बुड्ढा सम्‍पादक अब बच्‍चा हो गया। चिड़ीमारी भी करता है

बिटिया खबर मेरा कोना
: शम्‍भू दयाल बाजपेई अब 64 प्‍लस हो गये। पहले खबरों से खेलते थे, अब सुबह-सुबह चिडि़यों से खेलते हैं : सफल – जीवन जानने को मानता था । खुद को जानना , जीवन – रहस्‍य को समझ लेना : सात महीना का पोता अब नया पाठ पढ़ा रहा है अपने पितामह को :

दोलत्‍ती डॉट कॉम संवाददाता
बरेली : 64 का हो गया । स्‍कूली सर्टीफिकेट के हिसाब से। सही क्‍या है , नहीं जानता । अस्तित्व कब से है, ठीक ठीक नहीं जान पाया । जन्‍म से पहले से भी तो सूक्ष्‍म – बीज रूप में रहा होगा । घर के सामने लगा नीम का पेड एक बीज में ही तो सिमटा था । वह बीज पहले के नीम में …
शुभेच्‍छुओं ने बधाई दी है । ऋणी हूं उनकी सदाशयता के प्रति । अब तक की जीवन – यात्रा तमाम जाने – अनजाने लोगों के सहारे ही तो सम्‍पन्‍न हो पायी है । आपाद मस्‍तक ऋणी ही तो हूं । उससे मुक्‍त हो पाना संभव भी नहीं लगता ।
अच्‍छा तो कुछ हो – कर नहीं सका । बुराईयां ही रहीं कर्म – ब्‍यवहार में ।बिख्‍ारा ब्‍यक्तित्व विफलता ही देगा । लेकिन सफलता है क्‍या ? नाम – यश , धन – सम्‍पदा ? नहीं , इस ओर से शुरू से रुझान नहीं रहा । इस लिए इस मोर्चे पर बुरी तरह फेल रहा , तो कोई सोचने की बात नहीं । स्‍वाभा‍व‍िक था । जब किन्‍ही स्‍थापित राह – मार्गों की परवाह नहीं करेंगे , लीक से हट कर चलेंगे तो सुवि‍धा जनक पोजीशन में पहुंचने – होने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
सफल – जीवन जानने को मानता था । खुद को जानना , जीवन – रहस्‍य को समझ लेना । वह भी नहीं हो पाया । यह विफलता अंतस के किसी कोने में सालती है । अब तो किसी कृपा – चमत्कार का ही आसरा है । पुरुषार्थ – उद्यम का नहीं ।
यह संतोष की बात है कि व्‍यवस्थित से ज्‍यादा अब्‍यवसि्थत रहने के बावजूद डाक्‍टर – दवा का आश्रय लेने जैसी कोई समस्‍या नहीं है । खान- पान में कोई परहेज – प्रतिबंध नहीं । आयुगत शरीरिक बदलाव तो होने ही हैं । आप और अग्रजों की शुभ कामनाओं से ही यह संभव होगा । अन्‍यथा ईश्‍वर – भगवान को तो जानता – मानता नहीं । धर्म – कर्म , पूजा -पाठ नहीं जानता – करता ।
करीब डेढ साल से नौकरी – निवृत्त घर बरेली हूं । सुबह साढे चार – पांच बजे नींद खुल जाती है । छत पर च‍िडयों को दाना – खाना – पानी करने का पुराना काम फिर हाथ में ले लिया है । साढे पांच बजे इससे निवृत्त हो आधे – पौन घंटे बाहर पार्क जाकर कुछ हल्‍की फुल्‍की एक्‍सरसाइज , टहलना और एक – डेढ मिनट की दौड । आधा दर्जन तरह की चिडियां – कौवे , कबूतर , गौरेया , गिलहरी आदि सुबह सुबह धमा चौकडी मचाती हैं ।
हां, एक और नयी सुखद ब्‍यस्‍तता की आनंदानुभूति ले रहा हूं । बडे बेटे का सात महीने का पुत्र है , उसे लेने – उसके साथ खोलने का । यह बडा दिलचस्‍प अनुभूति देने वाला है । छोटे निश्‍छल बच्‍चे जो बोलना भी नहीं जानते , कैसे संवाद करते हैं । अखबारी नौकरी के दबावों में अपने बच्‍चों का बालपन जी नहीं सका ।
(कई अखबारों में सम्‍पादक रह चुके दुबरे-पातर और हल्‍के काली रंगत वाले शम्‍भू दयाल बाजपेई अब 61-62 से भी दो-तीन बरस आगे बढ़ चुके हैं। बुढ़ौती नहीं सताती है, लेकिन जीवन का विश्‍लेषण तो करते ही रहते हैं। अपने जन्‍मदिन पर उन्‍होंने अपना यह जन्‍म-पतरा छापा है। अब पता नहीं वजह क्‍या है, लेकिन सच बात तो यही है कि वे वर्तनी पर अब कत्‍तई ध्‍यान नहीं देते। आप भी बांचिये। )

1 thought on “बुड्ढा सम्‍पादक अब बच्‍चा हो गया। चिड़ीमारी भी करता है

  1. हा हा हा …. सौवीर जी। सपने में उम्‍मीद नहीं थी कि मेरी भी ख्‍ाबर लेे लेंगे ।
    वर्तनी कुछ ताेे कंप्‍यूूूूटर -जनित है , कुछ प्रमाद वश्‍ा। चेक नहीं करता । सच
    यह भी है कि वर्तनी – ब्‍याकरण्‍ा बहुत जानता भी नहीं । लिख्‍ाने – बोलने में
    बहुत श्‍ाुुुद्धता- आग्रही भी नहीं रहा । जैसेे जीवन – ब्‍यापार में शुद्धता – सचेत
    नहीं रहा । सहजता अ‍ध्‍ाि‍क लुभाती है ।

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