सहस्राब्दियों पुराना मामला निपटाने को मैं गारा-ईंटा जुटाने में जुटा हूं
: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष मेरा उपन्यास खण्ड-परशु : आइये, एक अनोखे नजरिये के साथ देखिये महिला की हालत (5) :
मैं समझता हूं कि प्रत्येक मानव ऐसे भीषण दण्ड का विरोधी होगा। तब तो और भी जब अभियुक्त सिरे से ही निर्दोष हो। रेणुका की हत्या मात्र इस शक पर कर दी गयी कि उसने व्यभिचार किया था। न कोई कोई प्रमाण और न कोई गवाह। बस सन्देह हुआ और फैसला हो गया।
क्या मूर्खता है यह। न्याय के नाम पर इतना बड़ा अन्याय न…न…। इसे न्याय कैसे कहा जा सकता है। खूब ढोंग हुए हैं न्याय के नाम पर। स्त्री-पुरुष की बराबरी के दावे और डींगें आपको लगभग हर पुरुष के मुंह से निकले शब्दों और सम्बन्धित सरकारी कागजों पर खूब बरामद हो जाएंगे। मगर नृवंश-विकास के पूरे इतिहास पर नजर दौडा़ने पर आपको एक भी ऐसा उदाहरण लाख खोजने के बावजूद नहीं मिल पायेगा जिससे पुरुषों द्वारा स्त्रियों को बराबरी का ओहदा दिये जाने की वास्तविक पुष्टि होती हो। हां, उसे नंगा कर डालने पर तो हर-एक आमादा ही दिखायी पड़ता है और इसका मौका तो कोई हर्गिज़ चूकना ही नहीं चाहता।
दिखावा करने को तो हमने उन्हें देवी तक की पदवी दे दी, परन्तु इन देवियों की नियति अन्ततोगत्वा अपने पुरुष-साथी के पैर दबाने तक ही सीमित रही। यह व्यवस्था ही बड़े रणनीतिक रूप से हुई, जिसकी परिणति यही होनी ही थी। क्षीर-सागर में जरा लक्ष्मी की उस नियति पर गौर कीजिये जिन्हें हमेशा विष्णु का अभिन्न बताया जाता है। लेकिन कहां, सदा-सर्वदा विष्णु के पैंताने ही। इससे ज्यादा की छूट उन्हें कभी नहीं मिलती। इस तथ्य के बावजूद कि मानव-जीवन की पहली शर्त यानी धन-सम्पदा की वे एकमात्र स्वामिनी हैं।
दरअसल हमने स्त्री को इतने सम्मानजनक स्थान पर प्रतिष्ठापित कर दिया है कि उसका अपमान करके कोई भी दूसरा पुरुष अपने विरोधी को अपमानित कर सकता है। ‘ स्त्री लाज का गहना है ’। और इस गहने को छीन-रौंद कर बड़ी आसानी से कोई भी अपने किसी भी प्रतिद्वन्द्वी को बेइज्जती कर सकता है। तो क्या मान लें कि हमारी नीयत ‘ देवीस्वरूपा स्त्री के प्रति न सिर्फ पशुवत अर्थात प्राकृतिक है, बल्कि वह इससे भी आगे बढ़ कर किसी क्रूरतम इंसानी शब्द के अर्थ तक पहुंच चुकी है। और अगर वास्तव में ऐसा ही है तो … !!!
तो आइये, कम से कम हम इतना प्रयास तो कर ही सकते हैं कि सहस्राब्दियों पुराने और जानबूझ कर इतने लम्बे समय तक अनसुलझे ही रखे गये इस मुकदमे को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाने के लिए ईंटा-गारा तैयार करें। जाहिर है कि रेणुका को निर्दोष करार दिए जाने के लिए हमें समानधर्मी लोगों को एकजुट करना ही होगा।
मेरे इस काम का जितना मूल्य मेरी बेटियों साशा और बकुल ने चुकाया, उसे मैं कैसे अदा कर सकूंगा। और फिर केवल साशा और बकुल ही क्यों ? मैं तो दुनिया की ऐसी सारी प्रताडि़त बेटियों के पक्ष में यह मुकदमा लड़ रहा हूं ना। इसीलिए मैं इन बेटियों के प्रति भी आजीवन ऋणी रहूंगा।
कुमार सौवीर
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