चंद्रकांता संतति: हाईकमान को मेरी खबर देने लगे ऐयार

दोलत्ती

: देवकीनंदन खत्री का किस्‍सा मुझ पर ही नमूदार : जीआरपी के लोग कराते थे बिना टिकट यात्रा : एक जज की आत्‍मकथा-पांच
राजेंद्र सिंह
बांदा: (गतांक से आगे) बॉम्बे से आर0पी0एफ0 की स्पेशल फ़ोर्स दी गई । बाँदा में एस0पी0 अशोक धर द्विवेदी आये । उन्होंने मुझे चेकिंग के लिए 4 से 6 सशस्त्र सिपाही दिए । द्विवेदी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी । अब ए0डी0जी होकर रिटायर हो चुके हैं और मीडिया के ख़िलाफ़ मेरे केसेस में 202 में गवाही भी दी। कई ट्रैन चेकिंग स्टेशन के 1 किलोमीटर आगे पटाखे लगाकर, ट्रेन रूकवाकर की ।अपने 2 साल के कार्यकाल में 6 लाख रुपया हर्जाने के रूप में जमा कराया ।
एक बार झांसी साइड जा रहा था ।एक टी0टी0 दीक्षित जी थे । बुजुर्ग थे ।मैं सेकंड क्लास में था ।सामने एक पुलिस इंस्पेक्टर बैठे थे ।दीक्षित जी ने उनसे टिकट मंगा ।उन्होंने हिकारत भरी नजरों से उन्हें देखा जैसे कह रहे हों कि तुम्हारी औकात क्या है ।दीक्षित जी फिर टिकट मांगा तो उन्होंने अपनी वर्दी में लगे स्टार की ओर इशारा किया कि इसे देख लो ।दीक्षित जी बोले सर आज कुछ अलग बात है ,आप टिकट बनवा लो जुर्माने सहित ।पुलिस इंस्पेक्टर और सामने अदना सा टीटी ।वह खड़ा हो गया और लगा पुलिसिया रोब दिखाने ।तब मैं बोला , ले लो इसे कस्टडी में । आरपीएफ के मुद्राराक्षस 6 फिटे कांस्टेबल ने पीछे से उनके गिरेबाँ में हाथ डालकर दबोचा। अब उनकी बारी माफ़ी मांगने की थी जब मालूम हुआ कि ये मजिस्ट्रेट चेकिंग है और मजिस्ट्रेट साहेब आपके सामने हैं । उन्हें अंततः जुर्माना देकर टिकट बनवाना पड़ा।
बाँदा, कानपुर और झांसी के समाचार पत्रों में मेरी कारगुजारी लगभग रोज प्रमुखता से छप रही थी और मै अमावस की रात की ओर बढ़ रहा था क्योंकि मुझे नहीं मालूम था कि जज साहब को ये नागवार लग रहा था ।बातों में उन्होंने इसका जिक्र भी कर दिया कि पेपर वाले तुम्हें बहुत तवज्जो दे रहे हैं।
देवकीनंदन खत्री के चंद्रकांता संतति के विजयगढ़ के महल में ऐय्यार मेरे घर की सारी खबरें हाई कमान को पहुंचा रहे थे कि कब ये अपनी ससुराल गए, कब विवेक ( बाद कमें कांग्रेस के एम0एल0ए और उत्तर प्रदेश के बिजली के राजमंत्री ) के घर जाते हैं, कौन कौन इनके घर आता है ।हद हो गई थी । मेरा ध्यान अपने काम पर था और कोटा 200 प्रतिशत देने का निर्णय मैंने लिया हुआ था । (क्रमश:)

राजेंद्र सिंह यूपी के उच्‍च न्‍यायिक सेवा के वरिष्‍ठ न्‍यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्‍वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्‍हें कई बार वरिष्‍ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्‍नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्‍यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्‍सा अब आत्‍मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्‍मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्‍मकथा

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