रूको, यह डरपोंक पत्रकार हैं। इन्‍हें गनर चाहिए

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: ऐसा कौन सा कर्म-कुकर्म तुमने कर डाला, जो तुम्‍हारे गले की हड्डी की तरह फंसा हुआ है : कलम को तोप नहीं, तमंचा को परमाणु मानते हैं यह जर्नलिस्‍ट : तुम्‍हें इतना ही डर लगता है, तो पत्रकारिता को क्‍यों बदनाम करते हो : दास्‍तान-ए-डरपोंक पत्रकार-एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ढम्‍म, ढम्‍म, ढम्‍म। सुनो, सुनो। पत्रकारों की कहानी सुनो। बिलकुल दौर के पत्रकारों की कहानी। नये टेस्‍ट वाले पत्रकारों की कहानी। अनोखे बिजूखा-टाइप नये-नये अंदाज के पत्रकारों की कहानी। बिना कलम वाले पत्रकारों की कहानी। बिना किसी खबर वाले पत्रकारों की कहानी। बकलोल पत्रकारों की कहानी। बहादुर होने का चोला पहन कर डर पोंक रहे पत्रकारनुमा पत्रकारों की कहानी। सिर्फ दलाली पर आमादा पत्रकारों की कहानी। खबर लिखने की तमीज नहीं, लेकिन इन्‍हें भय बहुत है। इतने भयभीत हैं यह पत्रकार, कि उन्‍हें गनर चाहिए। सरकारी गनर, विद कारबाइन। ढम्‍म, ढम्‍म, ढम्‍म।

जी हां, आइये ऐसे पत्रकारों की कहानी सुनिये, जो कर्म से भले पत्रकार न हों, लेकिन खुद को पत्रकार के तौर पर यत्र-तत्र-सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। मनुष्‍यरूपेण मृगाचरन्ति। यह गजब कहानी है यूपी के पत्रकारिता के उन पहरूओं की, जिनका पत्रकारिता से धेला भर लेना-देना नहीं होता। वे दावा तो करेंगे कि वह करते हैं पत्रकारिता, लेकिन डर-डर कर। इतना डरेंगे कि डरपोंक मारेंगे। डर के मारे नानी मरती है इन बहादुर पत्रकारों की। लिखने की तमीज भले न हो, लेकिन उन्‍हें अपनी सुरक्षा के लिए वे यत्र-तत्र-सर्वत्र चिल्‍ल-पों करते दिख जाते हैं। जिस किस की भी चरण-धूलि अपने माथे पर टीका की तरह सजा लेंगे और फिर भिक्षा में मांगेंगे गनर। सरकारी गनर। सरकारी स्‍टेनगन के साथ वाला गनर।

एक दौर हुआ करता था, जब पत्रकारिता की दुनिया में अक्‍सर यह हुंकारें गूंजा करती थीं कि:- “खींचों न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”।

वो देश की दासता का युग था। ब्रिटिश हुकुमत से लोहा लेने के लिये कहीं उदारवादी गुहार लगा रहे थे तो कहीं उग्रवादी खूनी संघर्ष कर रहे थे। सबकी ज़रूरत सिर्फ और सिर्फ आजादी थी और उसे किसी भी हाल में हासिल करने का एकमात्र उद्देश्य लोगों के ज़हन में था। बंदूक, तलवार, तोपें और तमाम बड़े-बड़े हथियारों से क्रांतिकारी स्वतंत्रता की जंग लड़ रहे थे किंतु क्रांति का हर प्रयास सिर्फ निराशा को ही देने वाला था और इसका परिणाम था 1857 की क्रांति की विफलता। बस इसी दौर में हथियारों से परे आजादी की अलख जगाने का जिम्मा कलमकारों ने अपने हिस्से लिया और कलम की ताकत कुछ ऐसी चमकी, कि मशहूर शायर अकबर इलाहबादी को कहना पड़ा- “खींचों न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”

जुझारू पत्रकारों के इस अमिट योगदान को बयाँ करने के लिये महान् कवियत्री महादेवी वर्मा को कहना पड़ा “पत्रकारों के पैरों के छालों से आज का इतिहास लिखा जाएगा”

इतना ही नहीं, ‘स्वराज्य’ नामक अखबार ने अपने संपादक पद के लिए छपा यह विज्ञापन इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है- ‘‘चाहिए स्वराज्य के लिए एक संपादक। वेतन-दो सूखी रोटियां, एक गिलास ठंडा पानी और प्रत्येक संपादकीय के लिए दस साल जेल और विशेष अवसर पे अपना सिर कटाने के लिये तैयार, योग्य कलमकार’’

लेकिन अब यह सदाएं अब कहां सुनायी पड़ती हैं। अखबार और अखबार वालों को बिकने-बिकवाने का शौक और धंधा मिल गया। आवाजें जो आम आदमी की हुआ करती थीं, अब चीखों में तब्‍दील हुईं और फिर इन्‍हीं दलाल-बिकाऊ पत्रकारों ने उन आवाजों का गला घोंट कर उन्‍हें दफ्ताने का अभियान छेड़ दिया।

इन्‍हें अपने पेशे को चमकाने के लिए खबरों और व्‍याकरणों की जरूरत नहीं पड़ती है। बल्कि उसके ठीक उलट, उन्‍हें अपना धंधा चमकाने के लिए सरकारी स्‍टेनगन लादे एक सरकारी गनर की जरूरत पड़ती है, जिसके साथ वे खड़े हों और छाती ठोंक कर यह प्रदर्शन करने की मूर्खता कर सकें कि उनकी सुरक्षा अब सरकार का जिम्‍मा बन चुका है। जाहिर है कि वह दलाली ही है, जिसका दारोमदार इस नये दौर के पत्रकारों ने थाम लिया है। इनमें से ही कई लोग भी हैं, जो खुद को वरिष्‍ठ पत्रकार के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन अपनी काली-करतूतों के चलते गनर हासिल कर उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करते रहते हैं।

जी हां, अब नतीजा यह कि लखनऊ की पत्रकारिता अब कलम के सिपहसालारों की संख्‍या अब बेहद न्‍यून होती जा रही है। उनकी जगह ले लिया है बनावटी और दिखावटी पत्रकारों ने, जिनको पत्रकारिता का ककहरा तक नहीं आता, लेकिन झूठ और चापलूसियों की ऐसी-ऐसी लन्‍तरानियां उछालने में माहिर हैं यह पत्रकार।

ऐसे ही पत्रकारों की कलई उतारने के लिए प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने कमर कस ली है। अब अगले कई दिनों तक हम आपको दिखायेंगे ऐसे तथाकथित पत्रकारिता  के कारिंदों की काली-कारतूतों वाली तस्‍वीरें। यह लेख श्रंखलाबद्ध है। इसकी दीगर कडि़यों को निहारने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

दास्‍तान-ए-डरपोंक


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