हैप्‍पी डाक्‍टर्स-डे, लेकिन तुम अब भगवान नहीं, यमराज हो

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: दम तोड़ते बुद्ध ने अपनी पीड़ा त्‍याग कर अपने शिष्‍य का कल्‍याण किया, और तुमने ? : तुम्‍हारी हड़ताल में अक्‍सर मारे जाते हैं दर्जनों मरीज, वजह यह कि तुम लालची हो : समझ में न आये तो प्रेमचंद की कहानी मंत्र पढ़ लेना, डाक्‍टर खुराना तुम ही हो : डॉक्टर साहब ! चलो, बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि (एक)

कुमार सौवीर

लखनऊ : सॉरी डॉक्‍टर साहब। मैं माफी चाहता हूं कि आपको कल डॉक्‍टर्स-डे पर आपको बधाई नहीं दे पाया। वजह यह कि मेरी अंतरात्‍मा ने इसके लिए मुझे इजाजत ही नहीं दी कि मैं आपको बधाई दूं। वजह यह कि आपकी काली करतूतें, आपके धंधे, आपका घमण्‍ड, आपका पाखण्‍ड और आपकी गैर-जिम्‍मेदारी के बारे में खूब जानता हूं, समझता हूं। ऐसे में कैसे आपको डॉक्‍टर्स-डे पर बधाई दे पाता। अब चूंकि आपका वह डॉक्‍टर्स-डे बीत चुका है, इसलिए मैं कम से कम आपको बासी बधाई तो दे ही सकता हूं। है कि नहीं ? लेकिन इसके बावजूद आपको इतना साफ कह दूं कि आप की छवि आम आदमी में अब वह नहीं बची है कि आपको भगवान समझा जा सकें, धन्‍वन्‍तरि, सुश्रत, चरक और नागार्जुन आदि जैसी महानतम हस्तियों का वंशज माना जा सके।

मैं जानता हूं कि आपको मेरी यह बातें बहुत कटु लग रही होंगी। हो सकता है कि आप मुझ पर भड़क कर मुझे गरियाना शुरू कर दें, यह भी हो सकता है कि आप आइंदा मेरी बीमारियों के इलाज के लिए सही दवा न दें, या मुझ से अभद्रता करें, हमला करें। तो कीजिए। आपकी ऐसी किसी भी प्रतिक्रिया की तो प्रतीक्षा ही करता रहता हूं। लेकिन आपकी किसी प्रतिक्रिया से मैं अपने सच कहने के संकल्‍प को कैसे तोड़-छोड़ सकता हूं। आपने अपना मूल दायित्‍व खत्‍म कर लिया, लेकिन हकीकत यह है कि मैं अपने दायित्‍व पर आज भी अडिग हूं ओर हमेशा रहूंगा भी।

इस महीने की शुरूआत में ही लखनऊ में आपके नवजातों-सद्यस्‍तनपायी वंशजों ने एक जोरदार हड़ताल की थी। उनका दावा था कि उनकी यह हड़ताल पूरी तरह सफल हो गयी और वे अपनी मांगों को पूरा कराने में सफल हो गये। उन्‍होंने यह भी दावा किया कि आइंदा सरकार और प्रशासन की किसी भी उत्‍पीड़नात्‍मक कार्रवाई पर हम जोरदार हमला करते ही रहेंगे और हर जंग को फैसलाकुन बनायेंगे। लेकिन आप यह भूल गये कि आपके जीवन का इकलौता दायित्‍व केवल मरीज का मंगल करना ही था, जो आपने इस दौरान धूल-धूसरित ही कर दिया। आपकी इस खुशमिजाज हड़ताल के चलते कोई डेढ़ दर्जन से भी ज्‍यादा मौतें अकेले लखनऊ मेडिकल कालेज में हुईं और हजारों गंभीर रूप से मरीजों को इधर-उधर भटकना पड़ा।

तो डॉक्‍टर साहब, आपको हम एक कहानी सुनाते हैं। एकदम्‍म सच कहानी। इतिहास में दर्ज कहानी। और उसके बाद हम आपको बतायेंगे कि कैसे बुद्ध से लेकर आज तक आपका पेशा कितना घिनौना और शर्मनाक रहा है, और कैसे चिकित्‍सा जगत की महानतम हैसियतों ने इंसान ही नहीं, सामान्‍य प्राणियों का मंगल किया।

बिना अपनी पीड़ा पर कराहते हुए, केवल तप्‍त प्राणियों का इलाज किया।

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डॉक्टर साहब ! चलो बुद्धम् शरणम् गच्‍छामि

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