बिहारियों की ताकत ने शहाबुद्दीन को तिहाड़ भेजा, यूपी में संवेदनाओं की नीलामी शुरू

सैड सांग

: शाहजहांपुर का राममूर्ति वर्मा सांड़ की तरह छुट्टा घूम रहा, शहाबुद्दीन की बत्‍ती गुल : सीवान में तेजाब नहला कर बेटों की हत्‍या करने वालों पर बाप कहर बन कर बरपा, जागेंद्र सिंह के घरवाले भारी रकम डकार कर खामोश :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सीवान में एक जी-दार पत्रकार था राजदेव रंजन। एक कुख्‍यात माफिया सरगना मोहम्‍मद शहाबुद्दीन ने रंजन की गोली मार कर हत्‍या कर दी। दूसरा मामला इसी सीवान का था, जहां चंद्रदेव बाबू के दो बेटों को शहाबुद्दीन ने तेजाब से नहला कर मार डाला, और तीसरे थी के सिर को गोलियों से छलनी कर दिया। शहाबुद्दीन का आतंक के बिहार और झारखंड और पड़ोसी देश नेपाल की जनता में ही सीमित नहीं था, बल्कि इन क्षेत्रों में सक्रिय नेता, सत्‍ताधीश और अफसरों में भी उसकी तूती बोलती थी। लेकिन रंजन की पत्‍नी आशा और मारे गये तीन युवकों के बाप चंद्रदेव बाबू ने शहाबुद्दीन को औकात में खड़ा कर दिया। आज अपराधियों, नेताओं और अफसरों की लाख धमकियों को पूरी तरह नकार कर इन दोनों ने ऐसा जबर्दस्‍त तूफान उत्‍पन्‍न कर दिया कि आखिर सर्वोच्‍च न्‍यायालय तक को इस मामले में हस्‍तक्षेप करना पड़ा। हस्‍तक्षेप भी ऐसा, कि 24 घंटों के भीतर ही बिहार सरकार ने शहाबुद्दीन को दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में भेज दिया।

यह तो कहानी है उन साहसी बिहारी समाज की, जिन्‍हें देखते ही बिहार के बाहर के लोग उपेक्षा-हिकारत से मुंह बिचका देते हैं। उन्‍हें भुखमरी से ग्रसित, असभ्‍य, अशिक्षित, और बेहद पिछड़ा मानते हैं, जिन्‍हें सत्‍तू खाकर पादने के अलावा कुछ भी तमीज नहीं होती। लेकिन अगर आप अपने पूर्वाग्रह को क्षण भर के लिए छोड़ने को तैयार हों, तो हम आपको दिखा सकते हैं कि बिहार के लोग हालातों के सामने मजबूर तो जरूर होते हैं। मगर उनमें जिजीविषा और संवेदना का विशाल समंदर लहराता रहता है। वे मलाई भले न चाट पाते हों, लेकिन सत्‍तू खाकर भर्र-भर्र पादने वाले इन बिहारियों में जो जज्‍बा होता है, उसका शतांश तक यूपी वगैरह में नहीं होता। बिहारी कितना साहसी होते हैं, उसकी नजीर सीवान की आशा और चंद्रदेव बाबू हैं।

लेकिन यूपी वाले भले ही पाद न पाते हों, मगर बेशर्मी से डकारते और सब कुछ हजम कर लेते हैं। सब कुछ। चाहे वह पति हो, बेटा हो, बाप हो, बेटी हो, मित्र हों, पत्रकार साथी हों, अफसर हों, पुलिसवाले हों, मंत्री-विधायक हों या फिर सीधे मुख्‍यमंत्री। शाहजहांपुर में डेढ़ साल पहले एक जांबाज पत्रकार जागेंद्र सिंह की हत्‍या के बाद हर स्‍तर पर जो-जो कमीनगी, डील, बयानबाजी, पैंतरेबाजी हुई, उसे देख कर तो साफ-साफ कहा जा सकता है कि बिहारी भले ही भर्र से पाद देता हो, लेकिन सिर्फ आवाज ही गूंजती है, दुर्गन्‍ध नहीं। जबकि शाहजहांपुर के हादसे से साबित हो गया कि यूपी वालों की आवाज भले न निकल पाती हो, लेकिन उनकी दुर्गन्‍ध युगों-सदियों तक समाज को विह्वल करती रहती है।

शाहजहांपुर के बहादुर, जांबाज पत्रकार जागेंद्र सिंह को अखिलेश सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर वहां के कोतवाल श्रीप्रकाश राय ने अपने करीब एक दर्जन पुलिसवालों ने घेर कर उसे जिन्‍दा फूंक डाला था। इसके बाद सरकार और प्रशासन के इशारे पर और स्‍थानीय पत्रकारों की सहमति से जागेंद्र सिंह के खिलाफ बाकायदा चरित्र-हनन का एक अभियान छेड़ दिया गया। शाहजहांपुर के बेशर्म पत्रकारों ने तो जागेंद्र सिंह को पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया। शाहजहांपुर के पत्रकारों ने तो हत्‍यारोपित मंत्री राममूर्ति वर्मा को अपने हर आयोजन में मुख्‍य अतिथि तक के तौर पर आमंत्रित और सम्‍मानित करना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि इस मामले पर मंत्री, कोतवाल समेत सारे के सारे हत्‍यारों पर कोई मुकदमा ही नहीं चला।

मगर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस मामले पर हस्‍तक्षेप किया और गहन परीक्षणों के बाद ऐसे-ऐसे प्रमाण-साक्ष्‍य हासिल किये जिससे जागेंद्र सिंह को पत्रकार साबित किया जा सकता था। यह सारे साक्ष्‍य का प्रदर्शन कर मेरी बिटिया डॉट कॉम ने पत्रकार समुदाय को मजबूर कर दिया कि जागेंद्र सिंह वाकई एक जांबाज पत्रकार था और उसकी हत्‍या की गयी थी।

इस मामले में जागेंद्र सिंह के परिवार ने बाकायदा आंदोलन छेड़ा। सीबीआई जांच की मांग कर दी। लेकिन इसी बीच कई पत्रकारों के सहारे बसपा और सपा के विधायकों तथा मंत्री राममूर्ति वर्मा ने मिल कर जागेंद्र के परिजनों को लखनऊ ले जाकर मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात करायी। इस के बाद अखिलेश ने आश्रितों को 30 लाख रूपया नकद, दोनों बेटों को सरकारी नौकरी का आश्‍वासन दिया।

लेकिन इसके बाद यह मामला दब गया। अखिलेश यादव की जुबान झूठी साबित करते हुए सरकार ने आश्रितों को सरकारी नौकरी नहीं दी। जानकार बताते हैं कि अगर नौकरी दे दी जाती तो वे राममूर्ति वर्मा पर उसका कींचड़ उलच सकता था। विश्‍वस्‍त सूत्र बताते हैं कि राममूर्ति वर्मा ने अपना पायंचा बचाने के लिए अपनी जेब से 35 लाख रूपयों का गुपचुप भुगतान दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि जागेंद्र के आश्रितों को जागेंद्र की मौत का वाजिब कीमत मिल जाने के बाद से इन आश्रितों ने जागेंद्र को ही अपनी स्‍मृति से बिसार दिया। शाहजहांपुर के अनेक पत्रकारों ने यह भुगतान नकद दिया गया था इस रकम से आश्रितों ने आलीशान मकान, गाड़ी-घोड़ा वगैरह खरीद लिया। अब उन्‍हें सरकारी नौकरी की जरूरत भी नही रही।

बिहार और यूपी में हुए रोंगटे खड़े कर देने वाले इन हादसों की अगली कडि़यों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-
अपराध और पत्रकार

बिहार में इंसानियत के नाम पर कलंक और एक निहायत घिनौने पिशाच का मोहम्‍मद शहाबुद्दीन। उससे जुड़ी खबरों को प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटियाडॉट कॉम लगातार प्रस्‍तुत कर रहा है। इससे जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

पिशाच का नाम शहाबुद्दीन

बिहार के शहाबदु्दीन ने एक जांबाज पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मार कर हत्‍या कर दी थी। लेकिन यूपी में भी बहादुर और बेकाब पत्रकारों पर जानलेवा हमले करने वालों की तादात कम नहीं है। कम से कम शाहजहांपुर में जागेंद्र सिंह नामक एक पत्रकार को जिन्‍दा फूंक डालने वाला हौलनाक काण्‍ड, और उसके बाद पत्रकारों का रवैया निहायत शर्मनाक ही माना जाएगा। उससे जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

अपराधियों से गलबहियां करते पत्रकार



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