्रता से देश पर आग बरसने की तैयारी कर रहा है, वह आपातकाल की आशंकाओं को ही बलवती कर रहा है। यह हालत मानवाधिकारों पर तो हमला होगा ही, साथ ही संघीय ढांचे पर भी अपूरणीय क्षति पहुंचायेगा। लेकिन मैं भी यह मानता हूं कि इसके लिए केवल भाजपा ही जिम्‍मेदार नहीं है। खैर,

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लर्नेड वकील साहब

लेकिन चंचल-भूजी जी की जेल-यात्रा आपातकाल के पुनरागमन के तौर पर सूंघा जा रहा हो, ऐसा हर्गिज नहीं है। कारण कि चंचल जी का जेल जाना उनकी अराजकता और हमारी पुलिस के ढांचे में लग चुके घुन ही है, जिसके चलते चंचल जी को जेल जाना पड़ा। पुलिस की काहिली, और चंचल-भूजी जी की लापरवाहियों ने ही यह हालत ऐसी पेश की है, जिसके चलते यह हादसा आन पड़ा।

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हर सू जौनपुर

लेकिन इसके पहले यह सुन लीजिए कि चंचल की जेल यात्रा को लेकर देश के बड़े पत्रकार किस तरह अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। दिल्‍ली में बसे और मूलत: सुल्‍तानपुर के रहने वाले पत्रकार शेषनारायण सिंह ने किसी चमत्‍कार की तरह लिखा है कि चंचल जी अब तक सैकड़ों बार जेल जा चुके हैं। हैरत की बात है। मैं शेष नारायण जी को अपने आदर्श-पत्रकार के तौर पर देखता रहा हूं, लेकिन उन्‍होंने तो झूठ की पूरी लड़ी ही बिखेर दी। ऐसा लग रहा है कि हर बार की जेल यात्रा में वे चंचल जी के लिए जेल जाते वक्‍त वे खुद ही संजय की तरह जेल का दरवज्‍जा गिन रहे थे। हैरत तब और भी हुई, जब उर्मिलेश जैसे शख्‍स ने चंचल-भूजी जी के जेल जाने पर गलतबयानी कर दिया। वे सच का गला ही दबोचे बैठे हैं अब तक। उधर एक ने नारा लगाया कि जब तक जेल में चना रहेगा, आना-जाना रहेगा। मतलब यह कि चंचल जी इंसान नहीं घोड़ा हो गये, और आइंदा वे चना जाने के लिए जेल जाया करेंगे। आदि-इत्‍यादि।

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जुल्‍फी प्रशासन

लेकिन किसी ने भी इस मामले में गहरी नजर डालने की कोशिश नहीं की। मसलन, जेल क्‍यों जाना पड़ा चंचल जी को। जवाब यह है कि चंचल जी खुद ही चाहते थे कि वे जेल चले जाएं। कारण यह कि कांग्रेस में मजबूत खम्‍भा बनने का कोई और भी रास्‍ता न कांग्रेस के पास था, और न कांग्रेसियों में है। चंचल जी के पास तो हर्गिज भी नहीं था कोई चारा। लेकिन इतना जरूर था कि कांग्रेस और चंचल जी चाहते थे कि वे अगले लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस को चर्चा का विषय बना सकें। इसके अलावा न उनके पास कोई तरीका था, और न ही किसी और कोई क्षमता, दमखम, या जोश। प्रचार को इकलौता रास्ता था कांग्रेस या उनके समर्थकों के पास, कि चर्चा शुरू हो जाए। उनके पास कोई रास्‍ता ही नहीं था कि कोई जमीनी आंदोलन खड़ा किया जाए, जहां जेल-भरो आंदोलन छेड़ने की सम्‍भावनाएं जागृत हो सकें।

और चंचल-भूजी जी ने इस चर्चा को अपनी जेल-यात्रा से सम्‍भव कर दिया।

चंचल-भूजी जी एक, लेकिन उनकी कथा अनन्‍ता। अगली कड़ी में उनकी जेल-भित्‍तरगिरी का खुलासा होगा। अगली कडियों को बांचने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

चंचल भूजी जी

बहुत सहज जिला है जौनपुर, और वहां के लोग भी। जो कुछ भी है, सामने है। बिलकुल स्‍पष्‍ट, साफ-साफ। कुछ भी पोशीदा या छिपा नहीं है। आप चुटकियों में उसे आंक सकते हैं, मसलन बटलोई पर पकते भात का एक चावल मात्र से आप उसके चुरने का अंदाजा लगा लेते हैं। सरल शख्‍स और कमीनों के बीच अनुपात खासा गहरा है। एक लाख पर बस दस-बारह लोग। जो खिलाड़ी प्रवृत्ति के लोग हैं, उन्‍हें दो-एक मुलाकात में ही पहचान सकते हैं। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। जो ज्‍यादा बोल रहा है, समझ लीजिए कि आपको उससे दूरी बना लेनी चाहिए। रसीले होंठ वाले लोग बहुत ऊंचे दर्जे के होते हैं यहां। बस सतर्क रहिये, और उन्‍हें गाहे-ब-गाहे उंगरियाते रहिये, बस।

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राग-जौनपुरी

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