भारी संकट में है बलिया की पत्रकारिता: हेमकर

दोलत्ती
: रतन पत्रकार की हत्या पत्रकारीय दायित्व नहीं, निजी विवाद में हुई : अभावों में भी अथक परिश्रमी हैं पत्रकार, न जागे तो चरित्र गुम हो जाएगा :
दोलत्ती संवाददाता
बलिया : फेफना में हुए रतन-हत्याकांड ने सरकार और प्रशासन तथा पुलिस के सामने कानून-व्यवस्था पर भले ही तात्कालिक या दीर्घकालिक दिक्कत भले न आयी हो, लेकिन पत्रकारिता जगत में यह घटना निहायत शर्मनाक साबित होने वाली है। इसका दुष्प्रमाण दूरगामी होगा। सच बात तो यही है कि अगर यही हालत बनी रही, तो पत्रकारिता का चरित्र हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। और उस पर रोने वाला भी कोई नहीं बचेगा।
एक खास मुलाकात में दोलत्ती संवाददाता से रतन सिंह हत्याकांड को लेकर यह दुखद नजरिया व्यक्त किया है बलिया के वरिष्ठ पत्रकार और श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष अनूप हेमकर ने। श्री हेमकर पीटीआई के जिला प्रतिनिधि भी हैं और पत्रकारिता में अपना एक अहम हस्तक्षेप रखते हैं। हेमकर उनकी चिंता का विषय पत्रकारिता और उसके समर्पित पत्रकार ही हैं।
श्री हेमकर को इस बात पर दुख है कि पत्रकार समुदाय चारों ओर से लगातार घिरता जा रहा है। सबसे दुखद हालत तो यह है कि बडे समाचार संस्थान भी उसके हितों पर तनिक भी चिंता नहीं करते। बल्कि दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे अखबारों ने तो अपने सुपर-स्ट्रिंगर्स, स्ट्रिंगर्स और संवाददाताओं तक से बाकायदा शपथपत्र भी लिखवा कर रख लिया कि वे कभी भी अपना दावा अपने समाचार संस्थान पर नहीं करेंगे। बाकी सभी संस्थानों में भी यही कमोबेश हालत है। ऐसी हालत में कोई पत्रकार किस तरह अपने दायित्वों का निर्वहन कर पायेगा, और कब तक यह चल पायेगा?
पत्रकार काम कर रहा है, उसकी खबरें लग रही हैं इसीलिए उसकी छवि समाज में पत्रकार के तौर पर स्थापित है। लेकिन शर्मनाक हालत यह है कि जिस संस्थान के लिए वह पत्रकार काम कर रहा है, वह संस्थान उस पत्रकार के प्रति तनिक भी संवेदनशीलता का प्रदर्शन करने से परहेज करता है। चंद समाचार संस्थान ही जिला स्तर पर अपना प्रतिनिधि रखता है। लेकिन बाकी तो बेहद कम वेतन में या केवल प्रति स्टोरी ही भुगतान पाते हैं और उसी में जीवन खपा डालते हैं। अधिकांश को कभी भी ढेला तक नहीं मिलता। वजह है कि पत्रकारिता के प्रति उनका जुनून, जो वक्त निकल जाने के बाद किसी लायक भी नहीं रह पाते हैं। अधेड उम्र में आखिर वह कुछ करना भी चाहें, तो क्या कर सकते हैं?
श्री हेमकर बेहद दुख के साथ कहते है कि पत्रकारों के प्रति ऐसा व्यवहार बेहद दुखद त्रासदी नहीं है तो क्या है? हालांकि वे कहते हैं कि पत्रकार बनने की होड़ आजकल किसी आंधी से कम नहीं है। जो भी अफसर से सटना चाहता है, उसके लिए उसके पास पत्रकार बनने का सहज रास्ता दिख जाता है। अब तो ऐसे संस्थान बन गये हैं, जो पत्रकारिता को ही समूल नाश कर बैठेंगे।
रतन सिंह की हत्या को लेकर अनूप हेमकर का साफ कहना है कि रतन की हत्या बेशक एक पत्रकार की हत्या है, लेकिन यह हत्या उसके पत्रकारीय दायित्व अथवा पत्रकारीय कारणों से नहीं, बल्कि विशुद्ध निजी झगडे में हुई है। ऐसी हालत में हम इस हत्या को पत्रकारिता पर हमले के तौर पर कैसे देख, समझ और देख सकते हैं? यही बात तो प्रशासन भी शुरू से ही मान रहा है​ कि निजी रंजिश से हुई है यह हत्या, जिस बारे में मकतूल के पिता ने भी अपनी रिपोर्ट में भी लिखवाया है। ले​किन इसके बावजूद एक अजब सा हंगामा खडा हो चुका है।
श्री हेमकर बताते हैं कि इस प्रवृत्ति पर अगर समय रहते अंकुश नहीं लगाया जाएगा, तो उसके भयावह नतीजे निकलेंगे।

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