मैजिस्‍ट्रेट को मिली बच्‍चों के अपहरण की धमकी

दोलत्ती

: आधी रात को जंगल में ट्रेन रूकवा कर बिना टिकट यात्रियों को पकड़ा : उन्‍हें वेटिंग रूम में बंद कराया : एक जज की आत्‍मकथा- छह :
राजेंद्र सिंह
बांदा : (गतांक से आगे)और एक दिन ऐसा ही चालान जारी करने का खामियाजा मुझ पर भारी पड़ने लगा। वजह थी मेरी कार्यकुशलता और बेईमान सरकारी कर्मचारियों की करतूतें। जिन सिपाहियों को मैंने भारी उगाही करकी एवज में आम यात्रियों को बिना टिकट यात्रा कराते हुए दबोचा था, एक दिन उन्‍हीं जीआरपी के सिपाहियों की ओर से मुझे मिली मेरे बच्चों के अपहरण की धमकी।
बाँदा की सीमाएं हमीरपुर, महोबा ,से मिली हुई है और हमीरपुर मेरा जन्मस्थान है । एक बार मानिकपुर कैम्प कोर्ट कर बुंदेलखंड एक्सप्रेस 11108 से रात को बाँदा लौट रहा था ।मानिकपुर से आगे रेलवे लाइन के दोनों ओर जंगल का क्षेत्र पड़ता है ।बदौसा या भरतकूप के आस पास क्रासिंग हुआ करती थी। मुझे खबर दी गई कि सेकंड जनरल क्लास के 2 डब्बों में जी0आर0पी0 ट्रेन ड्यूटी के सिपाही थोक में बिना टिकट यात्रियों को उनसे पैसे वसूल कर यात्रा करा रहे हैं। मुझे चुनौतियां हमेशा से अच्छी लगती थी। मानिकपुर से बाँदा जाने पर भिलपुरवाह, खोह, चित्रकूट, शिवरामपुर, भरतकूप, बदौसा , अतर्रा , खुरहण्ड, डिंगवाहि और बाँदा स्टेशन पड़ते थे। अतर्रा में स्टेशन के पास डिग्री कॉलेज था और बिना टिकट विद्यार्थियों और चेकिंग स्टाफ के बीच अक्सर भिडन्त हुआ करती थी । एक बार तो एक टी0टी0 को ट्रेन से नीचे फेंक दिया था। एक बार पत्थरबाजी की गई ।ऐसी छोटी मोटी घटनाएं आम थी।
मैंने अपने स्टाफ को रेल ड्राइवर के पास भेजकर दो स्टेशन्स के बीच जंगल एरिया में ट्रेन रुकवाई और उन डिब्बों में पहुंच कर जब चेकिंग करवाई तो हाथों से तोते उड़ गए ।दोनों बोगियों में सारे यात्री बिना टिकट। चेकिंग स्टाफ ने पूरी बोगी चेक की । मैंने बाँदा पहुंचने पर इन सारे बिना टिकट यात्रियों को वेटिंग रूम में बंद कराया और स्पॉट ट्रायल के लिए कोर्ट खुलवाकर ट्रायल शुरू किया ।चेकिंग स्टाफ ने चालान काटा अहलमद ने पंजीकृत किया । कॉन्फेशनल अर्थात संस्वीकृति के बयान की कंप्यूटरीकृत प्रतियां थी उसीपर सबके बयान अंकित किये मैंने दंडादेश पारित किया । सारे मुल्जिमों के बयान में लगभग एक बात सामने आई । उन्होंने कहा ,
” मैं इलाहाबाद में ट्रेन का टिकट लेने लाइन में लगा था तभी जी0आर0पी0 के सिपाहियों ने आकर मुझे लाइन से बाहर निकाला और 20 रुपये लेकर डिब्बे के अंदर बैठा दिया । मुझे कोई टिकट नहीं दिया । ” उन्होंने सिपाहियों की ओर देखकर कहा कि यही सिपाही थे जिन्होंने पैसे लिए थे । सिपाहियों के नाम भी बताए थे ।
मैंने उन चारों सिपाहियों के विरुद्ध सभी बयान की फ़ोटो कॉपी लगाते हुए एक पत्र आई0जी0, डी0आई0जी0 से एस0एस0पी0 रेलवेज को लिखा । उन सिपाहियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा आई0पी0सी0 में मुकदमा पंजीकृत हुआ जो कालांतर में वाराणसी में फारूख उमर , विशेष न्यायाधीश , भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के यहां चला ।कुछ दिनों के बाद मेरे आवास मे चोरी हुई , जिसमें इन्हीं सिपाहियों के हाथ बताया गया । (क्रमश:)

राजेंद्र सिंह यूपी के उच्‍च न्‍यायिक सेवा के वरिष्‍ठ न्‍यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्‍वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्‍हें कई बार वरिष्‍ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्‍नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्‍यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्‍सा अब आत्‍मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्‍मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्‍मकथा

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