: भाजपा ने कार्यकर्ताओं की फसल काटने का ठेका बाहरी लोगों को थमा दिया : अपनों की उपेक्षा का घड़ा लबालब भर गया, मगर कोई उफ् तक नहीं कर रहा : अब यह नयी दौर का भाजपा है, जहां भाजपाई एक भी नहीं बचा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : भाजपा की ताजा हालत का खुलासा पोस्टमार्टम में माहिर किसी कुशल किसी डॉक्टर से पूछिये, तो पता चलेगा कि हकीकत का खुलासा हो पायेगा है। ऐसा डॉक्टर ही बता पायेगा कि इस भाजपा की शक्ल-सूरत और उसकी चमड़ी भले ही कमल छाप हो, लेकिन इसके भीतर सारी आंतडि़यां, गुर्दे, दिल, फेफड़ा, दिमाग, और रक्त-मज्जा अब भाजपा की नहीं रही। आरएसएस नाम के इन अंगों को हटा कर आज के भाजपा-नेतृत्व ने जहां-तहां से दूसरी पार्टियों से लेकर फिट करा दिया है। अब हालत यह है कि आज की भाजपा की इस नयी अधिकांश देह-यष्टि में कभी आरएसएस वाली मौलिक सुंगधि हुआ करती थी, उसकी जगह बाकी दलों-दलदलों का बदबूदार कचरा भरा पड़ा हुआ है।
जो नहीं जानते हैं, वे समझ लें कि भाजपा का मूल चरित्र ही आरएसएस की विचारधारा हुआ करता था। उसकी आत्मा में संघ का राष्ट्रवाद जनित राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रभक्ति, शुचिता, नैतिकता, आचरण और हिन्दू विचारधारा का समन्दर हिलोरें लिया करता था। लेकिन अब यह समंदर किसी नाले से बदतर होता जा रहा है। आरएसएस की सोच और उसके त्यागमयी सोच वाले लोग अब किनारे कर दिये गये हैं, जबकि उनकी जगह उन लोगों को स्थापित कर दिया गया है, जो झण्डा, निशान, अंदाज तो भाजपाइयों जैसा अपना चुके हैं, लेकिन उनकी आत्मा कांग्रेस, सपा, बसपा और अधिकांश मामलों में आपराधिक चरित्र का लबालब समावेश है। अनेक मामलों में ऐसे लोग बाकायदा किसी खूंख्वार लुटेरे या खांटी माफिया गिरोह बने हुए हैं। जबकि आम कार्यकर्ता उनके चरणों पर बैठने पर मजबूर है।
भाजपा के इस ताजा स्खलन का जायजा लेने के लिए आपको बनारस के दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र को सूंघना पड़ेगा, जहां संघ का एक विशालतम दरख्त अपनी किस्मत को कोस रहा है। श्यामदेव राय चौधरी जैसे दरख्तों ने ही भाजपा को पाला-पोसा था, लेकिन अब वह खुल कर विरोध भले न कर पा रहा हो, लेकिन भाजपा को श्राप देने पर आमादा है। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे ही दरख्त भाजपा को आने वक्त में पूरी तरह दक्खिन हो जाने का आगाज कर रहे हैं।
तो जनाब यह जो भाजपा आप देख रहे हैं न, वह अब दरअसल वह भाजपा नहीं है, बल्कि सैकड़ों बेढंगी पैबंद लगी है जिसमें नैतिकता का लोप हो चुका है। इस हालत में आम भाजपाई खुद को पूरी तरह लुटा-पिटा महससू कर रहा है, जैसे किसी परिन्दे को बेघर-बार कर दिया गया हो। वह इस नयी भाजपा को हजम भी नहीं कर पा रहा है, और न ही उससे दूर हो पा रहा है।
दूर क्यों जाते हैं, यह नयी दौर वाली भाजपा का लखनऊ का कर्म-काण्ड बांच लीजिए न।
कट्टर संघी और पूर्व मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त के बेटे हैं डॉक्टर राजीव रंजन। बलरामपुर में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक थे। चुनाव लड़ना चाहते थे, इसके लिए भाजपा नेतृत्व ने हरी झंडी भी दे दी थी। लिहाजा डॉ राजीव ने प्रि-रिटायरमेंट ले लिया। मगर ऐन वक्त पर उनको टिकट नहीं दिया गया। कहा गया कि भाजपा के कार्यकर्ता उन्हें पूरी तरह नहीं पहचान पाते हैं।
फिर सवाल यह है कि क्या यही भाजपा कार्यकर्ता ब्रजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी, स्वाति सिंह और नीरज बोरा को पहचानते हैं। मूलत: बसपाई ब्रजेश पाठक का रिश्ता हमेशा से ही संगठित अपराध से जुड़ा हुआ रहा है, शर्तों पर मामला बिगड़ा तो ब्रजेश ने भाजपा का दामन दबोच लिया, भाजपा के संघी कार्यकर्ता टापते ही रह गये।
कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रहीं रीता बहुगुणा का पत्ता कटा, तो भाजपा के चरणों में लेट गयीं और अब संघ-विचारधारा के लोगों के पद-दलित कर रही हैं। स्वाति सिंह की पहचान प्रतिक्रिया-वाद है, जिसे नैतिकवादी कहलाने वाली ताजा भाजपा ने उसे कैश किया। इसमें अकेले नीरज बोरा ही हैं, जिनकी छवि साफ-सुधरी रही है। निर्विवाद और खांटी राजनैतिक।
समाजवादी पार्टी ने पिछले पांच बरसों तक अराजकता, अन्याय, जातिवाद, माफियावाद, अपराध को संरक्षण की जो खेती बोयी, उसे अब ताजा भाजपा में घुसपैठ कर दूसरे दलों से आये स्वार्थी लोगों लोग ही काटेंगे। जबकि मूल भाजपा लगातार दलदल में धंसती चली जाएगी। जहां सुरेश तिवारी, अमित पुरी जैसे जन्मना संघी कार्यकर्ताओं का कत्लेआम होगा।