जस्टिस एनके मेहरोत्रा : उम्र चेहरे पर, दिल-दिमाग पर नहीं

बिटिया खबर

: मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी होने के बावजूद इस लोकायुक्‍त ने जो कर डाला, वो कोई दूसरा न कर पाया : अफसरी टपकी थी, पर हमेशा प्रसन्‍न-चित्‍त : करीने कढ़े बाल, शर्ट पर ढोंड़ी तक शानदार टाई, बैठने का रंगबाजों सा : अब क्‍या बतायें कि रिजार्ट में पुलिस ने इस जज को पकड़ा था :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इस सिफारिश ने प्रदेश की राजनीति में ऐसा तूफान मचाया कि सकते में आयी बसपा सरकार ने अपने दो मंत्रियों को सरकार में से एकसाथ निकाल बाहर कर दिया। इतना ही नहीं, अगली सिफारिश के साथ ही माया-सरकार के ही एक और मंत्री को बाहर धकेला गया। कहने की जरूरत नहीं कि इन सिफारिशों में इन मंत्रियों की करतूतों का खुलासा करते हुए उन्‍हें मंत्री जैसे पदों से हटाने की बात कही गयी थी। हौवा इस कदर हावी था कि हटाये गये एक कद्दावर मंत्री की करतूतों की जांच अभी लंबित ही थी। इन हादसों ने जल्‍दी ही तब एक सिलसिले की शक्‍ल अख्तियार कर ली, जब इसके चंद दिन बाद ही एक और मंत्री को भ्रष्‍टाचार के आरोप सही पाये जाने पर उसे मंत्री पद से हटाने की सिफारिश आ गयी। चंद दिनों बाद ही यह मंत्री भी बाहर हो गया। अब इसे हालात कहिये या फिर कमाल, मगर जोरदार राजनीतिक धमाका करने वाली वाली इन कार्रवाइयों के केंद्र में आ गये प्रदेश के लोकायुक्‍त नरेंद्र किशोर मेहरोत्रा। जस्टिस मेहरोत्रा के फैसलों ने मायावती सरकार के कई धाकड़ खिलाडियों को बाकायदा स्‍टम्‍प-आउट किया। प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी लोकायुक्‍त की सिफारिश के बाद सरकार में काबिज मंत्रियों पर एकसाथ इतनी कड़ी कार्रवाई की गयी।
यह दुख का विषय है कि हम कभी भी मेहरोत्रा जी से नहीं मिल सकेंगे। दो दिनों पहले ही एनके मेहरोत्रा का निधन हो गया है।
करीने से काढ़े गये बाल, शर्ट पर ढोंड़ी तक लटकती शानदार टाई, बैठने का अंदाज रंगबाज जैसा, कम बोलने का पेशागत लहजा, और पूरे दफ्तर में उनकी खासी धमक। वे लोकायुक्‍त थे, माल-एवेन्‍यू में उनका दफ्तर हुआ करता था। अगल में ही कांग्रेस का दफ्तर था, लेकिन उनकी जगजाहिर करीबी केवल मुलायम सिंह यादव के साथ ही मानी जाती थी। इंटरव्‍यू के लिए जब मैंने उनको फोन किया, तो उन्‍होंने लपक कर फोन पर सहमति और अगला दोपहर लंच के ठीक पहले का वक्‍त मुकर्रर कर दिया। मैं टाइम पर पहुंचा, लेकिन उन्‍होंने मुझे करीब दस मिनट प्रतीक्षा करा दिया। प्रतीक्षा करने पर मैं खीझा नहीं, बल्कि लगातार मुस्‍कुराता ही रहा। मैं साफ समझ रहा था कि यह शख्‍स अपनी अफसरी के नशे में सभी को प्रतीक्षा दिखा कर अपनी फिजूल शो-बाजी में फंसा है।
पत्‍नी मंजू और बेटी सीमा, मनीषा व पायल के साथ एनके मेहरोत्रा अफसराइटी के बावजूद हमेशा प्रसन्‍न-चित्‍त शख्सियत रहे हैं। समाज के किसी भी क्षेत्र पर बात कर लीजिए, बेबाक बोलते थे। बड़बोले भी खूब थे, लेकिन मर्यादाएं नहीं लांघते। हर तकनीकी सवाल पर हाजिरजवाब। स्‍टाइलिश हंसी के बीच बोलना अदा थी। इस हंसमुख लोकायुक्‍त ने अपने दफ्तर में पूरी पारदर्शिता बरती। लोकायुक्‍त को समाज के हर तबके के दरवाजे तक पहुंचाया। काम का बोझ बढ़ा, लेकिन जनप्रतिबद्धता का अहसास भी। यहां अब कुछ भी दबा-छिपा नहीं। किस्‍सों की भरमार थी, जो हमने उनसे साफ पूछा और उन्‍होंने पूरी ईमानदारी से बताया। कई ऐसी बातें भी बतायीं, जिनसे उनको दिक्‍कत हो सकती थी, इसके बावजूद वह बोले। मगर यह भी बताते रहे कि यह बात ऑफ द रिकार्ड ही है। चाहे किसी का भी हो, फोन खुद उठाते थे। उम्र चेहरे पर थी, दिल-दिमाग पर हर्गिज नहीं। उनकी खासियत, आप उनके विरोधियों से पूछ लीजिए।
रामपुर के राजद्वारा मोहल्‍ले में ब्रजकिशोर मुख्‍तार के बेहद गरीब परिवार में नरेंद्र किशोर मेहरोत्रा का जन्‍म पहली मार्च 1944 को हुआ था। उम्र के बीसवें पड़ाव पर पहुंचने के साथ ही उन्‍होंने एमए के बाद बाद एलएलबी किया। श्रम कानून के साथ फ्रेंच भाषा और लोक प्रशासन में डिप्‍लोमा भी किया। सन 70 में वे उप्र प्रदेश की पीसीएस (न्‍यायिक शाखा) में चुन लिये गये। बारह साल बाद एचजेएस में प्रोन्‍नत हुए और 15 बरस बाद जिला जज। वे उप्र शासन में संयुक्‍त सचिव और विशेष सचिव के पदों पर सन 87 से 96 तक रहे और अगले छह बरसों तक प्रमुख सचिव न्‍यायिक के पद पर कार्यरत रहे। जुलाई-02 में उनका चयन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के तौर पर हुआ जहां 28 फरवरी-06 को रिटायर हुए। 07 में लोकायुक्‍त बने।
प्रदेश की माया-सरकार का मौजूदा कार्यकाल शुरू से ही विवादों से घिरा था। स्‍मारकों के नाम पर लूट और दीगर अराजकताओं का आरोप विरोधी दलों ने खुलकर लगाया। सर्वोच्‍च न्‍यायालय तक ने हस्‍तक्षेप किया। कहीं कांग्रेस अध्‍यक्ष रीता जोशी का घर फूंका गया तो कहीं सरकार के ही विधायक-मंत्री अपराधी बने दिखे। खाता खुला सांसद उमाकांत यादव से। मायावती ने उन्‍हें अपने आवास से ही पुलिस में दे दिया। तब से यादव छह बरस तक जेल में ही रहे।
इसके बाद तो जैसे सिलसिला शुरू हो गया। चाहे इंजीनियर मनोज गुप्‍ता हत्‍याकांड में शेखर तिवारी रहे हों, या एक इंजीनियर को धमकाने वाले लखना से विधायक भामराव अंबेडकर। पुलिस थाने पर हमले में जमुना प्रसाद निषाद, या शशि हत्‍याकांड में आनन्‍दसेन यादव। कानूनगो रामकुमार यादव की हत्‍या में चंद्रभान सिंह या शीतल बिड़ला यौन उत्‍पीड़न कांड में गुड्डू पंडित। बदायूं में यौन उत्‍पीड़न में फंसे बिल्‍सी के विधायक योगेंद्र सागर और राज्‍यमंत्री का दर्जा हासिल किये राममोहन गर्ग। बांदा के पुरुषोत्‍तम द्विवेदी भी यौन उत्‍पीड़न में नपे। इसके बावजूद कि द्विवेदी की पत्‍नी ने बाकायदा प्रेस-कांफ्रेस पर साफ कहा था कि मेरे पति बलात्‍कार कर ही नहीं सकते हैं, क्‍यों‍कि उन्‍हें सहवास का दैवीय गुण ही नहीं है। माननीय रहे शिवकुमार, जितेंद्र सिंह बबलू, इंतिजार आब्‍दी, शिवशंकर चौहान, वीरेंद्र वर्मा, रामपाल वर्मा और सूरजभान सिंह, कबीना मंत्री वेदराम भाटी के साथ धनंजय सिंह भी इसी बीच निपटे। लेकिन लोकायुक्‍त के चाबुक की चमक और उसकी दहशत तब सरकार पर हावी दिखी जब उनकी रिपोर्ट के बाद राज्यमंत्री राजेश त्रिपाठी से उनकी लालबत्ती उतरवा ली गयी।
कुछ ही दिनों बाद दुग्‍ध विकास मंत्री अवधपाल सिंह यादव पर लोकायुक्‍त की सिफारिश के बाद उन्‍हें पैदल किया गया। अभी एक हफ्ता पहले लोकायुक्‍त की एक जांच रिपोर्ट ने तो जैसे यूपी की राजनीति में भूचाल खड़ा कर दिया। शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र के एक मामले में जांच की रिपोर्ट आयी तो माया-सरकार ने उनके साथ ही श्रममंत्री बादशाह सिंह को भी नाप दिया। हालांकि तब तक उनके खिलाफ कोई मामला तय नहीं हो पाया था। कुछ लोगों का मानना है लोकायुक्‍त के फैसलों की आड़ में मायावती ने उन लोगों को भी निपटा दिया, जो पहले से ही सरकार के निशाने पर थे।
हालांकि मधुमिता कांड में अमरमणि त्रिपाठी की जमानत सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाने के बाद जस्टिस मेहरोत्रा पर पहली बार आरोपों के छींटे पड़े थे। लेकिन भाजपा के बड़े नेता हृदयनारायण दीक्षित की निगाह में जस्टिस मेहरोत्रा एक निहायत संवेदनशील व सुलझे व्‍यक्ति थे। काम पर ध्‍यान और विवादों से दूर। उधर प्रख्‍यात वकील एलपी मिश्र के सहयोगी शरद पाठक के अनुसार जस्टिस मेहरोत्रा की छवि दायित्‍वों के प्रति निष्‍ठावान और जिम्‍मेदार व्‍यक्ति की थी।
इसमें कोई शक नहीं कि यूपी में एनके मेहरोत्रा जैसा कोई भी लोकायुक्‍त नहीं मिला। लोकायुक्‍तों की पहचान तो इसी घटना से परखी जा सकती है कि एक लोकायुक्‍त तो एक पार्टी में आमंत्रित होने पर गया था, लेकिन पार्टी में शामिल होने गयी अभिनेत्री के साथ काफी लबड़-सबड़ करने के चक्‍कर में खुद ही एक घातक वायरस से पीडि़त हो गया। लेकिन इसके अलावा भी एनके मेहरोत्रा को रायबरेली के एक रिजॉर्ट में छापामारी के दौरान पुलिसवालों ने पकड़ लिया था। तब वे लोकायुक्‍त नहीं, जज हुआ करते थे। लेकिन दोलत्‍ती संवाददाता को तब के दिग्‍गज वीरेंद्र भाटिया खबर मिलते ही अपने दोस्‍तों के साथ रिजार्ट गये और सुरक्षित को बचा ले गये। अब इस पर क्‍या चर्चा की जाए, कि उस रिजार्ट में पुलिस ने किस प्रवृत्ति के मामले में दबिश डाली थी।

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कंटेंप्‍ट ऑफ कोर्ट पर फैसले से हिल गया वकील समाज
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मी लार्ड, अहंकार छोडि़ये। ठोस और सकारात्‍मक विचार-विमर्श का रास्‍ता खोजिए
वकीलों का टीएन शेषन, गजब चुनाव कराया
यूपी हाईकोर्ट: वकीलों लंगोट कसो, बजा संघर्ष बिगुल
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यूपी के महाधिवक्‍ता आपके चपरासी नहीं हैं योर ऑनर
सांसद जी ! जुबान है या उर्दू बाजार का पाखाना। इज्जत भी गई ?
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डीएम गुस्‍से में चिल्‍लाया: सांडा के तेल की शीशी फेंको, सल्‍लू को भगाओ
महान संपादकों ने निहाल किया, तो ओछे और छिछोरे भी मिले
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पत्रकारिता की चुल्ल है इन लौंडों में
मैं अयोध्या प्रेस क्लब की सरकारी बड़की बुआ हूँ यार
यह है पत्रकारिता का असली तेवर। सम्मान तो ठीक, पर धनराशि क्या करें
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