सुब्रत राय: हमने सहारा प्रेस घेर लिया, बिजली-पानी काट दिया

मेरा कोना

: सौ जूतों से रूतबा गालिब नहीं होता, यह वो खजाना है जो कभी खत्म नहीं होता : तय हुआ कि अब बातचीत नहीं, हम केवल हां ही सुनेंगे : सुबोध नाथ गिड़गिड़ाये कि हमारे लोगों को रिहा कर दीजिए :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सिर्फ इतना ही याद है कि मजदूरों और पीएसी वालों ने मुझे रोका, और फिर बड़े सम्मकन के साथ अनशन-स्थाल तक पहुंचाया, जहां श्याम अंकुरम वहां लेटा था। पाया कि श्याम शांत है। मैं भी शांत हुआ। मैंने कोई बातचीत नहीं की श्याम से। बाकी लोगों से भी ऐलानिया कह दिया कि अब कोई बातचीत नहीं होगी, जब तक सुब्रत राय हम मजदूरों की बात नहीं मान लेते। वहां मौजूद मजदूरों से इसी बीच कह दिया कि अब आर-पार ही होगा। पूरा का पूरा प्रेस परिसर की घेराबंदी कर ली जाए। न कोई भीतर जाएगा, और न कोई बाहर निकलेगा। यह नया नियम वहां मौजूद पीएसी के जवानों पर लागू नहीं होगी, जिनका टेंट प्रेस परिसर के भीतर है। सुब्रत राय: हमने सहारा प्रेस घेर लिया, बिजली-पानी काट दिया sahara-india-subrat-rai-hadatal-nukkad-natak-press-jaibrat-rai-subodh-nath

यह भी तय कर लिया गया कि चाहे कुछ भी हो, यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सुब्रत राय हमारी मांग नहीं मान लेते। हम लोगों ने तय कर लिया कि प्रेस के भीतर जो भी अधिकारी मौजूद हैं, उनका प्रतिनिधि ही हम लोगों से मेन गेट पास खड़ा होकर ही बातचीत करेगा। उसे भी बाहर निकलने का कोई शर्त नहीं मानी जाएगी। सहारा इंडिया और सुब्रत राय समेत पूरे सहारा प्रबंधन पर दबाव बनाने के लिए हम सब लोगों ने प्रेस परिसर में पानी और बिजली का कनेक्शन ही काट लिया। हां, पानी की व्येवस्थाल के लिए प्रेस के भीतर मौजूद एक चौकीदार को दे दी गयी कि वह जब चाहे, अपनी बाल्टी। लेकर गेट तक आये, हम लोग उसकी बाल्टील भर देंगे। न न न, मेन गेट के भीतर-बाहर आने जाने की कोई भी गुंजाइश नहीं छोडी़ जाएगी।

सहारा इंडिया में हाहाकार मच गया। लालबाग में सहारा का कमांड आफिस था, वहां श्मशानी सन्नाटे की खबर हम तक पहुंच चुकी थी। काफी कर्मचारी-अधिकारी अपना आफिस छोड़ कर भाग चुके थे, कि कहीं आंदोलनकारियों की टोली उनके आफिस पर न धावा बोल दे। अलग-अलग चर्चाएं, खबरें और अफवाहें फैल रही थीं। कमांड आफिस में सुब्रत राय के दूसरे दर्जे के अधिकारी सुबोध नाथ मामला सुलटाने की कवायदों में थे। कई लोग ऐसे भी थे हमारे बीच के जो सहारा और सुब्रत राय के खेमे में भी अपनी जड़ें जमाये रखने की कोशिश कर रहे थे कि बाद में सुब्रत राय उन्हें  कृपा-पूर्वक नौकरी दे देगे। सुबोध नाथ ने आंदोलनकारियों को तोड़ने के लिए हर चंद कोशिशें कीं, लेकिन सब मुंह के बल धड़ाम हुईं।

कुछ ही देर में हमारे पास सुबोध नाथ और उनके कारिंदे आये और बोले कि सुब्रत राय इस वक्त मुम्बई में हैं, और एक बड़ी व्यावसायिक रणनीति के लिए बैठकों में व्यस्त हैं। इसलिए आंदोलनकारियों की मांगों पर कोई फैसला नहीं किया जा सकता है। वे एक हफ्ते का वक्त चाहते थे, कि सुब्रत राय के वापस  लौटने तक वे अपना आंदोलन मुल्तवी कर दें, प्रेस में मौजूद अधिकारियों-कर्मचारियों को बाहर निकलने का अवसर दें। सुब्रत राय के लौटने के बाद सारी मांगों पर गम्भीरता से विचार कर किया जाएगा।

हम खूब जानते थे कि सुब्रत राय लखनऊ में ही हैं, और अलीगंज के अपने मकान में मौजूद हैं। यह भी जानते थे कि सुबोध नाथ का यह जवाब हम लोगों को केवल मूर्ख बनाने के लिए ही है। शायद सुब्रत राय नहीं जानते थे कि हम उनकी हर हरकत पर खूब नजर रखे हैं। लेकिन सुब्रत राय भी आखिरकार करते थे तो क्‍या। अपनी पूरी तरह हार चुकी बाजी को बचाने के लिए आखिरी दम लगाने की बुरी आदत हमेशा से ही सुब्रत की आदत रही है। भले ही उसकी कोई भी कीमत उस आदमी को चुकानी पड़े। लोगों को मूर्ख बनाने की सुब्रत राय की यह आदत बेशर्मी की हद तक है।

हम मान चुके थे कि यह शेर भले ही गालिब ने न लिखा हो, लेकिन उसका असर गालिब के शेर से कम नहीं नहीं है। आज भी जीवंत और असरकारी:-

सौ जूतों से रूतबा गालिब नहीं होता,

यह वो खजाना है जो कभी खत्म नहीं होता। ( क्रमश:)

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